कैसे बनता इलेक्ट्रिक हाईवे
इलेक्ट्रिक हाईवे बनाने के लिए दुनियाभर में तीन अलग-अलग तरह की टेक्नोलॉजी ई-हाईवे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, जिसमें पेंटोग्राफ मॉडल, कंडक्शन मॉडल और इंडक्शन मॉडल शामिल हैं. पेंटोग्राफ मॉडल में सड़क के ऊपर एक तार लगाया जाता है, जिसमें बिजली दौड़ती रहती है. एक पेंटोग्राफ के जरिए इस बिजली को वाहन में सप्लाई किया जाता है. यह इलेक्ट्रिसिटी डायरेक्ट इंजन को पॉवर देती है या वाहन में लगी बैटरी को चार्ज करती है. फिलहाल, भारत की ट्रेनों में इसी मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए सरकार स्वीडन की कंपनियों से बात कर रही है. माना जा रहा है कि स्वीडन वाली टेक्नोलॉजी ही भारत में भी लाई जाएगी.
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इलेक्ट्रिक हाईवे का फायदा
इलेक्ट्रिक हाईवे का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इससे वाहनों की आवाजाही पर आने वाले खर्च में भारी कमी आने की संभावना है. एक आंकड़े के मुताबिक, इलेक्ट्रिक हाईवे से लॉजिस्टिक लागत में 70 फीसदी की कमी आएगी. फिलहाल, ट्रांसपोर्टेशन लागत का ज्यादा होना चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी की एक बड़ी वजह है. ऐसे में, अगर अट्रांसपोर्टेशन लागत में कमी आएगी, तो महंगाई कम हो सकती है. वहीं, यह पूरी तरह से इको फ्रेंडली होगा. वाहनों को चलाने के लिए इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल किया जाएगा, जो पेट्रोल-डीजल के मुकाबले पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होगी.
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कौन-कौन सी गाड़ियां चलें
डन और जर्मनी जैसे देशों में इनका इस्तेमाल माल वाहन के लिए ही किया जाता है. निजी वाहन इलेक्ट्रिसिटी से चलती तो हैं, लेकिन इन्हें बैटरी की मदद से चलाया जाता है. सीधी सप्लाई केवल ट्रक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल हो रहे वाहनों में ही दी जाती है. निजी वाहनों की सुविधा के लिए इस हाईवे पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर चार्जिंग स्टेशन बनाया जाएगा, जहां इन्हें चार्ज किया जा सकेगा.
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