women’s day 2025 :मिसेज की निर्देशिका ने स्वीकारा इंडस्ट्री में वर्किंग मदर की काबिलियत को आंका जाता है कम

महिला दिवस के मौके पर निर्देशिका आरती कदव ने इस इंटरव्यू में अपनी फिल्म के साथ -साथ महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर भी बात की है.

By Urmila Kori | March 8, 2025 9:05 AM
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women’s day 2025 :जी 5 पर रिलीज हुई फिल्म ‘मिसेज’ मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडिया किचन’ का हिंदी रीमेक है. सान्या मल्होत्रा स्टारर इस फिल्म ने रिलीज के साथ ही एक बार फिर से पितृसत्ता समाज पर बहस छेड़ दी है.इस फिल्म की निर्देशिका आरती कदव ने महिला दिवस के मौके पर अपनी इस फिल्म के साथ -साथ पितृसत्ता समाज और वर्किंग महिलाओं से जुडी चुनौतियों पर बात की है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

इंडस्ट्री से भी अच्छे रिस्पॉन्स मिले

मुझे बहुत अच्छे -अच्छे और दिल को छू लेने वाले रिस्पांस मिलेहैं। आम लोगों के साथ -साथ इंडस्ट्री से भी बहुत अच्छी बातें सुनने को मिली। गजराज राव जी ने कहा कि उन्होंने दो बार फिल्म देखी।  श्वेता त्रिपाठी को भी फिल्म बहुत अच्छी लगी. उन्होंने मुझसे फ़ोन पर लम्बी बातचीत भी की.

मिसेज ने सोचने को मजबूर किया है 

जो लोग बोल रहे हैं कि ये टॉक्सिक फेमिनिज्म है. वे भी पुरुष सत्ता सोच की ही देन है. मुझे तो कई महिलाओं ने कहा कि आपने अपनी फिल्म में कम दिखाया है. सिलबट्टे पर सिर्फ चटनी पीसने तक बात नहीं है. हमें तो प्रेशर कुकर में दाल और चावल बनाने की भी मनाही है क्योंकि उसमें जल्दी पक जाता है तो फिर भगोने वाला स्वाद नहीं आ पाता है. महिलाओं के साथ दिक्कत ये है कि उन्होंने मान लिया था कि ये मेरी किस्मत है.फिल्म आने के बाद जो बदलाव मैंने महसूस किया वो ये कि उन्होंने खुद से पूछना शुरू कर दिया कि हमने ये कैसे मान लिया. हम औरतों को कमतर बनाने के लिए ही यह समाज में नियम बना दिए गए हैं कि किसी भी दूसरी चीज से  ज्यादा घर और बच्चा आपकी प्राथमिकता है.  इस बात से महिलाओं को इतना कन्फ्यूज किया गया कि वो सोचने लगी कि घर ही दुनिया है और पति ,बच्चे सबकुछ. बाद में मालूम पड़ा कि असल में ये स्कैम था.इस चक्कर में ना पैसे कमा पाए. ना अपनी कोई वैल्यू बना पाए.मैं महिलाओं से यही कहूंगी कि घर ,परिवार के नाम पर अपने सपनों को ना मारें. आर्थिक रूप से खुद को मजबूत बनाएं तो ही उनकी वैल्यू होगी.

हरमन बावेजा ने किया था अप्रोच

द ग्रेट इंडियन किचन तमिल के अलावा और भी एक भाषा में रिलीज हुई है और हमने इसका हिंदी रीमेक किया है.हरमन बावेजा ने फिल्म के रीमेक राइट्स लिए थे. आठ से नौ निर्देशकों को उन्होंने निर्देशन के लिए अप्रोच किया था और बात की थी. उन्होंने मुझे इसलिए चुना क्यूंकि उनकी तरह मेरी भी सोच मलयालम फिल्म के एसेंस को बरकारकर रखना है. उन्हें मेरे इंटरव्यू के दौरान यही बात सबसे ज्यादा पसंद आयी थी.

