DU:  भारत को सिर्फ आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व का केंद्र बनना होगा

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता कार्यालय (डीएसडब्ल्यू) द्वारा सेमिनार का आयोजन किया गया. सेमिनार का मकसद भारतीय शिक्षा प्रणाली के मौजूदा दौर में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने के महत्व पर चर्चा करना है.

By Vinay Tiwari | October 16, 2024 5:01 PM
an image

DU: भारत में शिक्षा का गौरवशाली इतिहास रहा है. प्राचीन काल में भारत वैश्विक स्तर पर शिक्षा का केंद्र था. दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता कार्यालय (डीएसडब्ल्यू) द्वारा सेमिनार का आयोजन किया गया. सेमिनार को संबोधित करते हुए डीन ऑफ कॉलेज प्रोफेसर बलराम पाणी ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली का इतिहास काफी पुराना है. प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली ने नैतिकता और चरित्र निर्माण को केंद्र में रखा था. लेकिन समय के साथ शिक्षा का उद्देश्य बदल गया.

ऐसे में शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगारपरक नहीं होना चाहिए, बल्कि नैतिक नेतृत्व और समाज सेवा को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए. युवाओं को राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि भविष्य के भारत को शिक्षित, जागरूक और जिम्मेदार नागरिकों की आवश्यकता है. इस मौके पर प्रोफेसर प्रकाश सिंह ने कहा कि भारतीय समाज ने सदियों से विविधता में एकता को बनाए रखा है. भारत की सहिष्णुता और समावेशिता हमारा आधार रहा है और यही राष्ट्रीय चरित्र की पहचान है. भारत का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब हम आधुनिकता के साथ अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहेंगे. 


राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका है महत्वपूर्ण


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर रंजन कुमार त्रिपाठी ने कहा कि इस विषय पर कई सेमिनार का आयोजन किया जायेगा. सेमिनार का मकसद दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए युवाओं को प्रेरित करना है. बुधवार को आयोजित सेमिनार का विषय है ‘भारत बोध: अतीत, वर्तमान एवं भविष्य’. भारत बोध का अर्थ केवल भौगोलिक सीमाओं का ज्ञान नहीं है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को आत्मसात करना है. उन्होंने वर्तमान पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं से जुड़ने को कहा ताकि आधुनिक चुनौतियों का सामना आत्मविश्वास के साथ किया जा सके.

भविष्य में भारत को वैश्विक नैतिक नेतृत्व के रूप में स्थापित करने की दिशा में शिक्षा का अहम रोल होगा. इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रोफेसर रमेश कुमार पांडे ने कहा कि भारत की सभ्यता की नींव प्राचीन संस्कृत साहित्य और वैदिक परंपराओं में निहित है, जिनमें धर्म, न्याय, अहिंसा और सत्य के मूल सिद्धांत शामिल हैं. सांस्कृतिक विविधता के बावजूद, भारत ने सह-अस्तित्व और एकता का मार्ग प्रशस्त किया है. गुरुकुल और शास्त्रार्थ परंपराएं शिक्षा और ज्ञान के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण माध्यम थीं. वर्तमान भारत को वैश्विक संदर्भ में अपने सांस्कृतिक मूल्यों को फिर से पहचानने और उन्हें आधुनिक समाज में आत्मसात करने की आवश्यकता है. भारत को केवल आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व के केंद्र के रूप में उभरना चाहिए.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

Education News in Hindi: education news, career news, employment news, Job alerts news in Hindi at Prabhat Khabar

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version