Home Badi Khabar दहकते अंगारों पर नंगे पांव चले मां काली के भक्त, रंजनी फोड़ा की परंपरा देख दबा लेंगे दांतों तले उंगलियां

दहकते अंगारों पर नंगे पांव चले मां काली के भक्त, रंजनी फोड़ा की परंपरा देख दबा लेंगे दांतों तले उंगलियां

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दहकते अंगारों पर नंगे पांव चले मां काली के भक्त, रंजनी फोड़ा की परंपरा देख दबा लेंगे दांतों तले उंगलियां

Kali Puja 2022: झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के बंदगांव में मां काली की पूजा के अवसर पर गुरुवार को कराईकेला के बाउरीसाई काली मंदिर परिसर में अग्नि परीक्षा एवं रंजनी फोड़ा कार्यक्रम का आयोजन किया गया. सैकड़ों भक्तों ने गाजे-बाजे के साथ बाउरीसाई तालाब से स्नान कर पूजा-अर्चना की. इस दौरान इन्होंने कलश यात्रा निकाली. मंदिर परिसर पहुंच कर श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की. पुजारी शंकर महापात्र ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना करायी. इसके बाद वे जलती आग के अंगारों पर नंगे पांव चले. 9 भक्तों ने लोहे से बनायी गयी कील से शरीर में छेद कर रस्सी को आर-पार कर रंजनी फोड़ा की परपंरा निभायी.

गाजे-बाजे के साथ पहुंचे मंदिर

अग्नि परीक्षा के बाद परासर महतो के नेतृत्व में 9 भक्तों ने अपनी बांह पर लोहे के नुकीले कील से छेद कर काइस घास को आर-पार किया. इसके बाद बांह में नुकीले कील से छेदने वाले भक्तों को श्रद्धालुओं द्वारा काइस घास के सहारे खींचते हुए मंदिर तक लाया गया. इस दौरान गाजे-बाजे के साथ बाउरीसाई ऊपर टोला से मंदिर परिसर पहुंच कर पूजा-अर्चना की गयी.

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1850 में शुरू हुई थी काली पूजा

ग्राम मुण्डा परमेश्वर महतो ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा अब भी गांव में झलकती है.1850 में यह काली पूजा शुरू की गई थी. गांव-गांव में पूजा के मौके पर श्रद्धालु जलते अंगारों पर नंगे पांव चलना, बांस से बनाये गये कील से शरीर पर छेदवाना, कांटा व लोहे की कील पर चलना. ऐसे कई दिल दहला देने वाले कार्य भक्त करते हैं.

172 वर्षों से होती आ रही है मां काली की पूजा

मुण्डा परमेश्वर महतो एवं समाजसेवी नरेन्द्र प्रसाद महतो ने बताया कि 1850 से बाउरीसाई में मां काली की पूजा ग्रामीणों द्वारा की जा रही है. माता के दरबार मे मांगी गयी मन्नतें पूरी होने पर बकरा, बतख की बलि देकर पूजा की जाती है. इस मौके पर बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे. कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से ग्राम मुंडा परमेश्वर महतो, अध्यक्ष अभिलेख महतो, सचिव विंजय महतो, कोषाध्यक्ष कुलदीप महतो, जातेन महतो, विनय महतो, श्रीनिवास महतो, शांतानु महतो, दीपक महतो, मानतानु महतो, रतन महतो, छोटेलाल महतो, अजय महतो, नीलकंठ कटिहार, ताराचन्द महतो, तुलसी महतो, पहलवान महतो, डैनी मुदी, विकास कोड़ा, रितेश महतो, बीजू प्रामाणिक, देवा प्रामाणिक, संजय प्रामाणिक, पूरेन्द मोदी समेत अन्य ग्रामीणों का योगदान रहा.

रिपोर्ट : अनिल तिवारी, बंदगांव, पश्चिमी सिंहभूम

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