UP Election 2022: समय गुजरने के साथ टूटता गया कांग्रेस का औरंगाबाद हाउस से रिश्ता, यहां पढ़ें सियासी कहानी

प्रियंका गांधी की रैली में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की जुटी भीड़ ने पार्टी के मनोबल को बढ़ाने का काम किया. औरंगाबाद हाउस से किसी भी चेहरे का ना दिख पाना एक कमी के रूप में खलता रहा.

By Prabhat Khabar News Desk | October 10, 2021 8:02 PM
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UP Election 2022: कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए अपनी तैयारी को लेकर कमर कस ली है. प्रियंका गांधी की वाराणसी में किसान न्याय रैली को लेकर प्रदेश सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. कांग्रेस किसान मुद्दे पर किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतेगी. प्रियंका गांधी की रैली में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की जुटी भीड़ ने पार्टी के मनोबल को बढ़ाने का काम किया. औरंगाबाद हाउस से किसी भी चेहरे का ना दिख पाना एक कमी के रूप में खलता रहा.

यूपी में कांग्रेस की राजनीति की धुरी रहे औरंगाबाद हाउस का पार्टी से बहुत पुराना नाता रहा है. चार पीढ़ियों का समायोजन पार्टी से जुड़ा रहा. पंडित कमलापति त्रिपाठी की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने में औरंगाबाद हाउस का ही जिक्र किया जाता है. परिवार से चौथी पीढ़ी मतलब पंडित कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी के इस्तीफा के बाद औरंगाबाद हाउस से कांग्रेस परिवार का पुराना नाता टूट गया. एक समय औरंगाबाद हाउस में पूर्वांचल से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार तक की राजनीति से जुड़े लोग अपने कार्यों के लिए हुजूम लगाए खड़े रहते थे. वहीं, पुराने कार्यकर्ताओं की अवहेलना से ललितेशपति त्रिपाठी ने इस्तीफा देकर सभी को चौंका दिया.

प्रियंका गांधी की रैली से औरंगाबाद हाउस की ‘दूरी’ बहुत सी दूरियों को बयान कर रही हैं कि, पंडित कमलापति त्रिपाठी का इंदिरा गांधी के हर यूपी से जुड़े राजनीतिक घटनाक्रम में योगदान रहता था. यदि इंदिरा गांधी को पूर्वांचल या यूपी में किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम की योजना बनानी होती थी तो पंडित कमलापति त्रिपाठी ही उसके योजनाकार रहते थे. उत्तर प्रदेश के सीएम के तौर पर पंडित कमलापति त्रिपाठी की दूरदर्शिता और उनकी लोक सेवा की भावना को लोग आज भी याद करते हैं.

ऐसे में औरंगाबाद हाउस की दूरी पुराने पार्टी कार्यकर्ताओं को खल रही है. कभी रेल मंत्री रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी की राजनीतिक विरासत संभालने और उसे आगे बढ़ाने वाली उनकी चौथी पीढ़ी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी के पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद किसान न्याय रैली में उनके पिता राजेशपति त्रिपाठी भी नहीं दिखे.

नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ कांग्रेस से जुड़ाव रखने वाले स्वतंत्रता सेनानी पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद उनके पुत्र स्व. लोकपति त्रिपाठी और बहू चंद्रा त्रिपाठी के बाद पौत्र राजेशपति त्रिपाठी ने कांग्रेस का झंडा थामा. उसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए ललितेशपति त्रिपाठी भी कांग्रेस के कई अहम पदों पर रहते हुए मिर्जापुर से विधायक चुने गए. उनके इस्तीफे के बाद यह सारा सिलसिला भी टूट गया था.

बराबर पार्टी से अवहेलना किए जाने की बात पर वो नाराज होकर पार्टी से अलग हो गए. अब, ललितेशपति अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कहां से करेंगे यह अभी साफ नहीं हो पाया है. कांग्रेस को धरातल पर अपनी मजबूत पकड़ बनानी है तो उसे पुराने और रूठे कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाना पड़ेगा. पुराने कार्यकर्ताओं के अनुभवों और योगदान की कमी कोई पूरा नहीं कर पाएगा. यदि कांग्रेस को फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनानी है तो पुराने कार्यकर्ताओं से जुड़कर रहना ही होगा.

(रिपोर्ट: विपिन सिंह, वाराणसी)

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