छात्र अब करेंगे पांडुलिपि की पढ़ाई, UGC शुरू करेगा पीजी डिप्लोमा, पाठ्यक्रम को लेकर पैनल का हुआ गठन

Manuscript Course: पांडुलिपि हमारे पूर्वजों के द्वारा पेड़ के छाल पर या पत्थर पर मुद्रित दस्तावेज होती है. पहले के समय पर लिखी गई कई सारी चीजें हमें समझ में नहीं आती है. पांडुलिपि विज्ञान हस्तलिखित दस्तावेजों के उपयोग के माध्यम से इतिहास और साहित्य का अध्ययन है.

By Bimla Kumari | August 16, 2023 3:53 PM
feature

Education News, Manuscript Course: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक विशेष पैनल का गठन किया है जो देश भर के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पांडुलिपि विज्ञान और पुरातत्व में पाठ्यक्रमों के लिए मॉडल पाठ्यक्रम विकसित करेगा. पांडुलिपि हमारे पूर्वजों के द्वारा पेड़ के छाल पर या पत्थर पर मुद्रित दस्तावेज होती है. पहले के समय पर लिखी गई कई सारी चीजें हमें समझ में नहीं आती है. पांडुलिपि विज्ञान हस्तलिखित दस्तावेजों के उपयोग के माध्यम से इतिहास और साहित्य का अध्ययन है, जबकि पुरालेख प्राचीन लेखन प्रणालियों का अध्ययन करके उनके द्वारा लिखी गई चीजों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे, ज्यादातर शास्त्रीय और मध्ययुगीन युग के मनुष्यों के द्वारा पांडुलिपियों को लिखा जाता था.

प्रफुल्ल मिश्रा करेंगे राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन का नेतृत्व

ग्यारह सदस्यीय पैनल का नेतृत्व राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के पूर्व निदेशक प्रफुल्ल मिश्रा करेंगे और इसमें आईआईटी-मुंबई के प्रोफेसर मल्हार कुलकर्णी शामिल होंगे, वसंत भट्ट, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक और जतीन्द्र मोहन मिश्रा, एनसीईआरटी, दिल्ली में संस्कृत के प्रोफेसर. राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) को लिखे एक पत्र में, जिसने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप इसके लिए एक प्रस्ताव भेजा था, यूजीसी ने कहा, “पांडुलिपि विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के मानकीकरण के लिए समिति का गठन किया गया है.” और विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पुरालेख”. 10 जुलाई को लिखे पत्र में कहा गया है, “समिति से दोनों विषयों के पाठ्यक्रमों के लिए एक मॉडल पाठ्यक्रम विकसित करने की उम्मीद है, जिसे या तो उनमें विशेषज्ञता रखने वाले छात्रों को या अध्ययन की अन्य शाखाओं में छात्रों के लिए खुले ऐच्छिक के रूप में पेश किया जा सकता है.” यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने कहा कि एनईपी में अनुशंसित भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने के हिस्से के रूप में, विश्वविद्यालय विभिन्न पाठ्यक्रमों की पेशकश के लिए पाठ्यक्रम का उपयोग कर सकते हैं.

विरासत का संरक्षण को बढ़ाता है पांडुलिपियां

उन्होंने कहा कि भारतीय पांडुलिपियों का संरक्षण देश की विविधता को बनाए रखता है और विरासत का संरक्षण को बढ़ाता है और इसकी विरासत की गहरी समझ में योगदान देता है. भारत के विभिन्न राज्य सदियों पुराने ज्ञान के भंडार हैं, जो अतीत के विचारों, विश्वासों और प्रथाओं को दर्शाते हैं. यूजीसी अध्यक्ष ने कहा कि विभिन्न भारतीय भाषाओं और लिपियों में उपलब्ध पांडुलिपियों में दर्शन, विज्ञान, साहित्य, धर्म और बहुत कुछ जैसे विविध विषयों को शामिल किया गया है. उन्होंने आगे कहा “ये पांडुलिपियां भारत के इतिहास, बौद्धिक योगदान और परंपराओं में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं. हमें सांस्कृतिक खजाने की रक्षा करने, अकादमिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने की क्षमता के लिए भारतीय पांडुलिपि विज्ञान का समर्थन करना चाहिए. एनएमएम के अनुसार, भारत में 80 प्राचीन लिपियों में अनुमानित 10 मिलियन पांडुलिपियां हैं. ये पांडुलिपियां ताड़ के पत्ते, कागज, कपड़े और छाल जैसी सामग्रियों पर लिखी गई हैं. जबकि मौजूदा पांडुलिपियों में से 75% संस्कृत में हैं, 25% क्षेत्रीय भाषाओं में हैं. कठिन भाषा में होने के कारण इनको पढ़ना चुनौतीपूर्ण है.

