पुरी के श्री मंदिर में कृष्ण बलराम बेशा अनुष्ठान, कृष्ण की तरह सजे भगवान जगन्नाथ, चढ़ाया गया अमलु भोग
पंडित सूर्य नारायण रथशर्मा ने कहा कि श्रीमंदिर में ‘श्रीकृष्ण लीला’ मनायी जा रही है. भगवान कृष्ण के जन्म के बाद ‘नंदोत्सव’ मनाया गया, तब देवता बाना भोजी बेशा और कालिया दलाना बेशा में प्रकट हुए. प्रलम्बासुर का वध करने के बाद ‘कृष्ण बलराम बेशा’ अनुष्ठान कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर मनाया जाता है.
By Prabhat Khabar News Desk | September 13, 2023 1:14 PM
जन्माष्टमी के बाद से पुरी के श्रीमंदिर में मनायी जाने वाली ‘श्री कृष्ण लीला’ के हिस्से के रूप में बहुप्रतीक्षित कृष्ण बलराम बेशा अनुष्ठान आयोजित किया गया. हर साल, यह ”बेशा” भाद्रबा के चंद्र महीने के कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के ‘त्रयोदशी (तेरहवें दिन)’ पर मंदिर में मनाया जाता है. मध्याह्न धूप के पूरा होने के बाद देवताओं का ‘बेशा’ किया जाता है. इस अवसर पर देवताओं को आभूषणों से सजाया जाता है और ‘खीरी’ और ‘अमलु भोग’ चढ़ाया जाता है. यह ‘बेशा’ महत्व रखता है, क्योंकि इस अवसर पर भगवान जगन्नाथ को भगवान कृष्ण की तरह, भगवान बलभद्र को भगवान बलराम की तरह तैयार किया जाता है और देवी सुभद्रा को चार भुजाओं में ‘आयुध’ धारण किए हुए ‘पद्मासन मुद्रा’ में तैयार किया जाता है.
श्रीमंदिर में मनी ‘श्रीकृष्ण लीला’
इस ‘बेशा’ की शुरुआत की जानकारी देते हुए जगन्नाथ संस्कृति विशेषज्ञ पंडित सूर्य नारायण रथशर्मा ने कहा कि श्रीमंदिर में ‘श्रीकृष्ण लीला’ मनायी जा रही है. भगवान कृष्ण के जन्म के बाद ‘नंदोत्सव’ मनाया गया, तब देवता बाना भोजी बेशा और कालिया दलाना बेशा में प्रकट हुए. प्रलम्बासुर का वध करने के बाद ‘कृष्ण बलराम बेशा’ अनुष्ठान कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (तेरहवें दिन) पर मनाया जाता है.
ऐसे शुरू हुआ ‘कृष्ण बलराम बेशा’ अनुष्ठान
उन्होंने बताया कि वर्ष 1946 में, ओडिशा के कटक जिले के खंड साही के जमींदार जगबंधु मिश्रा को उनकी शादी के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई थी. उन्होंने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे संतान के लिए आशीर्वाद मांगा और उनकी ये इच्छा पूरी हो गई. फिर उन्होंने देवताओं के दर्शन के लिए श्रीमंदिर का दौरा किया. जमींदार को एक बच्चे का आशीर्वाद मिलने की सूचना के बाद पंडित सदाशिव रथशर्मा और बड़ा ओडिया मठ के प्रमुख के प्रयासों के कारण, ‘कृष्ण बलराम बेशा’ अनुष्ठान शुरू किया गया था.