Home Badi Khabar बाबू कुंवर सिंह ने जख्मी बांह को तलवार से काट कर गंगा को कर दिया था समर्पित, जानिये क्यों कहे गये वीर

बाबू कुंवर सिंह ने जख्मी बांह को तलवार से काट कर गंगा को कर दिया था समर्पित, जानिये क्यों कहे गये वीर

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बाबू कुंवर सिंह ने जख्मी बांह को तलवार से काट कर गंगा को कर दिया था समर्पित, जानिये क्यों कहे गये वीर

पुस्तक ‘1857 : बिहार में महायुद्ध’ में लिखा है, कालपी से कानपुर तक मार्च नाना साहब, तात्या टोपे और कुंवर सिंह की संयुक्त रणनीति थी. तात्या टोपे के नेतृत्व में विद्रोहियों ने कालपी की ओर कूच किया. नाना साहब कानपुर के पास उनका इंतजार कर रहे थे. नाना साहब और उनके भाई उत्तर की ओर से होकर हमला करने वाले थे. कुंवर सिंह की सेना को दक्षिण में कालपी से आगे बढ़ना था. लेकिन, कानपुर में विद्रोही सेनाओं को हार का सामना करना पड़ा.

इसके बाद कुंवर सिंह लखनऊ पहुंचे. वहां वह डेढ़ महीना रहे और मार्टिनियर कॉलेज के भवन को कब्जे में रखा. इससे बेगम हजरत महल इतनी खुश हुईं कि उन्होंने . लखनऊ में कुंवर सिंह अपनी फौज संगठित करने के बाद फैजाबाद होते हुए आजमगढ़ पहुंचे. पुस्तक ‘1857 : बिहार में महायुद्ध’ में लिखा है, कुंवर सिंह ने 22 मार्च, 1858 को कर्नल मिलमैन को हरा कर आजमगढ़ पर कब्जा किया.

इसके बाद आजमगढ़ को मुक्त कराने के लिए गाजीपुर से कर्नल डेम्स व इसके बाद इलाहाबाद से लॉर्ड मार्क कीर को भेजा गया, लेकिन दोनों को विद्रोहियों ने बुरी तरह हरा दिया. इसके बाद लखनऊ से एडवर्ड लुगार्ड को आजमगढ़ भेजा गया. लुगार्ड की सेना के साथ कुंवर सिंह की बड़ी लड़ाई हुई. हालांकि, इसमें कुंवर सिंह की हार हुई, लेकिन अंग्रेजों की सेना को भारी नुकसान पहुंचा था. कठिन स्थिति में कुंवर सिंह ने जगदीशपुर लौटने का मन बना लिया.उनके लौटने की खबर ने अंग्रेजों में डर पैदा कर दिया था.

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अंग्रेजों ने गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, बनारस, छपरा हर तरफ घेराबंदी कर रखी थी, पर यह घेराबंदी धरी-की-धरी रह गयी, जब 21 अप्रैल, 1958 को कुंवर सिंह ने बलिया से 10 मील पूरब शिवपुर घाट से गंगा नदी को पार किया. इस दौरान उनके बांह व जांघ में गोली लगी. उन्होंने जख्मी बांह को तलवार से काट कर गंगा को समर्पित कर दिया. वह 22 अप्रैल को वह जगदीशपुर पहुंचे. विद्रोही जगदीशपुर के जंगलों में एकत्रित हो गये थे. कुंवर सिंह से मुकाबले के लिए ली ग्रांड के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज 22 अप्रैल की शाम आरा से रवाना हुई.

अगले दिन सुबह जगदीशपुर से दो मील दूर दुलौर गांव में अंग्रेजी फौज का विद्रोहियों से सामना हुआ. लेकिन, थोड़ी देर में ही विद्रोही पीछे हट गये. ली ग्रांड उनका पीछा करते हुए जंगलों में चले गये. जंगल में प्रवेश करते ही अंग्रेजी सेना पर कुंवर सिंह के सैनिक चारों तरफ से टूट पड़े. इससे अंग्रेजी सेना में आतंक फैल गया. ली ग्रांड ने पीछे हटने का आदेश दिया. अंग्रेज हड़बड़ी में भागने लगे.

पुस्तक ‘1857 : बिहार में महायुद्ध’ में वर्णित है कि उस लड़ाई में शामिल एक सैनिक ने उस वापसी को बाद में याद करते हुए लिखा-‘‘हरेक सैनिक अपनी जान बचा कर भाग रहा था. कमांडर का आदेश सुनने वाला कोई नहीं था….गांव से दो मील दूर पीछे हटते हुए कैप्टन ली ग्रांड को सीने में गोली लगी. उसकी मौत हो गयी. लेफ्टिनेंट मैसे और डॉ क्लार्क लू के कारण गिर गये और दुश्मनों के रहमो-करम पर छोड़ दिये गये.

जब वे आरा लौटे, तो 199 यूरोपियन सैनिकों में केवल 80 बचे थे.’’ इस तरह 23 अप्रैल, 1958 को अंग्रेजी फौज की करारी हार हुई और भारी क्षति उठानी पड़ी.कुंवर सिंह अपने महल लौट आये. हालांकि, तीन दिन बाद ही उनका निधन हो गया.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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