4 पत्रों में मुद्रित है पांडुलिपियां

पांडुलिपियां अनेक प्रकार से वर्णित की जा सकती हैं, परन्तु इनमे से अधिकांश को ताड़पत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र और सुवर्णपत्र आदि पर लिखा गया है। वर्तमान में सर्वाधिक मातृ ग्रंथ अथवा पांडुलिपियां भोजपत्रों और ताड़पत्र में प्राप्त होते हैं.

  1. ताड़पत्र :- सूखे ताड़ के पत्तों पर लिखी गयी पाण्डुलियां ताड़पत्र कहलाती हैं.

  2. भोजपत्र :- यूरोप,एशिया तथा उत्तरी अमेरिका में उगने वाले अनेक प्रकार के भूर्जवृक्षों की छाल को भोजपत्र कहते हैं.

  3. ताम्रपत्र :- तांबे की पत्तियां जो छोटी और बड़ी दोनों तांबे की चादरों पर उकेरी गई हैं। उस प्रकार के पांडुलिपियों को ताम्रपत्र कहते हैं.

  4. सुवर्णपत्र :-सोने की पत्तियां जो छोटी और बड़ी दोनों प्रकार की सोने की चादरों पर उकेरी गई हैं। उस प्रकार के पांडुलिपियों को सुवर्णपत्र कहते हैं.

पहली पांडुलिपि है गिलगित

बर्च की छाल और मिट्टी से लेपित गिलगित पांडुलिपियां भारत में सबसे पुरानी जीवित पांडुलिपियां हैं. इन पांडुलिपियों में विहित और गैर-विहित बौद्ध कार्य शामिल हैं जो संस्कृत, चीनी, कोरियाई, जापानी, मंगोलियाई, मांचू और तिब्बती धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य के विकास पर प्रकाश डालते हैं. उनका उपयोग बौद्ध विचार के इतिहास और विकास के अध्ययन के लिए किया जाता है और ये लेखन अमूल्य है. गिलगित पांडुलिपि में बौद्ध कैनन, समाधिराजसुत्र और सद्धर्मपुंडरीकसूत्र (कमाल सूत्र) सहित अन्य सूत्र शामिल हैं जो धर्म, अनुष्ठान, दर्शन, प्रतीक, लोक कथाओं, चिकित्सा सहित अन्य विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करते हैं. इसके अलावा मानव जीवन और ज्ञान के कई अन्य क्षेत्र इसमें शामिल हैं. भौगोलिक रूप से इन पांडुलिपियों को 5 वीं से 6 वीं सदी में तैयार हुआ माना जा सकता है और यह उस समय की गुप्त ब्रह्मी लिपि की बौद्ध संकर संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं. पांडुलिपियों को कश्मीर के गिलगित क्षेत्र में तीन किस्तों में खोजा गया था. जबकि पांडुलिपियों का मुख्य भाग भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली में स्थित है, शेष संग्रह श्री प्रताप सिंह संग्रहालय, जम्मू और काश्मीर में है.

Also Read: How to Clear UPSC Exam: जानिए किन 10 तरीकों से आप पास कर सकते हैं यूपीएससी परीक्षा
Also Read: How To: भारत में वकील कैसे बनें? एक सफल वकील बनने के लिए जानें सही गाइडलाइन
Also Read: इस कोर्स के लिए छात्र छोड़ रहे हैं IIT, मिल रहा है लाखों-करोड़ों का पैकेज! डालें एक नजर

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version