कोई बीमार व्यक्ति अगर ठीक महसूस करें, तो वह पहली फुर्सत में रोजा रख सकते हैं, जो व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है. उसे 30 दिन रोजे के बदले 60 गरीबों को दोनों वक्त का खाना खिलाने, या 60 गरीबों को पौने दो किलो गेहूं या इसके बराबर बाजार की कीमत पर रकम अदा करने का हुक्म है. अगर कोई व्यक्ति यात्रा में है, और उसे रोजा रखने में परेशानी हो, तो ऐसे में सफर खत्म होते ही रोजा रखने की बात कही गई है, लेकिन वह सफर खत्म होने के बाद रोजा नहीं रखता, तो वह गुनहगार होगा.
कौन से लोग रोज नहीं रख सकते हैं
ऐसे लोग, जो बालिग और शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हुए भी रोजे नहीं रखते, ऐसे लोग गुनहगार हैं, और इन्हें जहन्नुम नसीब होती है. इस्लामिक कैलेंडर के नौंवे महीने रमजान में रोजा रखने की शुरुआत दूसरी हिजरी में हुई है. उलमा कहते हैं कि कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह फर्ज है, जैसे पहले की उम्मत पर फर्ज था. कहा जाता है कि पैगंबर साहब के हिजरत कर मदीना पहुंचने के एक साल बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म मिला. इसके बाद रोजा रखने की शुरुआत हुई.
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उम्मत पर 50 दिन के रोजे होते फर्ज
उलमा कहते हैं कि रमजान में अल्लाह ने 50 दिन के रोजे उम्मत पर फर्ज किए थे. पैगंबर मुहम्मद साहब को जब अल्लाह ने अपना नबी बनाया, तो अल्लाह ने उनकी उम्मत पर 50 दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया था, लेकिन पैगंबर मुहम्मद साहब ने अल्लाह से गुजारिश की कि मेरी उम्मत 50 दिनों के फर्ज रोजे रखने में परेशानी आएगी. इसके बाद अल्लाह ने पैगबंर की गुजारिश कबूल कर रमजान में 30 दिन के रोजे उम्मत पर फर्ज किए. मगर, नाफिल रोजे कभी भी रख सकते हैं. ईद के बाद छह रोजे, मुहर्रम, बकरीद, शाबान, रजब आदि महीने में भी रख सकते हैं. इसके साथ ही पीर (सोमवार) और जुमेरत (गुरुवार) का रोजा रखने का काफी सबाब है. रोजे की सेहरी भी बहुत जरूरी है.
रिपोर्ट मुहम्मद साजिद बरेली