Tusu Festival in Jharkhand : कोल्हान में टुसूमनी की प्रतिमा व चौड़ल तैयार, टुसू गीतों पर थिरकेंगे लोग

Tusu Festival in Jharkhand, Saraikela News : मकर संक्रांति के अवसर पर कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों में टुसू का पर्व मनाया जाता है. टुसू पर्व को झारखंडी संस्कृति का धरोहर माना जाता है. यह पर्व झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिले, ओड़िशा के क्योंझर, मयूरभंज, बारीपदा जिलों में मनाया जाता है. टुसू को लेकर गांव- कस्बों में उत्सव का माहौल है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 13, 2021 6:16 PM
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Tusu Festival in Jharkhand, Saraikela News, सरायकेला (शचिंद्र कुमार दाश) : मकर संक्रांति के अवसर पर कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों में टुसू का पर्व मनाया जाता है. टुसू पर्व को झारखंडी संस्कृति का धरोहर माना जाता है. यह पर्व झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिले, ओड़िशा के क्योंझर, मयूरभंज, बारीपदा जिलों में मनाया जाता है. टुसू को लेकर गांव- कस्बों में उत्सव का माहौल है.

गांवों में मकर संक्रांति से एक माह पहले अगहन संक्रांति से ही टुसू पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है. करीब एक माह पहले पौष माह से ही टुसूमनी की मिट्टी की मूर्ति बना कर उसकी पूजा शुरू हो जाती है. इस दौरान टुसू और चौड़ल (एक पारंपरिक मंडप) सजाने का काम भी होता है. इस काम को केवल कुंवारी लड़कियां ही करती हैं. गांवों में टुसूमनी की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है. इस दौरान अलग अलग स्थानों पर टुसू मेला व प्रर्दशनी का भी आयोजन किया जाता है. टुसू मेला व प्रदर्शनी के दौरान टुसू की मूर्तियों के साथ साथ बड़े- बड़े आकार के चौड़ल के लेकर लोग प्रदर्शित करते हैं.

टुसू पर्व पर गाया जाता है बांग्ला भाषा के टुसू गीत

टुसू पर्व के लिए विशेष तौर पर टुसू गीत गाया जाता है. टुसू गीत मुख्य रूप से बांग्ला भाषा में होते हैं. टुसू प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए नदी पर मूर्ति ले जाने के दौरान टुसूमनी की याद में गीत गायी जाती है. ढोल व मांदर की लय-ताल पर महिलाएं थिरकती हैं. टुसू पर गाये जानेवाले गीतों में जीवन के हर सुख-दुख के साथ सभी पहलुओं का जिक्र होता है. ये गीत मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली बांग्ला भाषा में होती है.

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गुड़ पीठा समेत कई व्यंजन होता है खास

टुसू पर्व के मौके पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने घरों में गुड़ पीठा, मांस पीठा, मूढ़ी लड्डू, चूड़ा लड्डू और तिल लड्डू जैसे व्यंजन बनाते हैं. इसमें गुड़ पीठा सबसे खास है. गुढ़ पीठा के बगैर टुसू का त्योहार अधूरा जैसे रहता है. व्यंजनों में नारियल का प्रयोग होता है. जगह-जगह मेले का आयोजन होता है.

चाउल धुआ के साथ आज से शुरू होगा टुसू पर्व

13 जनवरी को चाउल धुआ के साथ टुसू पर्व शुरू होता है. पहले दिन घरों में नये आरवा चावल को भिंगोया जाता है. फिर लकड़ी की ढेकी में इसे कूट कर चावल का आटा बनाया जाता है. फिर इसी आटा से गुड़ पीठा तैयार किया जाता है. चावल धुआ के एक दिन बाद बाउंडी पर्व पर घरों में विशेष पूजा की जाती है. इस दिन घरों में पुर पिठा बना कर घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाते हैं. इसके बाद मकर का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 14 जनवरी को टुसू पर्व मनाया जायेगा. टुसू के मौके पर जलाशयों में स्नान कर कर नये वस्त्र धारण करते हैं. इसके बाद ही टुसू मेले में शिरकत करने लोग जाते हैं.

Posted By : Samir Ranjan.

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