Bengal Chunav 2021: पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले राजनीतिक खेमों में बंटा टॉलीवुड

Bengal Chunav 2021: पश्चिम बंगाल चुनाव में शायद यह पहला मौका है, जब टॉलीवुड भी दो खेमो में बंट गया है. पश्चिम बंगाल में पहली बार सरकार बनाने की भाजपा की महत्वाकांक्षा और तीसरी बार सत्ता में आने की तृणमूल की कवायद ने बंगाली फिल्मोद्योग का राजनीतिक ध्रुवीकरण कर दिया है. टॉलीवुड को पार्टियों के लिए नया युद्ध स्थल बना दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 9, 2021 10:47 AM
an image

कोलकाता : पश्चिम बंगाल चुनाव में शायद यह पहला मौका है, जब टॉलीवुड भी दो खेमो में बंट गया है. पश्चिम बंगाल में पहली बार सरकार बनाने की भाजपा की महत्वाकांक्षा और तीसरी बार सत्ता में आने की तृणमूल की कवायद ने बंगाली फिल्मोद्योग का राजनीतिक ध्रुवीकरण कर दिया है. टॉलीवुड को पार्टियों के लिए नया युद्ध स्थल बना दिया है.

‘टॉलीवुड’ के नाम से प्रसिद्ध टॉलीगंज स्थित फिल्म उद्योग पर तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव वर्ष 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के पहले से था, लेकिन अब कई हस्तियों का झुकाव भाजपा की ओर होने से इसमें बदलाव होता दिख रहा है. अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को चुनाव के मैदान में उतारने की बनर्जी की रणनीति को अपनाते हुए भाजपा ने फिल्म उद्योग का समर्थन अपने पाले में करने के प्रयास शुरू कर दिये हैं.

भारतीय जनता पार्टी, अपने ऊपर लगे ‘बाहरी’ के ठप्पे से पीछा छुड़ाने और बंगाली जनमानस में पैठ बनाने के उद्देश्य से फिल्म उद्योग की नामचीन हस्तियों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. वहीं तृणमूल कांग्रेस, अपनी जमीन और मजबूत करने के लिहाज से फिल्म उद्योग से जुड़ी और अधिक हस्तियों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है.

दोनों ही पार्टियों का मानना है कि फिल्म जगत के लोग मतदाताओं के वोट तो नहीं खींच सकते, लेकिन वह ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों के निवासियों के राजनीतिक रुझान को प्रभावित जरूर कर सकते हैं.

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हर क्षेत्र के लोग हमारी पार्टी से जुड़ें. फिल्म उद्योग के लोगों के प्रशंसक बड़ी संख्या में होते हैं. तृणमूल सरकार ने टॉलीवुड में भी उसी प्रकार अराजकता फैलायी है, जैसा उन्होंने पूरे राज्य में किया है और अभिनेता इससे छुटकारा चाहते हैं.’

दिलीप घोष के आरोपों को निराधार बताते हुए तृणमूल ने कहा कि मौकापरस्त लोग दल बदल रहे हैं, क्योंकि जो बंगाली संस्कृति से जुड़े हुए लोग हैं, वह भाजपा जैसी बाहरी पार्टी को स्वीकार नहीं करेंगे.

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य सरकार में मंत्री अरूप विश्वास ने कहा, ‘भाजपा और बंगाली संस्कृति एक-दूसरे के विरोधी हैं. दोनों एक साथ नहीं चल सकते. जो भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उन्हें जल्दी ही इसका आभास होगा और अपने फैसले पर पछतावा होगा.’

फिल्मकार से भाजपा महिला मोर्चा की नेता बनीं संघमित्रा चौधरी ने आरोप लगाया कि अरूप विश्वास और उनके भाई स्वरूप विश्वास के कड़े नियंत्रण के चलते टॉलीवुड में भय का माहौल है. उन्होंने कहा, ‘सरकार से तंग आकर बंगाली फिल्मों के बहुत से अभिनेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, क्योंकि वह अपमानित होने से बचना चाहते हैं. हम वादा करते हैं कि हम स्थिति में परिवर्तन लायेंगे.’

इस आरोप का खंडन करते हुए विश्वास ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने कलाकारों और तकनीकी लोगों का राजनीतिक झुकाव देखे बिना उनके फायदे के लिए काम किया है. उन्होंने कहा, ‘भाजपा फिल्म जगत को बांटना चाहती है, जो हमेशा से प्रगतिशील और एकजुट रहा है.’ विश्वास के सुर में सुर मिलाते हुए तृणमूल प्रत्याशी सोहम चक्रवर्ती ने कहा कि केवल मौकापरस्त लोग ही पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं.

बाबुल सुप्रियो, रूपा गांगुली और लॉकेट चटर्जी जहां लंबे समय से भाजपा से जुड़े रहे हैं, वहीं रिमझिम मित्रा, अंजना बसु और कंचना मोइत्रा वर्ष 2019 चुनाव के बाद पार्टी में शामिल हुईं. महीना भर पहले रुद्रनील घोष के भाजपा में शामिल होने के बाद यश दासगुप्ता, पायल सरकार, हिरेन चटर्जी, पापिया अधिकारी और श्रावंती चटर्जी ने भी भाजपा का दामन थामा.

मिथुन चक्रवर्ती के बाद अब सुपरस्टार प्रसेनजित चटर्जी को भी भाजपा अपने पाले में लाने के लिए मेहनत कर रही है. हालांकि, चटर्जी ने किसी भी पार्टी में जाने से इनकार कर दिया है. तृणमूल ने भी फिल्म जगत की कम से कम 10 हस्तियों को हाल ही में पार्टी में लिया है और विधानसभा चुनाव में अभिनेत्री सायोनी घोष, कुशानी मुखर्जी और निर्देशक राज चक्रवर्ती को टिकट दिया है.

भाजपा और तृणमूल के अलावा टॉलीवुड में एक तीसरा वर्ग भी है, जो वाम मोर्चा का समर्थक है. इसमें कमलेश्वर मुखर्जी, सव्यसाची चक्रवर्ती, तरुण मजूमदार, अनिक दत्ता, श्रीलेखा मित्रा और बादशा मोइत्रा शामिल हैं. राजनीतिक विश्लेषक सुमन भट्टाचार्य का कहना है कि अभिनेताओं का राजनीतिक दलों में शामिल होना सफलता के लिए ‘शॉर्टकट’ अपनाने जैसा है.

Posted By : Mithilesh Jha

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version