पैसे के दम पर सत्ता में लौटीं ममता बनर्जी! पढ़ें, चुनाव में पैसों की भूमिका पर एसबीआइ के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट
पैसे के दम पर सत्ता में लौटीं ममता बनर्जी! एसबीआइ के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में सामने आया सच.
By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2021 9:15 AM
कोलकाता/मुंबईः पश्चिम बंगाल में पैसे के दम पर ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हुईं! भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) की एक रिपोर्ट के बाद यह सवाल उठने लगे हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सत्ता में वही पार्टियां वापसी करती हैं, जो ज्यादा पैसे खर्च करती हैं. एसबीआइ के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में यह बात कही गयी है. यह रपट शुक्रवार (14 मई) को जारी की गयी.
लगातार तीसरी बार ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी, तो राजनीतिक दलों और राजनीतिक विशेषज्ञों के अलावा अर्थशास्त्रियों ने भी चुनाव में जीत-हार के कारणों का इस बार विश्लेषण किया. देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) के अर्थशास्त्रियों ने इस पर एक रपट जारी की और ममता बनर्जी की जीत के कारणों के बारे में बताया.
रपट में कहा गया है कि राज्य सरकारों को सत्ता में बनाये रखने में चुनावी वर्ष के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किये जाने खर्च का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. एसबीआइ के अर्थशास्त्रियों की इस रिपोर्ट में पिछले पांच वर्षों में 23 राज्यों के चुनावों के विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि जिन राज्यों में चुनावी साल में प्रचार पर सरकारी खर्च कम था, उनमें ज्यादातर सरकारें चुनाव हार गयीं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि इन चुनावों में मतदान करने के लिए निकलने वाले मतदाताओं की संख्या, महिला मतदाता, जाति-आधारित मतदान, वर्तमान नेतृत्व, सत्ता-विरोधी लहर आदि जैसे अन्य कारक थे, लेकिन 10 राज्यों में एक आम बात यह निकली कि जहां एक पुरानी पार्टी सत्ता बनाये रखने में सक्षम हुई, उसकी वजह चुनावी विज्ञापनों या विज्ञापन पर सार्वजनिक व्यय का बढ़ना था.
ममता की पार्टी ने चुनाव में 8 फीसदी अधिक खर्च किया
जिन राज्यों के चुनाव परिणाम हाल ही में सामने आये, उनमें केरल और पश्चिम बंगाल ने चुनावी वर्ष में सूचना और प्रचार पर पूंजीगत व्यय में क्रमशः 47 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की वृद्धि दिखायी, जिसके कारण पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी सत्ता में बनी रहीं. दूसरी ओर, तमिलनाडु में राज्य सरकार द्वारा चुनावी वर्ष के विज्ञापन में मामूली दो प्रतिशत की वृद्धि के बाद भी सरकार में बदलाव देखा गया.