नवमी के दिन पूजा छोड़कर गांव से बाहर जाने की अनुमति नहीं
यहां एक ही चाला खाचे में सभी प्रतिमाएं मौजूद रहती है.भगवान गणेश अथवा अन्य देवी देवताओं का भी केवल दो ही भुजा मौजूद रहता है. यहां मां दुर्गा को बेने मां के रूप में ही पूजा जाता है. ग्रामीणों का कहना है की सप्तमी के बाद दशमी तक गन्ना,केला,नींबू, खीरा,कुम्हड़ा आदि फल और सब्जी को मिलाकर नौ बली की प्रथा भी है. यह प्रथा पुराने रीति रिवाज के साथ आज भी जारी है. ग्रामीणों का कहना है की नवमी के दिन गांव का कोई भी व्यक्ति, महिला, बच्चे पूजा छोड़कर गांव से बाहर नहीं जाते हैं .इससे पहले कई बार नवमी के दिन पूजा छोड़कर गांव से बाहर गए लोगों के साथ कुछ न कुछ अपघटन की घटना घटी है. इसलिए आज भी नवमी को ग्रामीण गांव के बाहर नहीं जाते है.
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दुर्गापूजा को लेकर तैयारियां शुरु
बताया जाता है की बेने परिवार के द्वारा इस दुर्गा पूजा को किए जाने के कारण ही समूचे आसपास के इलाके में यहां आयोजित मां दुर्गा की पूजा अब बेने मां की पूजा के रूप में ही प्रचलित हो गई है. बेने परिवार के लोग अब अन्य प्रांत हरियाणा में रहते है लेकिन आज भी दुर्गापूजा के समय इस परिवार के लोग गांव पहुंच जाते है. दुर्गा पूजा के खर्च का वहन आज भी इस परिवार का ही ज्यादा रहता है. दुर्गापूजा को लेकर तैयारी जोर शोर से शुरू हो गई है प्रतिमा बनाने का काम भी शुरू हो गया है. गांव के लोगों में उत्साह देखा जा रहा है.
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