babil khan: फिल्म ‘कला’, ‘द रेलवे मैन’ जैसे प्रोजेक्ट्स में अपने अभिनय के लिए वाहवाही बटोर चुके अभिनेता बाबिल खान जी 5 पर हालिया रिलीज हुई फिल्म ‘लॉगआउट’ को लेकर सुर्खियों में हैं. मोबाइल और सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव को दिखाती इस फिल्म को बाबिल मौजूदा समय की जरूरत करार देते हैं. उनकी इस फिल्म, सोशल मीडिया, ट्रोलिंग, उनके पिता इरफान खान की लिगेसी पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत के अंश.
फिल्म लॉगआउट को ‘हां’कहने की आपकी क्या वजह थी?
(हंसते हुए) सच कहूं, तो मैंने ‘हां’ नहीं कहा है, बल्कि इसके मेकर्स ने मुझे ‘हां’कहा है. मैंने ऑडिशन दिया था. उनको मेरा ऑडिशन पसंद आया. उसके बाद उन्होंने मुझे बुलाया.
आप अपने किरदारों में रच बस जाने के लिए काफी मेहनत करते हैं. इस किरदार के लिए आपकी क्या तैयारी थी?
मैं कभी एक्टिंग स्कूल नहीं गया हूं. सच कहूं, तो मुझे एक्टिंग स्कूल जाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि एक्टिंग स्कूल खुद घर पर ही था. मैंने जो कुछ भी सीखा है, बचपन से अपने मां और बाबा को देखते हुए सीखा है. उनके काम को देखते हुए मैंने आर्ट सीखा है. हां, इस फिल्म ने मुझे क्राफ्ट के प्रति महत्व को बहुत सिखाया है. इस फिल्म में इंप्रोवाइजेशन का स्कोप ज्यादा नहीं है. आपको बीट पर लाइन बोलना बहुत जरूरी है, वरना पिक्चर की पूरी पेसिंग खराब हो जाती. टेक्निकेलिटीज बहुत थीं. जैसे-जो कैमरा है, उसमें अपनी बॉडी को ध्यान रखते हुए इमोशन के साथ परफॉर्म करना है. इस फिल्म की पूरी शूटिंग एक कमरे में हुई है. सिर्फ क्लाइमेक्स कहीं और शूट हुआ है. आर्ट और क्राफ्ट का जो बैलेंस होता है, इस फिल्म ने मुझे बहुत सिखाया है.
आप अपने पिता की फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ के कैमरा वर्क टीम से जुड़े थे. वो कितना काम आया ?
हां, वो काम आया. हालांकि, मैं फोटोग्राफी बचपन से कर रहा हूं. अपने बाबा की वजह से मैं फिल्म स्कूल वाले एनवायरमेंट में ही पला-बड़ा हूं. अगर 50 लिखा हुआ है शॉट में, तो कैमरा कहां तक जायेगा मुझे खुद को मॉनिटर में जाकर देखना नहीं पड़ता है. मुझे फर्क नहीं पड़ता है कि मैं कैसा दिख रहा हूं. मुझे पता है कि मुझे कहां पर रुकना है. यह मुझे फिल्मों में आने से पहले मालूम था.
आप निजी जिंदगी में मोबाइल पर कितना समय बिताते हैं?
मुझे फोन से नफरत है. मुझे लोगों से मिलना-जुलना ज्यादा पसंद है, बजाय फोन पर बात करना. जब आप किसी से मिलते हैं, तो आपको पता चल पाता है कि सामने वाला व्यक्ति कितना उत्साह से मिल रहा है. फिर आप भी उसी तरह से रिएक्ट करते हो. फोन आपको एस्केप करने का जरिया हो गया है. आपको कुछ भी फील हो रहा है, उसको समझने की बजाय आप रील देखने लगते हो. बस खुद से भाग रहे हो आप. खुद से नहीं जुड़ रहे हो, आप दुनिया से जुड़ रहे हो. मुझे लगता है कि फोन का काम सिर्फ कम्युनिकेशन का है. उससे ज्यादा कुछ नहीं है. अपने प्रोफेशन की वजह से मुझे स्मार्टफोन रखना पड़ता है, वरना मैं डब्बा फोन रखूं. उसका फायदा भी होता था. आपकी टाइपिंग स्पीड उससे अच्छी हो जाती थी, क्योंकि एक की के लिए तीन बार प्रेस करना पड़ता है. मैं बताना चाहूंगा कि मुझे फोन से किस कदर डिटैचमेंट है. मैं स्कूबा डाइविंग के लिए अंडमान गया था. मुझे फोन आया कि यह काम आया है, आप वापस आ जाओ. मैंने बोला, आता हूं. मैंने फोन कट किया और उसे समुद्र में फेंक दिया. यह सच्ची कहानी है. अगर आप कभी इंडिया स्कूबा डाइविंग में जाओगे, तो आप पूछ लेना, क्या कभी बाबिल ने मोबाइल फोन फेंक दिया था.
