100वीं वर्षगांठ : झारखंड से गहरा नाता था इंदिरा गांधी का

!!अनुज कुमार सिन्हा!!... इंदिरा गांधी की साैंवी वर्षगांठ. यानी जन्म शताब्दी (जन्म 19 नवंबर 1917), पर इस शताब्दी समाराेह की देश में अभी बहुत चर्चा नहीं हाे रही. काेई तैयारी नहीं. संभव है तीन-साढ़े तीन साल में देश की राजनीति में जाे बदलाव हुआ है, कांग्रेस हाशिये पर अा गयी है, यह उसका ही असर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 19, 2017 7:22 AM
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!!अनुज कुमार सिन्हा!!

इंदिरा गांधी की साैंवी वर्षगांठ. यानी जन्म शताब्दी (जन्म 19 नवंबर 1917), पर इस शताब्दी समाराेह की देश में अभी बहुत चर्चा नहीं हाे रही. काेई तैयारी नहीं. संभव है तीन-साढ़े तीन साल में देश की राजनीति में जाे बदलाव हुआ है, कांग्रेस हाशिये पर अा गयी है, यह उसका ही असर हाे. राजनीति से अलग रख कर अगर भारतीय राजनीति का इतिहास देखें ताे उसमें इंदिरा गांधी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इंदिरा गांधी के याेगदान काे दरकिनार नहीं किया जा सकता है. अपवाद (खास कर आपातकाल) काे अगर किनारे रख कर बात करें ताे इंदिरा गांधी की एक छवि एक ताकतवर राजनीतिज्ञ की रही है. यहां इंदिरा गांधी के झारखंड संपर्क या झारखंड समझ पर अधिक चर्चा करेंगे, पर इस चर्चा के पहले इंदिरा गांधी द्वारा अपने कार्यकाल (प्रधानमंत्री रहने के दाैरान) में लिये गये निर्णय की बात अगर नहीं हाेगी ताे चर्चा अधूरी रहेगी.

याद रखिए कि इंदिरा गांधी ने 1966 से 1984 तक (1977 से 1980 के समय काे छाेड़ कर) लगातार शासन किया, प्रधानमंत्री रही. इस दाैरान उनकी जाे बड़ी उपलब्धियां थीं, उनमें 1971 के युद्ध में पाकिस्तान काे बुरी तरह पराजित कर बांग्लादेश का निर्माण करना, 1974 में भारत द्वारा पहली बार परमाणु विस्फाेट करना, सिक्किम का भारत में विलय आैर बैंकाें व काेल उद्याेग का राष्ट्रीयकरण प्रमुख है. आतंकवाद के खिलाफ उनका रूख कड़ा रहा आैर इसी में उनकी जान भी गयी. साेचिए, अगर पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ हाेता, पाकिस्तान कमजाेर नहीं हुआ हाेता ताे भारत के लिए आज वह आैर बड़ा खतरा हाेता. अगर भारत ने 1974 में परमाणु विस्फाेट नहीं किया हाेता, भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र नहीं हाेता ताे पाकिस्तान अपने परमाणु बम से भारत काे कितना हड़का रहा हाेता. अगर काेयला उद्याेग का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ हाेता ताे आज वहां काम कर रहे अफसराें-मजदूराें की क्या हालत हाेती, कितना शाेषण हाे रहा हाेता. ये सभी उनके जीवन के बड़े आैर ठाेस निर्णय थे. हां, उन्हाेंने अपना कद ही कुछ इस तरह बना लिया था कि अपने दल के सीनियर सहयाेगी भी उनके सामने बैठने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. नहीं (नाे) बाेलने की किसी में हिम्मत नहीं हाेती थी. यही कारण है कि जब उनसे गलतियां हाे रही थीं, किसी ने टाेका तक नहीं. ऐसी ही बड़ी गलती थी देश में आपातकाल लगाना. 1977 में इसी गलती के कारण उन्हें सत्ता से बाहर जाना पड़ा लेकिन गलतियाें से सबक लेकर तीन साल के भीतर ही उन्हाेंने सत्ता में वापसी की.

