पितरों के ऋण से मुक्त होना जरूरी
पितृपक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ कर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक यानी श्राद्धपक्ष में पितृगण श्राद्ध ग्रहण करने पृथ्वी पर आते हैं. तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान से संतुष्ट, प्रसन्न होकर श्राद्धकर्ता को शुभ आर्शीवाद देते लौट जाते हैं. यदि श्राद्ध, पिंडदान नहीं मिला तो वह शाप तक भी दे सकते हैं. देव-ऋण,ऋषि-ऋण तथा पितृ-ऋण में श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण उतारना आवश्यक माना गया है. क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य, सुख-सौभाग्यादि की अभिवृद्धि के लिये अनेक यत्न तथा प्रयास किये हैं उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक है.
श्राद्ध यानि श्रद्धा से किया जाने वाला कार्य
श्राद्ध यानि श्रद्धा से किया जाने वाला कार्य. विशेषतः पितृपक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं. किंतु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है. जिस तिथि को माता-पिता आदि की मृत्यु हुई हो उस तिथि को आश्विन कृष्ण पक्ष की (महालया) पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध-तर्पण तथा ब्राह्मण भोजनादि करना या कराना आवश्यक है. इससे तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्त्ता की कामना पूरी करते हैं तो विश्वेदेवगण, पितृगण, मातामह, कुटुम्बीजन संतुष्ट होते हैं. संतानें दीर्घायु होती हैं.
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Pitru Paksha 2022: पितृ पक्ष श्राद्ध तिथि
10 सितंबर पूर्णिमा का श्राद्ध
11 सितंबर प्रतिपदा का श्राद्ध
12 सितंबर द्वितीया का श्राद्ध
12 सितंबर तृतीया का श्राद्ध
13 सितंबर चतुर्थी का श्राद्ध
14 सितंबर पंचमी का श्राद्ध
15 सितंबर षष्ठी का श्राद्ध
16 सितंबर सप्तमी का श्राद्ध
18 सितंबर अष्टमी का श्राद्ध
19 सितंबर नवमी श्राद्ध
20 सितंबर दशमी का श्राद्ध
21 सितंबर एकादशी का श्राद्ध
22 सितंबर द्वादशी/संन्यासियों का श्राद्ध
23 सितंबर त्रयोदशी का श्राद्ध
24 सितंबर चतुर्दशी का श्राद्ध
25 सितंबर अमावस्या का श्राद्ध