Suvendu Adhikari: कोलकाता : छात्र जीवन में राजनीति की शुरुआत करने वाले शुभेंदु अधिकारी ने अपने नेतृत्व और संगठन कौशल के दम पर खुद को पश्चिम बंगाल की सियासत में न केवल स्थापित किया, बल्कि नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष को धार देकर 34 साल की वामदलों की सरकार को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका भी निभायी.
ममता बनर्जी के चेहरे को सामने रखकर शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार ने नंदीग्राम आंदोलन की रूपरेखा तैयार की. लोगों को जागृत किया और लगभग अजेय मानी जाने वाली वामफ्रंट की सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका. लंबे अरसे तक तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी की सरकार में रहने के बाद अब उन्होंने पार्टी और सरकार दोनों से किनारा कर लिया है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में मेदिनीपुर में आयोजित एक जनसभा में वह भाजपा का दामन थाम लेंगे, ऐसी चर्चा है. बताया जा रहा है कि वह अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल होंगे. इसके पहले उन्होंने सरकार एवं पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.
कांथी पीके कॉलेज से स्नातक शुभेंदु अधिकारी ने छात्र जीवन में ही राजनीति में कदम रखा और वर्ष 1989 में छात्र परिषद के प्रतिनिधि चुने गये. इसके बाद वह 36 साल की उम्र में पहली बार वर्ष 2006 में कांथी दक्षिण सीट से विधायक निर्वाचित हुए. इसी साल वह कांथी नगरपालिका के चेयरमैन भी बने.
सक्रिय राजनीति के दौरान शुभेंदु वर्ष 2009 और 2014 में तमलूक लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए. वर्ष 2016 उन्होंने नंदीग्राम विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की. ममता बनर्जी की सरकार में मंत्री भी बने. शुभेंदु के सियासी कद को ऊंचाई प्रदान करने में पूर्वी मेदिनीपुर के वर्ष 2007 के नंदीग्राम आंदोलन ने बड़ी भूमिका निभायी.
ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम आंदोलन के शुभेंदु ‘शिल्पी’ रहे. इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उन्होंने ‘भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी’ के बैनर तले आंदोलन खड़ा किया. आंदोलनकारियों की पुलिस और माकपा कैडरों के साथ खूनी झड़प हुई. पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गयी गोलीबारी में कई लोगों की मौत के बाद आंदोलन और उग्र हो गया, जिससे तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को झुकना पड़ा.
नंदीग्राम और हुगली जिले के सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन ने तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में पकड़ को और मजबूत करते हुए उसे 34 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा को हटाने में सफलता दिलायी. ममता बनर्जी सरकार में परिवहन, जल संसाधन और विकास विभाग तथा सिंचाई एवं जलमार्ग विभाग के मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मेदिनीपुर जिला के प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से हैं.
पूर्वी मेदिनीपुर के अंतर्गत 16 विधानसभा सीटें हैं. इसके साथ-साथ पड़ोस के पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया आदि जिलों की करीब पांच दर्जन विधानसभा सीटों पर इस परिवार का प्रभाव है. बताया जाता है कि नंदीग्राम आंदोलन में शुभेंदु के रणनीतिक कौशल को देखते हुए ममता बनर्जी ने उन्हें जंगलमहल, जिसके अंतर्गत मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया आदि जिले आते हैं, में तृणमूल के विस्तार का काम सौंपा था.
वाम मोर्चा का गढ़ कहे जाने वाले इन जिलों में शुभेंदु ने पार्टी की पकड़ को मजबूत बनाया. इसके अलावा उन्होंने मुर्शिदाबाद और मालदा में भी तृणमूल को बढ़त दिलाने में अहम भूमिका निभायी. संगठन पर बेहतर पकड़ के बूते ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने वर्ष 2011 के बाद वर्ष 2016 में भी शानदार प्रदर्शन किया. हालांकि, इन अच्छे परिणामों को तृणमूल वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बरकरार नहीं रख सकी.