आपका पहला मोबाइल कौन-सा था और सोशल मीडिया पर अकाउंट कब बनाया था ?
15 साल की उम्र में मुझे नोकिया का फोन मिला था. मैं कहां हूं, ठीक हूं, बस इसके लिए पेरेंट्स ने फोन दिलाया था. स्मार्टफोन 22 साल की उम्र में मिला था. सोशल मीडिया अकाउंट की जहां तक बात है, तो 16 साल की उम्र में एक बनाया था, लेकिन वह एक्टिव नहीं था. जब यूनिवर्सिटी गया, तो मेरा एक पर्सनल सोशल मीडिया अकाउंट हुआ करता था. मेरे दोस्तों ने मेरे लिए बनाया था, क्योंकि उस वक्त फोन पर मैसेज करने के लिए चार्ज लगते थे. इसलिए सोशल मीडिया के अकाउंट के जरिये मैसेज करते थे.
सोशल मीडिया का वेलिडेशन आपके लिए कितना मायने रखता है?
फिल्म ‘काला’ के बाद जो भी मुझे सफलता मिली, उससे मैं बहुत ही अट्रैक्ट हो गया था. मुझे भी वेलिडेशन अच्छा लगने लगा था. मुझे लगा रियल लव है. नये होते हैं, तो एक इनोसेंस भी होता है. मैंने दिल खोलकर बात किया. फिर बाद में महसूस हुआ कि यह वर्चुअल लाइफ है. यहां कुछ भी रियल नहीं है. कुछ चीजें हमें अपने अंदर रखनी होती हैं. हम सबको नहीं बता सकते हैं. आप दिल से कह देते हो और लोग उसी को आपके खिलाफ इस्तेमाल करने लगते हैं.
ट्रोलिंग से कैसे डील करते हैं ?
मैंने ट्रोलिंग का बुरा फेज जिया है. शुरुआत के एक महीने बहुत दर्दनाक रहे, क्योंकि आपको समझ नहीं आता है कि यह क्यों हो रहा है? क्या किया आपने? मैं उस बात को फिर से यहां बताकर बढ़ाना नहीं चाहता हूं, लेकिन हां अब मैं इसको इस तरह से लेता हूं कि वह भी अपना काम ही कर रहे हैं. उनको अपना पेज चलना है. मुझे क्रिटिसिज्म से शिकायत नहीं है. अगर कोई मीम में मेरा मजाक बनता है, तो सच कहूं तो मैं उसको देखकर हंसता हूं. कुछ मीम्स बहुत ही हार्मफुल होते हैं, जैसा पिछली बार मेरे साथ हुआ था. दुख पहुंचाने के लिए मीम बनाते हैं, तो मुझे बुरा लगता है. आखिर मैं भी इंसान हूं.
ट्रोलिंग के बुरे दौर में आपका सपोर्ट सिस्टम कौन था ?
मैं अकेला रहता हूं. सच कहूं, तो मुझे अकेला रहना पसंद है. मुझे लगता कि जब आप अपने अंदर से बातें करते हैं, तो वह ज्यादा ही प्रभावशाली होता है. अगर आप एडवाइज सुनते रहोगे तो आप दूसरों से ही इनफ्लुएंस होगे. जब आप अपने दिल की सुनते हो, आप खुद से सच बोलते हो. जब आपका दिल बताता है कि आप कौन हो, तो वह सच होता है. वह सच्चाई से ज्यादा कुछ मैटर नहीं करता है. मैंने खुद अनुभव किया कि मैं इतना पावर सामने वाले को क्यों दे रहा हूं कि मुझे हर्ट कर सके. निश्चित तौर पर मेरी मां मेरे साथ थी. उन्होंने भी कहा कि दूसरे की ओपिनियन आपकी पर्सनालिटी को डिफाइन नहीं करती है.
सेलिब्रिटी किड्स होने के बावजूद आप पैपराजी से लेकर सबसे हमेशा विनम्र पेश आते हैं ?
