सरस्वती पूजा की तैयारी कर रहे मूर्तिकारों पर इस साल भी कोरोना की पड़ रही मार, नहीं मिल रहे खरीदार

वाराणसी में सरस्वती पूजा की तैयारी शुरू हो गई है. मूर्तिकार मां सरस्वती की मूर्ति बनाने में जुटे हुए हैं. लेकिन इस बार भी कोरोना महामारी ने उनकी कमर तोड़ दी है. इस बार उन्हें काफी कम ऑर्डर मिला है.

By Prabhat Khabar News Desk | February 2, 2022 4:39 PM
feature

बसंत पंचमी का त्योहार आने में मात्र कुछ ही दिन शेष है. ऐसे में वाराणासी में इस त्योहार को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में जोरो से चल रही हैं. 5 फरवरी को बसंत पंचमी को लेकर शहर के सभी शिक्षण संस्थानों में माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने के मूर्तियों का ऑर्डर पहले से ही मूर्तिकारों को दे दिया गया है. हालांकि कोरोना को लेकर मूर्तिकारों की स्थिति पहले से बदतर हो गई है. काफी लंबे समय तक शिक्षण संस्थान बंद रहे है, जिसकी वजह से इसबार सरस्वती प्रतिमा बनाने का ऑर्डर सिर्फ 15 से 19 ही मूर्तियों का मिला है

5 फरवरी को मनाये जा रहे सरस्वती पूजन यानी कि वसंत पंचमी को लेकर शिक्षण संस्थानों और पंडालों की ओर से मूर्तिकारों को महज 15 से 19 मूर्तियों का ऑर्डर मिला है. हर बार 30 से 40 मूर्तियों का ऑर्डर मिलता था. ऐसे स्थिति में मूर्तिकारों की तकलीफ बढ़ती जा रही है. एक तो जैसे-तैसे कोरोना काल से आर्थिक स्थिति खराब हुई, ऊपर से अब मूर्तियों का ऑर्डर कम मिला है. इस परिस्थिति में वे करे भी तो क्या करें.

बसंत पंचमी की राह मूर्तिकार पूरे सालभर से देखते रहते हैं, लेकिन इस तरह के इतने कम ऑर्डर ने उनकी कमर तोड़कर रख दी है. बसंत पंचमी के दिन शिक्षण संस्थानों के अलावा कई जगहों पर पंडालों में सरस्वती की प्रतिमा सजाई जाती है और उनका पूजन किया जाता है, लेकिन इस बार उनका कहना है कि कोरोना काल ने उनकी कमर तोड़ दी है.

सोनारपुर में मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे पाण्डेय हवेली के मूर्तिकार बंसी पाल ने बताया कि हम कई महीनों से कड़कती ठंड में मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. ऐसे में बहुत कम मूर्तियों के लिए आ रही डिमांड ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि सारी बनी हुई मूर्तियां बिकेंगी भी या नहीं.

वहीं कोनिया सट्टी में पुरखों से मूर्तिकारी करते आ रहे शंकर प्रसाद गुप्ता ने बताया कि बसंत पंचमी पर मां की मूर्ती बनाने का कार्य अंतिम दौर में चल रहा है. इसमें बांस, पटरा, सुतली, पुआल, गंगा जी की मिट्टी और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है. मैं और मेरा भाई हम दोनों मिलकर मूर्तिया बनाते हैं. एक-एक मूर्ति तैयार करने में हमे 10 दिन लगता है. ऐसे में यदि ये मूर्तिया नहीं बिकी, तो इसे सालभर तक सहेज कर रखना होगा, ताकि अगले साल इसे बेच सके.

रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version