Success Story: झारखंड की बेटी बनी प्रेरणा की मिसाल, गांव से तय किया हार्वर्ड तक का सफर

Success Story: झारखंड के छोटे से गांव से निकलकर सीमा कुमारी ने गरीबी, रूढ़ियों और बाल विवाह जैसी चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए हार्वर्ड तक का सफर तय किया. उनकी कहानी बताती है कि अगर हौसले मजबूत हों तो सपनों का सच होना तय है.

By Pushpanjali | May 19, 2025 11:02 AM
an image

Success Story: झारखंड के एक छोटे से गांव दाहू में जन्मी सीमा कुमारी की कहानी बताती है कि अगर मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती. जहां लड़कियों को घर से बाहर कदम रखने की इजाजत नहीं थी, वहां से निकलकर सीमा ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हार्वर्ड तक का सफर तय किया. यह सिर्फ उनकी नहीं, पूरे देश की बेटियों के लिए प्रेरणा की कहानी है.

दाहू गांव से शुरुआत

सीमा झारखंड के पलामू जिले के दाहू गांव की रहने वाली हैं, जहां की आबादी करीब 1,000 है. गांव पिछड़ा था, रूढ़ियों से भरा हुआ और खासकर लड़कियों की शिक्षा को लेकर बेहद संकीर्ण सोच रखता था. साल 2012 में एक NGO गांव में लड़कियों को फुटबॉल के ज़रिए सशक्त बनाने का कार्यक्रम लेकर आया. उस समय सीमा महज 9 साल की थीं. एक दिन घास काटते वक्त उन्होंने कुछ लड़कियों को फुटबॉल खेलते देखा. वो दृश्य उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने भी उस संस्था से जुड़ने की ठानी.

फुटबॉल से मिली नई राह

घरवालों की अनुमति से सीमा फुटबॉल खेलने लगीं. उन्होंने मेहनत की, सीखा और फिर कई जिलास्तरीय और राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया. उन्होंने खेल के जरिए न केवल अपना आत्मविश्वास बढ़ाया बल्कि अपने गांव की सीमाएं भी लांघीं. सीमा ने राष्ट्रीय स्तर तक खेला और फिर अंतरराष्ट्रीय कैंपों में भी भाग लिया. साथ ही, पढ़ाई को भी कभी नहीं छोड़ा.

गरीबी और संघर्ष की दास्तान

सीमा के परिवार में 19 सदस्य एक ही घर में रहते थे. माता-पिता धागा फैक्ट्री में मजदूरी कर के घर चलाते थे. आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि दो वक्त की रोटी भी बड़ी बात थी. लेकिन फिर भी सीमा के माता-पिता ने उनका दाखिला सरकारी स्कूल में कराया. सीमा घर के काम करतीं, मवेशी चरातीं, खेतों में काम करतीं और चावल की देसी बीयर बेचकर घर चलाने में हाथ बंटाती थीं.

कम उम्र में बनीं फुटबॉल कोच

सीमा की फुटबॉल प्रतिभा को देखते हुए उसी NGO ने उन्हें युवा लड़कियों की कोचिंग देने का अवसर दिया. इससे मिली कमाई से उन्होंने अपनी स्कूल फीस भरी. यहीं से सीमा को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिली.

बाल विवाह का विरोध और शिक्षा का जुनून

गांव में जब उनके लिए कम उम्र में शादी की बात शुरू हुई, तो सीमा ने इसका कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा कि वो पहले पढ़ाई करेंगी और अपने सपनों को पूरा करेंगी. स्कूल के शिक्षकों ने भी उनका साथ दिया और उन्हें विदेशों में पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया.

झारखंड से अमेरिका तक का सफर

सीमा की मेहनत रंग लाई. 2018 में उन्हें वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के समर प्रोग्राम के लिए चुना गया. 2019 में वह इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी पहुंचीं. इसके बाद अमेरिका के एक एक्सचेंज प्रोग्राम में उनका चयन हुआ और उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप मिली. आज सीमा हार्वर्ड में अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रही हैं और अपने गांव की पहली लड़की हैं, जिन्होंने यह मुकाम हासिल किया.

Also Read: Indian Army School: यहां से शुरू होती है अफसर बनने की राह, जानें Admission का आसान तरीका

Also Read: Vaibhav Suryavanshi Result: IPL के सुपरस्टार बिहार के वैभव बोर्ड रिजल्ट में फेल? जानें Viral Post का सच

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

Education News in Hindi: education news, career news, employment news, Job alerts news in Hindi at Prabhat Khabar

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version