भाजपा ने तृणमूल को कड़ी टक्कर देते हुए राज्य की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की, जबकि 12 सीट गंवाते हुए तृणमूल कांग्रेस 22 सीटें ही जीत सकी. इस चुनाव में तृणमूल ने शुभेंदु अधिकारी का गढ़ मानी जाने वाली लोकसभा की 13 सीटों में से 9 सीटें गंवा दी थी.
2001 में मूगबेड़िया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े. लेफ्ट के उम्मीदवार ने शुभेंदु को पराजित कर दिया.
2001 में शुभेंदु के नेतृत्व में तृणमूल ने पूर्वी मेदिनीपुर और दक्षिण 24 परगना जिला परिषद पर कब्जा किया.
2004 में तमलूक लोकसभा क्षेत्र से संसदीय चुनाव लड़े और लेफ्ट के लक्ष्मण सेठ जैसे कद्दावर नेता को पराजित किया.
2006 में कांथी दक्षिण विधानसभा सीट पर जीते और पहली बार विधायक बने. इसी साल उनके पिता शिशिर अधिकारी एगरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते और पिता-पुत्र दोनों पश्चिम बंगाल विधानसभा पहुंचे.
2006 में कांथी नगर निगम के चेयरमैन बने.
2008 में युवा तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष बने शुभेंदु अधिकारी.
2009 में फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और एक बार फिर माकपा के लक्ष्मण सेठ को हरा दिया.
2014 में शुभेंदु को तृणमूल ने एक बार फिर तमलूक संसदीय सीट से टिकट दिया. श्री अधिकारी फिर विजयी हुए.
2016 में शुभेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा तैयार की. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने नंदीग्राम सीट से पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और शुभेंदु ने यह सीट तृणमूल की झोली में डाल दी.
युवा तृणमूल कांग्रेस में फेरबदल किया गया. शुभेंदु की जगह सौमित्र खां को युवा तृणमूल कांग्रेस का प्रमुख बना दिया गया.
2008 में पूर्वी मेदिनीपुर की जिला परिषद पर तृणमूल ने कब्जा किया. कहा गया कि यह तृणमूल नहीं, शुभेंदु अधिकारी की जीत है.
2011 में शुभेंदु अधिकारी की बदौलत पूर्वी मेदिनीपुर की सभी 16 विधानसभा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार जीते.
2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पूर्वी मेदिनीपुर के सभी 16 विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल के उम्मीदवारों को बढ़त मिली.
2016 के विधानसभा चुनाव में पूर्वी मेदिनीपुर की 16 में से 13 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार जीते. 3 सीट वामदलों के खाते में चली गयी.
2019 में लोकसभा चुनाव से पहले शुभेंदु अधिकारी को पश्चिमी मेदिनीपुर के पर्यवेक्षक के पद से मुक्त कर दिया गया.
2020 के अगस्त महीने में तृणमूल के सरकारी कर्मचारियों के संगठन की जिम्मेदारी शुभेंदु से छीन ली गयी.
मालदा, मुर्शिदाबाद, पुरुलिया, बांकुड़ा, झाड़ग्राम, पूर्वी मेदिनीपुर और पश्चिमी मेदिनीपुर.
जब से तृणमूल कांग्रेस ने शुभेंदु अधिकारी के पर कतरने शुरू किये, नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का उत्थान शुरू हो गया.
2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को नंदीग्राम में कुल 10,731 वोट प्राप्त हुए थे.
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार को नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में 62,268 मत मिले.
26 नवंबर, 2020 : एचआरबीसी के चेयरमैन पद से दिया इस्तीफा
27 नवंबर, 2020 : परिवहन, जल संपदा एवं सिंचाई मंत्री के पद से इस्तीफा दिया
27 नवंबर, 2020 : हल्दिया विकास परिषद के चेयरमैन पद से इस्तीफा
16 दिसंबर, 2020 : पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता से दिया इस्तीफा
17 दिसंबर, 2020 : तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दिया
Posted By : Mithilesh Jha