West Bengal : संकट में भारतीय चाय उद्योग को ताजगी के लिए चाहिए उदारीकरण की मजबूत खुराक
भारतीय चाय उद्योग को बनाए रखने और इसे फलने-फूलने के लिए ज़रूरी है कि चार प्रमुख किस्म के सुधार हों. बहुत से नियमों से लदा, आरटीजी चाय एस्टेट मॉडल पुराना पड़ चुका है. आरटीजी को विशेष रूप से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
By Shinki Singh | October 20, 2023 6:55 PM
कोलकाता ,अमर शक्ति : भारतीय चाय उद्योग विशाल है. भारत दुनिया में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक (सालाना 1.3 मिलियन टन से अधिक चाय उत्पादन) और तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक (लगभग 1 अरब डॉलर सालाना की आय) है, लेकिन घरेलू स्तर पर लगभग 85% चाय की खपत के बावजूद, यहां प्रति व्यक्ति चाय की खपत (लगभग 800 ग्राम प्रति वर्ष) बेहद कम है. भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग (Subhash Chandra Garg) ने कहा भारत में 180 साल से अधिक समय से चाय की खेती हो रही है, लेकिन यह वैश्विक स्तर पर सबसे पुराना चाय उत्पादक नहीं है. दरसल यह चीन की चाय थी, जो ब्रिटिश अमेरिकी उपनिवेशों में बेची जाती थी, जिसने 1773 में बोस्टन टी पार्टी जैसी तूफानी घटना को पैदा किया और अमेरिकी स्वतंत्रता में योगदान दिया. भारत, केन्या की येलो टी) की तरह नई श्रेणियों की चाय का भी उत्पादक नहीं है, जो आजकल बेहद लोकप्रिय हो रही है.
चाय की खपत सालाना 2.5% से कम बढ़ी है
सरकार ने संवर्द्धन योजनाओं और प्रोत्साहनों के साथ छोटे चाय उत्पादकों एसटीजी 2 लाख से थोड़े अधिक और औसतन लगभग 2 एकड़ चाय उत्पादन क्षेत्र वाले को प्रोत्साहित किया है. परिणामस्वरूप, पिछले 15 साल में, भारत का चाय उत्पादन लगभग 4% प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है. इस अवधि के दौरान चाय की खपत सालाना 2.5% से कम बढ़ी है और निर्यात स्थिर है, इसलिए चाय उद्योग को कीमतों में गिरावट के दबाव का सामना करना पड़ा है.बड़े विनियमित चाय उत्पादकों (आरटीजी, कुल मिलाकर लगभग 230) की संख्या और उनके बागानों का क्षेत्रफल स्थिर बना हुआ है या घट गया है. आरटीजी की बाजार हिस्सेदारी 60% से घटकर अब 50% से भी कम रह गई है. भारतीय चाय उद्योग, आम तौर पर, परेशानी की स्थिति में है। आरटीजी को विशेष रूप से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
भारतीय चाय उद्योग को बनाए रखने और इसे फलने-फूलने के लिए ज़रूरी है कि चार प्रमुख किस्म के सुधार हों. बहुत से नियमों से लदा, आरटीजी चाय एस्टेट मॉडल पुराना पड़ चुका है. एस्टेट के भीतर श्रमिकों के आवास, स्कूली शिक्षा और कई अन्य सुविधाएं प्रदान करने की वैधानिक अनिवार्यता न तो आवश्यक है और न ही किफायती है क्योंकि सभी गांव और बस्तियां, अब हर मौसम के लिए उपयुक्त सड़कों से जुड़ी हुई हैं और हर जगह अच्छी सार्वजनिक स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं.
मौजूदा चाय नीलामी मॉडल अपनी उपयोगिता खो चुकी है क्योंकि इसके तहत चुनिंदा चाय नीलामी केंद्रों तक ही चाय ले जाई जा सकती है और हर लॉट को कई बोझिल प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है. इसमें समय तो बर्बाद होता ही है, इसमें बेवजह बिकने वाली चाय की कीमत में 7-10 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी भी हो जाती है. भारत में चाय के मानकीकरण एवं वर्गीकरण का ज़बरदस्त अभाव है. भारत में कथित तौर पर लगभग 800 प्रकार की चाय तैयार की जाती है या बेची जाती है, जबकि उद्योग का अनुमान है कि मूलतः लगभग 25-30 प्रमुख चाय की किस्में ही हैं. चाय उद्योग में आपूर्ति से अधिक, मांग पक्ष पर ध्यान देने की ज़रुरत है.चाय को एक अच्छे स्वास्थ्य पेय के रूप में प्रचारित करने की ज़रुरत है.
आईएसआई की तरह चाय उद्योग के लिए मानक तैयार करें
अब समय आ गया है कि भारतीय चाय अधिनियम 1954 को नियामक से एक विकासशील और सुविधाजनक कानून में बदल दिया जाए. सभी आदेशों को खत्म कर देने की ज़रूरत है. नए चाय अधिनियम से ऐसी एजेंसियां बनें जो आईएसआई की तरह चाय उद्योग के लिए मानक तैयार करें तथा इन्हें कूटबद्ध (कोडिफाय) करें और एपीडा की तरह पर प्रचार तथा प्रमाणन का काम करें. चाय को मानक बाजार लॉट में आज दुनिया में उपलब्ध किसी भी विपणन चैनल के जरिये स्वतंत्र रूप से प्रत्यक्ष बिक्री, ई-कॉमर्स, चाय नीलामी घर, कमोडिटी एक्सचेंज या अन्य के ज़रिये बेचने की अनुमति दी जानी चाहिए. इसी तरह का बेहद आवश्यक उदारीकरण ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि भारतीय चाय उद्योग ठीक तरह से विकसित हो. चाय बागान के श्रमिकों को उच्च मात्रा, उत्पादकता और कीमतों से लाभ हो और देश, खुद को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चाय उत्पादक के रूप में स्थापित कर सके.