अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व : संयम और शालीनता के साथ पत्रकारिता के पक्षधर

तरुण विजय... पूर्व सांसद, भाजपा अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व एक ऐसे स्वयंसेवक के पुण्य प्रवाह का प्रतिबिंब है, जिसकी कलम ने लिखा था- ‘गगन में लहराता है भगवा हमारा, रग-रग हिंदू मेरा परिचय और केशव के आजीवन तप की यह पवित्रम् धारा… साठ सहस ही तरेगा इससे भारत सारा.’ ‘हिरोशिमा की वेदना’ और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2017 5:24 AM
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तरुण विजय

पूर्व सांसद, भाजपा

अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व एक ऐसे स्वयंसेवक के पुण्य प्रवाह का प्रतिबिंब है, जिसकी कलम ने लिखा था- ‘गगन में लहराता है भगवा हमारा, रग-रग हिंदू मेरा परिचय और केशव के आजीवन तप की यह पवित्रम् धारा… साठ सहस ही तरेगा इससे भारत सारा.’

‘हिरोशिमा की वेदना’ और ‘मनाली मत जइयो’ उनके कवि हृदय की वेदना एवं उछाह दर्शाते हैं, तो एक समय ऐसा भी आया, जब दुख व कष्टों ने घेरा. अपनों की मार से हुई व्यथा ने उन्हें झकझोरा, पर वे टूटे नहीं. तार तोड़े नहीं.

वे अपनी बात कहने आये व्यक्ति को इस बात का अपार संतोष धन देते थे कि अटलजी ने मेरी बात सुन ली.

आज संगठनों और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सबसे बड़ी पीड़ा और वेदना इसी बात की है कि सब सुनानेवाले मिलते हैं, सुननेवाले नहीं. मैंने एक बार अटलजी से कहा कि आपके साथ दिल्ली से मथुरा दीनदयाल धाम तक अकेले चार घंटे सफर करने का मौका मिला. बहुत कुछ सुनाने के भाव से मैं ही बकबक करता गया और आप सुनते रहे. इतना धैर्य कहां से आया? अटलजी खूब हंसे और बोले- यह तो मन की बात है.

सुनने से कुछ मिलता ही है. जो पसंद आये उसे रख लो, बाकी छोड़ दो. जब वे दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने, तो अधिक आत्मविश्वास के साथ कठोर निर्णय भी लेने में हिचकिचाये नहीं. पोखरण-2 का विस्फोट ऐसा ही चमत्कारिक क्षण था. अमेरिका जैसा तथाकथित सर्वशक्तिशाली देश भी भौंचक्का और हैरान रह गया. दुनियाभर से प्रतिबंध लगने लगे, पर अटलजी ने परवाह नहीं की. अमेरिका से सुपरकंप्यूटर नहीं मिला, तो महान वैज्ञानिक विजय भाटकर को प्रोत्साहित कर भारत में ही सुपरकंप्यूटर बनवाया. क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिला, तो भारत में ही उसका विकास किया.

करगिल में पाकिस्तान को करारी शिकस्त देने के बाद भी आगरा शिखर वार्ता उनके आत्मविश्वास का ही द्योतक थी.

सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति, मोबाइल टेलीफोन को सस्ता बनाकर घर-घर पहुंचाना भारत के ओर-छोर स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्गों से जोड़ना और हथियारों के मामले में भारत को अधिक सैन्य सक्षम बनाना अटलजी की वीरता एवं विकास केंद्रित नीति के शानदार परिचय हैं. पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद और गांधी चिंतन में उनकी गहरी श्रद्धा थी, इसलिए भाजपा निर्माण के बाद उन्होंने गांधीवादी समाजवाद को अपनाया.

अटलजी अपने घनघोर विपक्षी पर भी घनघोर व्यक्तिगत प्रहार के पक्षधर नहीं थे. हम पांचजन्य में उन दिनों सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की आलोचना करते हुए अकसर तीखी आलोचना करते थे.

ऐसे ही एक अंक को देखकर उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से ही फोन किया- विजयजी, नीतियों और कार्यक्रमों पर चोट करिए, व्यक्तिगत बातों को आक्षेप से बाहर रखिए, यह अच्छा होगा. एक बार हमने धर्मक्षेत्रे अंक निकाला, जिसके मुखपृष्ठ पर काशी के डोमराजा के साथ संतों, शंकराचार्य और विश्व हिंदू परिषद् के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंहल का भोजन करते हुए चित्र छपा. अटलजी यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि ऐसी बातों का जितना अधिक प्रचार-प्रसार हो, उतना अच्छा है. एेसे कार्यक्रम और होने चाहिए, लेकिन मन से होने चाहिए, सिर्फ फोटो-वोटो के लिए नहीं. पांचजन्य के प्रथम संपादक तो थे ही, प्रथम पाठक भी थे. प्रधानमंत्री रहते हुए हमारे अंकों पर उनकी प्रतिक्रियाएं मिलती थीं.

एक बार स्वदेशी पर केंद्रित हमारे अंक के आवरण पर भारत माता का द्रौपदी के चीरहरण जैसा चित्र देख वे क्रुद्ध हुए- ‘हमारे जीते जी ऐसा दृश्यांकन? हम मर गये हैं क्या? संयम और शालीनता के बिना पत्रकारिता नहीं हो सकती क्या?’

अटलजी के संपादकत्व में पांचजन्य, राष्ट्रधर्म, स्वदेश, हिंदुस्तान जैसे पत्र निकले. उन्होेंने इन सभी पत्रों को एक नयी दिशा और कलेवर दिया. वे संघर्ष के दिन थे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के साथ कठिनाइयों में भी खूब मेहनत से काम करते. तब उन्होंने लिखा था- बाधाएं आती हैं आयें, घिरे प्रलय की घोर घटाएं… कदम मिलाकर चलना होगा…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटलजी के जन्मदिन को सुशासन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया. सुशासन पर अटलजी ने एक साक्षात्कार में कहा था- ‘देश को अच्छे शासन की जरूरत है. शासन अपने प्राथमिक कर्तव्यों का पालन करे, हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा दे, उसके लिए शिक्षा, उपचार और आवास का प्रबंध करे, इसकी बड़ी आवश्यकता है.’

अटलजी दीर्घायु हों. उनका जीवन शतशत वसंतों की उत्सवी गंध से सुवासित रहे. वे भारत के राष्ट्रीय नेतृत्व का मानक बने हैं. यह मानक भारत को उजाला दे.

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