नार्थ सेंसिबिलिटी को जोड़ा 

हर फिल्म के रीमेक होने की अपनी वजह होती है. हम चाहते हैं कि लोग ये सब पर बातें करें. हमारी फिल्म के कारण करें या हमारी फिल्म को देखने के बाद ओरिजिनल देखें. हमारे लिए एक ही बात होगी. मूल फिल्म वाला ही हमारा एसेंस है लेकिन मिसेज में नार्थ इंडियन सेंसिबिलिटी को भी थोड़ा लाया गया. डांस वांस डाला. घर सुंदर किया. लाइट अच्छी की. रीयलिस्टिक हो,लेकिन थोड़ा खूबसूरत भी हो. किरदार में भी थोड़ा कुछ बदलाव लाया. ऋचा पैशनेट है शादी और सेक्स को लेकर। अपनी बातें  भी कुछ डाली  जैसे मैं खाना बनाते हुए खाती हूँ. फिल्म में उसके लिए बुआ ताने भी मारती है. मैं बताना चाहूंगी कि हमारी फिल्म की टीम में बहुत सारी महिलाएं थी.  प्रोडक्शन ,एडिटिंग सभी में जिससे इस फिल्म की शूटिंग भी बहुत यादगार हुई। जब ऋचा अपने पति को जवाब देती  थी तो उसके दर्द को हम भी महसूस कर पाते थे कि वह समझ रही है कि उसकी शादी यहाँ से टूटने वाली है.

 सान्या मल्होत्रा ट्रू आर्टिस्ट 

इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा के साथ काम करके बहुत मजा आया क्योंकि वह बहुत ही कमाल की एक्ट्रेस हैं. उनकी एम्पैथी  बहुत हाई है. वह ट्रू आर्टिस्ट हैं. वो किरदार के अंदर का दर्द इतनी स्ट्रांगली महसूस करती थी कि मैं भी हिल जाती थी. बस ग्लिसरीन लगाकर रोना है. वैसे वाली आर्टिस्ट नहीं है. मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म के बाद उन्हें और अच्छे किरदार मिलेंगे।  वह सचमुच.अपने कन्धों पर पूरी फिल्म को कैरी कर सकती हैं.इमोशनल तौर पर यह फिल्म उनके लिए बहुत मुश्किल है। खासकर शादी के नाम पर रेप इस पहलू ने सान्या को शूटिंग के दौरान बहुत इमोशनल किया था.

 मेरे पति में बदलाव आया है 

मैं अपने काम को लेकर बहुत जुनूनी हूं. ऑफिस और घर दोनों मैनेज करती हूँ. घर में कुक है. कुक को मैनेज करना. क्या खाना बनेगा. ये सब मेरी जिम्मेदारी होती है. मैं बताना चाहूंगी कि इस फिल्म को देखने के बाद मेरे पति  काफी बदल गए हैं. रविवार को मेरे कुक  की छुट्टी रहती है। तो अब वह  बोलते हैं कि आज मैं खाना बना देता हूँ. खाने में क्या बनाऊं राजमा या कुछ.पहले मुझे ही मैनेज करना पड़ता था।

महिलाओं को ज्यादा साबित करना पड़ता है

मैं करियर ओरिएंटेड महिला हूँ. शादी और मां बनने के बाद मेरा काम के प्रति जूनून और समर्पण कम नहीं हुआ है लेकिन समाज की सोच जरूर बदली है. एक आदमी जब पिता बनता है ,तो लोग कहते हैं कि यह अपना काम अब और जिम्मेदारी के साथ करेगा लेकिन हम महिलाएं जब मैटरनिटी लीव से आती हैं तो आसपास के लोग शक की निगाह से देखने लगते हैं ,तो कई बार डायरेक्ट बोलते हैं कि बच्चा हो गया है. क्या पहले की तरह काम कर पाएगी या नहीं. इसके लिए हम औरतें और ज्यादा मेहनत करती हैं ताकि लोग हमको बोल ना पाए.सिंगल लड़का लेट आये चलेगा. हमें समय से पहले पहुंचना पड़ता है. जब सोसाइटी को सपोर्ट करना चाहिए तो औरतों को और ज्यादा साबित करना पड़ता है.  

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