गया के पटवाटोली से निकल किया है टॉप
गया जिला स्थित मानपुर प्रखंड के पटवाटोली गांव को आईआईटी के गढ़ के रूप में जाना जाता है. यहां के साधारण परिवारों के बच्चे भी असाधारण सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करते हैं. ऐसे ही गांव से निकलकर मतंगराज ने दिखा दिया कि जब लक्ष्य पर ध्यान और मन में विश्वास हो, तो रास्ते खुद बन जाते हैं और जो असंभव है उसे भी संभव बना देते हैं.
मतंगराज की आंखों की रोशनी बहुत कम है और वे शारीरिक रूप से भी दिव्यांग हैं. लेकिन उन्होंने अपनी कमजोरी को कभी अपनी तरक्की में बाधा नहीं बनने दिया. OBC-PwD कैटेगरी में 84वीं रैंक हासिल कर उन्होंने साबित कर दिया कि असली संघर्ष शरीर से नहीं बल्कि मन से होता है. यह कहानी उन सभी लोगों के लिए है जो अपनी शारीरिक कमजोरी को बाधा मानते हैं और हमेशा इसके कारण पिछड़ जाते हैं.
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Success Story in Hindi: संघर्षों से सीख, बनाया है रास्ता
मतंगराज का परिवार बेहद गरीब है. उनके माता-पिता सूरत में कपड़ा फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं. इसके बावजूद उन्होंने बेटे की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी. मतंगराज ने प्रारंभिक शिक्षा मानपुर पॉलिटेक्निक हाई स्कूल से की और इंटरमीडिएट की पढ़ाई ब्रिटिश इंग्लिश स्कूल से पूरी की.
मैट्रिक के बाद उन्होंने ‘वृक्ष बी द चेंज’ नाम की संस्था से जुड़कर फ्री कोचिंग ली, जहां से उनके सपनों को दिशा मिली. संस्थान ने उन्हें न सिर्फ पढ़ने का माहौल दिया, बल्कि किताबें और स्टडी मटेरियल भी मुफ्त मुहैया कराया. आंखों की परेशानी के बावजूद मतंगराज रोज 6 से 8 घंटे पढ़ाई करते थे. उन्हें परीक्षा में एक घंटा अतिरिक्त समय मिलता था. ग्रुप डिस्कशन, मॉडल पेपर और नियमित सेल्फ स्टडी सेशन ने उनकी तैयारी को धार दी, और आखिरकार अंतिम में उन्हें इस कठिन संघर्षों का फल सफलता के रूप में मिली.
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गांव को दिया गर्व का मौका
मतंगराज की सफलता की खबर मिलते ही उनके गांव में खुशी की लहर दौड़ गई. माता-पिता की आंखें नम थीं, लेकिन उनमें गर्व था. गांववाले भी इस उपलब्धि से पूरे गदगद हैं. मतंगराज अब एक अच्छे इंजीनियर बनकर समाज और परिवार के लिए कुछ करना चाहते हैं. उनकी कहानी उन लाखों छात्रों के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों से घबराकर अपने सपने अधूरे छोड़ देते हैं. मतंगराज ने दिखा दिया कि अगर हौसले बुलंद हों, तो मंजिल कहीं दूर नहीं.