इसमें कुछ महानता नहीं है. मैं कुछ एक्स्ट्रा नहीं कर रहा हूं. मुझे लगता है कि अगर किसी सोसायटी में विनम्र होना कॉम्पलिमेंट है, तो उसके सेलिब्रिटी कल्चर में दिक्कत है. मैं कोई महानता का काम नहीं कर रहा हूं. कोई एक्स्ट्रा इसके लिए मेहनत नहीं कर रहा हूं. बस एक आम इंसान जैसा होता है, वैसा मैं व्यवहार कर रहा हूं.
आपके पिता की लिगेसी का कितना प्रेशर है ?
मैं प्रेशर लेता हूं, लेकिन सकारात्मक तरीके से कि मेरी फैमिली की लिगेसी है, इसलिए मुझे बहुत ही ज्यादा मेहनत करना है, ताकि सभी की उम्मीदों पर खरा उतर सकूं.
जिस तरह का प्यार आपको आपकी पहली ही फिल्म से मिला है, क्या आपको लगता है कि आपके पिता होते तो वह प्राउड फील करते ?
मेरे बाबा को प्राउड शब्द पसंद ही नहीं था. नेमसेक के शूटिंग के वक्त की बात है. उस वक्त मैं वेस्टर्न कल्चर से बहुत ज्यादा इन्फ्लुएंस था. फ्रेंड्स सीरीज बहुत देखता था. वह एक दिन न्यूयॉर्क में शूटिंग कर रहे थे. मैंने बाबा से पूछा कि बाबा आप मुझे क्यों नहीं बोलते हो कि आई एम प्राउड ऑफ यू. उन्होंने मुझसे पूछा कि तुमको प्राउड का मतलब पता है. उन्होंने कहा कि ठीक से रिसर्च करके बताओ मुझे. मैंने रिसर्च किया तो मैंने पाया यह प्राउड का गुरुर होता है. मेरे बाबा थोड़े डिटेल में जिंदगी जीते थे. उन्होंने बताया गुरुर शब्द सही नहीं है. हैप्पी और जॉय ज्यादा सही है. काश! आज वह अगर होते तो मुझे लगता है कि वह मेरी जर्नी से खुश होते.
अपने माता-पिता के कौन से गुण अपने अंदर चाहेंगे?
बाबा की स्थिरता और मां की फाइटिंग स्पिरिट. मुझे लगता है कि अगर ये दोनों चीजें मैं जिंदगी में ग्रो कर पाऊं, तो जिंदगी में मुझे शांति मिल जायेगी.
आप लगातार ओटीटी प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बन रहे हैं. इस पर आपकी क्या राय है?
मेरा फोकस सिर्फ आर्ट पर होता है. मैं माध्यम की ओर नहीं देखता हूं. मेरी फिल्में थिएटर में रिलीज हो या फिर ओटीटी, मुझे फर्क नहीं पड़ता है. मुझे लगता है कि अगर मैं काम के प्रति खुद को सरेंडर कर दूं, तो जिंदगी कहीं ना कहीं लेकर चली ही जायेगी. मुझे सिर्फ काम करना है. जितना कंट्रोल करना चाहूंगा तो जिंदगी मुझे सिखाने लगेगी कि मैं तुम्हारे कंट्रोल में नहीं हूं. इंसान की फितरत जिंदगी को कंट्रोल करना है और जिंदगी की फितरत हमें सबक सीखाना है.
अपने पिता के अलावा किन एक्टर्स का काम आपको प्रभावित करता है?
अमेरिकन एक्टर टिमथी हैल शालामे का काम मुझे बहुत पसंद है. जिस तरह का वह लगातार अच्छा काम कर रहे हैं, वो कमाल का है. इसके साथ मार्लन ब्रांडो और दिलीप कुमार का काम भी मुझे पसंद है.
इरफान खान की किसी फिल्म का रीमेक करना चाहेंगे. साथ ही अगर आपको मौका मिले, तो आप किसकी बायोपिक करना चाहेंगे?
यह सवाल अक्सर मुझसे पूछा जाता है. मैं अपने बाबा की किसी भी फिल्म का रीमेक नहीं करना चाहूंगा, क्योंकि उन्होंने जो भी कर दिया है वो बहुत ही महानता से किया है. उसको फिर से डिफाइन करने की जरूरत नहीं है. जहां तक बायोपिक का सवाल है, मैं ओशो की बायोपिक करना चाहूंगा. मैं चाहता था कि मेरे बाबा वह बायोपिक करें. वह हो नहीं पाया, तो इसलिए अब चाहता हूं कि मैं वह करूं.
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