अगस्त के महीने ने हमसे भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को छीन लिया. उनके जाने के बाद भारतीय राजनीति में एक बड़ा खालीपन रह गया. खास बात यह है कि अपने पांच दशकों के राजनीतिक जीवन में प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री के पद को छोड़कर सभी बड़े पदों पर काम किया था. अंग्रेजी भाषा पर उनकी पकड़ और लेखन क्षमता शानदार थी. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर उनकी बारीक पकड़ थी. प्रणब मुखर्जी को अपनी कुछ कमज़ोरियों का अहसास था. एक बार उन्होंने कहा था कि उनका अधिकांश जीवन राज्यसभा में बीता है. हिंदी बोलने में उन्हें काफी दिक्कत होती थी. माना जाता है कि हिंदी ठीक से नहीं बोल पाने के कारण ही प्रणब मुखर्जी खुद को प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं कर पाए थे. इन सबसे बावजूद प्रणब मुखर्जी को सभी पार्टियों का समर्थन मिलता था.
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