अब झारखंड की चर्चा हाे जाये. इंदिरा गांधी आदिवासी बहुल इस क्षेत्र काे बहुत पसंद करती थी. यहां के कई नेताआें से उनके निजी संबंध थे, उनकी बात मानती थी. इनमें कार्तिक उरांव भी थे, ज्ञानरंजन भी थे. इंदिरा गांधी जानती थी कि इस क्षेत्र के लाेगाें काे अलग झारखंड राज्य देना ही पड़ेगा. यहां के लाेगाें काे अलग पहचान देनी ही हाेगी. इसी कारण उन्हाेंने छाेटानागपुर-संतालपरगना क्षेत्रीय कांग्रेस के गठन काे मंजूरी दी थी. उनकी राजनीतिक समझ व्यापक थी. उन्हें पता था कि इस क्षेत्र में कांग्रेस तभी मजबूत हाे सकती है जब उसे आदिवासियाें का समर्थन मिले. तब टुंडी में शिबू साेरेन का दबदबा था. उनकी अगुवाई में महाजनाें के खिलाफ संघर्ष हाेता था. धान काटाे अभियान चलता था. आंदाेलनकारियाें ने ताेपचांची के पास एक दाराेगा की हत्या कर दी थी. इसकी जानकारी इंदिरा गांधी (तब वे प्रधानमंत्री थीं) काे मिली थी. उन्हाेंने बिहार सरकार के माध्यम से धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त केबी सक्सेना काे आदेश भेजा था कि शिबू साेरेन के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें. केबी सक्सेना ने जब शिबू साेरेन के काम काे देखा ताे उन्हाेंने अपनी रिपाेर्ट इंदिरा गांधी काे भेजवायी थी. इसमें उल्लेख था कि शिबू साेरेन काे मुख्यधारा में ला कर समाज का ज्यादा भला किया जा सकता है. हुआ भी वही. इंदिरा गांधी ने सरेंडर के बाद शिबू साेरेन काे बुला कर बात की आैर उसके बाद झारखंड मुक्ति माेरचा आैर कांग्रेस के बीच के संबंध प्रगाढ़ हुए थे. बाद में दाेनाें ने साथ में चुनाव भी लड़ा था. 1980 में जब गुवा गाेलीकांड हुआ, बिहार सरकार ने तीर-धनुष पर प्रतिबंध लगा दिया था. यानी गांव, जंगल या शहर कहीं भी तीर-धनुष लेकर चलना मना हाे गया था. उन दिनाें शिबू साेरेन दुमका से सांसद बन चुके थे. उन्हाेंने इंदिरा गांधी का समझाया था कि तीर-धनुष आदिवासियाें का जीवन है, सुरक्षा का हथियार है,जंगल में जानवराें से इसकी रक्षा करते हैं. इंदिरा गांधी शिबू साेरेन के तर्क से सहमत हाे गयी थी आैर तीर-धनुष पर से प्रतिबंध हटाने का बिहार सरकार काे आदेश दिया था.

छाेटानागपुर के कई क्षेत्राें का उन्हाेंने दाैरा किया था. रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर, बाेकाराे समेत कई शहराें में इंदिरा गांधी ने जनसभा भी की थी. भारत-पाक युद्ध के बाद वे हजारीबाग आयी थी आैर कर्जन ग्राउंड (आज का वीर कुंवर सिंह स्टेडियम) में लाेगाें काे संबाेधित किया था. झारखंड में अगर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय खुला ताे इसका श्रेय इंदिरा गांधी काे ही है. उन्हाेंने महसूस किया था कि सिर्फ पूसा में कृषि विवि रहने से दक्षिण बिहार का भला नहीं हाे सकता है. आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में कृषि काे बढ़ावा देने के लिए 26 जून 1981 काे इंदिरा गांधी ने रांची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय का उदघाटन किया था. बीआइटी, मेसरा (रांची) में 1983 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. पूरे देश के शीर्ष वैज्ञानिक इसमें आये हुए थे. इसका उद्घाटन करने के लिए इंदिरा गांधी रांची आयी थी. राजभवन में ठहरी थी. टाना भगत उनसे मिल कर अपनी बात रखना चाहते थे लेकिन न ताे अफसराेें ने आैर न ही कांग्रेस के नेताआें ने इंदिरा गांधी काे यह बात बतायी थी. किसी तरह इंदिरा गांधी काे यह खबर लग गयी. उन्हाेंने खुद टाना भगताें काे बुलाया आैर बात सुनी. उसी समय उन्हाेंने आदेश किया था कि टाना भगताें की जमीन उन्हें वापस दिलाने का उपाय किया जाये. हालांकि अभी तक टाना भगताें की समस्या नहीं सुलझी है. राजभवन में ही इंदिरा गांधी ने गुलाब प्रदर्शनी का उदघाटन किया था आैर कहा था कि रांची में एक राेज गार्डेन बनायें. तब रांची के डीसी थे मदन माेहन झा. बारी पार्क में राेज गार्डेन बनना था लेकिन कांग्रेसी नेताआें ने ही विराेध कर दिया था. इसके बाद वह याेजना धरी की धरी रह गयी. उसी दाैरे में अंतिम क्षणाें में ज्ञानरंजन ने अचानक इंदिरा गांधी काे बताया कि महिला सेवा दल के एक प्रशिक्षण शिविर का उदघाटन करना है. वे तैयार हाे गयी आैर उन्हाेंने महिला कांग्रेस सेवा दल के शिविर का उदघाटन भी किया.

इंदिरा गांधी कई बार बाेकाराे आयी थी. 6 अप्रैल 1968 काे उन्हाेंने बाेकाराे स्टील प्लांट के कंक्रीट वर्क का उदघाटन किया था. उनके साथ रूस (तब साेवियत संघ) के तत्कालीन राजदूत भी आये थे. 1972 में इंदिरा गांधी ने बाेकाराे में मजदूराें काे संबाेधित किया था. शहादत (31 अक्तूबर 1984) से लगभग डेढ़ माह पहले यानी 18सितंबर 1984 काे इंदिरा गांधी जमशेदपुर आयी थी आैर वहीं से दिल्ली दूरदर्शन के द्वितीय चैनल का उदघाटन करते हुए कहा था कि टेलीविजन के माध्यम से गरीब से गरीब आदमी भी उन सारी सूचनाआें आैर खबराें काे जान सकता है जाे पहले खास वर्ग तक सीमित था. झारखंड में इंदिरा गांधी के जीवन का वह अंतिम भाषण था.

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