बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड: हजारों वर्षों का विश्व का इतिहास क्रूरता के खौफनाक अध्यायों से भरा पड़ा है. यह अतीत हजारों वर्ष पुराना नहीं है कि समय के पहियों ने चमकौर और सरहिंद के युद्ध की रेखाओं को धुंधला कर दिया हो. जहां एक ओर धार्मिक कट्टरता और उसमें अंधी होकर बढ़ी मुगल सल्तनत थी, तो वहीं दूसरी ओर ज्ञान और तपस्या में तपे हुए हमारे गुरु थे, जहां एक ओर आतंक की पराकाष्ठा थी, तो वहीं दूसरी ओर अध्यात्म का शीर्ष था! और, जहां एक ओर लाखों की फौज थी, तो वहीं दूसरी ओर अकेले होकर भी निडर खड़े गुरु के वीर साहिबजादे थे! गुरु गोबिंद सिंह जी के दो साहिबजादे 26 दिसंबर, 1705 को शहीद हुए. साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था. कल्पना कीजिए कि साहिबजादा जोरावर सिंह साहब और साहिबजादा फतेह सिंह साहब जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगजेब और उसकी सल्तनत की क्या दुश्मनी हो सकती थी? दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गयी? ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि औरंगजेब और उसके लोग गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे. लेकिन, भारत के वीर बेटे मौत से भी नहीं घबराये. वे दीवार में जिंदा चुन गये, लेकिन उन्होंने धार्मिक कट्टरता के मंसूबों को हमेशा के लिए दफन कर दिया.
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