Munger: कश्मीर में हुए आतंकी हमले में बिहार का लाल शहीद, आज पैतृक गांव आयेगा विशाल का पार्थिव शरीर

Munger: कश्मीर के श्रीनगर स्थित मैसूमा इलाके में ड्यूटी पर तैनात मुंगेर के सीआरपीएफ के हेड कांस्टेबल विशाल आतंकी हमले में शहीद हो गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 5, 2022 11:39 AM
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Munger: कश्मीर के श्रीनगर स्थित मैसूमा इलाके में ड्यूटी पर तैनात मुंगेर के सीआरपीएफ के हेड कांस्टेबल विशाल आतंकी हमले में शहीद हो गया है. शहीद जवान विशाल कुमार का पार्थिव शरीर आज मंगलवार की शाम तक मुंगेर लाये जाने की संभावना है.

जानकारी के मुताबिक, कश्मीर के श्रीनगर के मैसूमा इलाके में आतंकियों के अचानक हमले में मुंगेर के हवेली खड़गपुर निवासी सीआरपीएफ का जवान विशाल शहीद हो गया है. शहीद होने की सूचना मिलने के बाद गांव में मातम पसर गया है. वहीं, परिवार वालों का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा है. मंगलवार की शाम तक शहीद का पार्थिव शरीर आने की सूचना है.

मुंगेर के हवेली खड़गपुर प्रखंड क्षेत्र की नाकी पंचायत के नाकी गांव निवासी सरयुग मंडल का 30 वर्षीय पुत्र विशाल कुमार उर्फ धर्मेंद्र कश्मीर के श्रीनगर स्थित लाल चौक के समीप मैसीसूमा में आतंकियों के कायराना हमले में शहीद हो गये. विशाल सीआरपीएफ में हेड कांस्टेबल थे. वह कश्मीर में पोस्टेड थे. मेसूमा लालचौक कश्मीर में आतंकियों के छिप कर किये गये हमले में विशाल के शहीद होने की सूचना मिलने पर पत्नी, दोनों बेटियां और परिजनों समेत पूरे गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया है.

विशाल की शहादत की सूचना सोमवार की देर शाम गांव पहुंची, तो सभी सन्न रह गये. विशाल चार भाइयों में सबसे छोटा था. एक बड़ा भाई बीएमपी में जवान है. वहीं, एक भाई गांव में ही रहता है. विशाल के एक भाई की पिछले साल कोरोना संक्रमण से मौत हो गयी थी. गांव के लोग आतंकी हमले में शहीद हुए वीर रणबांकुरे विशाल के निधन से काफी मर्माहत हैं.

उपलब्ध जानकारी के अनुसार, आज देर शाम शहीद जवान विशाल उर्फ धर्मेंद्र का पार्थिव शरीर नाकी गांव पहुंचेगा. मालूम हो कि साल 2003 में विशाल ने सीआरपीएफ ज्वाइन किया था. अपनी बेटी के एडमिशन के लिए 10 दिन के लिए हाल ही में गांव आया था और बीते 25 मार्च को वापस ड्यूटी पर गया था.

विशाल का विवाह साल 2009 में खड़गपुर शिमपुर की बबिता देवी से हुआ था. बिहू भारती और सृष्टि दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी सात वर्ष की है, वहीं छोटी चार वर्ष की है. परिजनों के साथ-साथ पूरे गांव के लोगों को शहीद के पार्थिव शरीर के आने के इंतजार है.

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