Jersey Review: शाहिद कपूर के अभिनय की जबरदस्त पारी की गवाह है फिल्म जर्सी

Jersey Review in Hindi: शाहिद कपूर की फिल्म जर्सी साउथ की सुपरहिट फिल्म का हिंदी रीमेक है. फिल्म की कहानी बाप-बेटे के ड्रामे को बखूबी पर्दे पर दर्शाती है. इस फिल्म में आपको शाहिद कपूर की बेहतरीन एक्टिंग मिलेगी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 22, 2022 10:02 AM
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  • फ़िल्म: जर्सी

  • निर्माता: दिल राजू

  • निर्देशक: गौतम तिंन्नुरी

  • कलाकार: शाहिद कपूर, मृणाल ठाकुर, पंकज कपूर,रोनित कामरा

  • रेटिंग: {3.5/5}

  • Jzersey movie review in Hindi: साउथ सिनेमा का जादू पिछले कुछ समय से लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. शाहिद कपूर की फ़िल्म जर्सी भी साउथ की सुपरहिट फ़िल्म का हिंदी रीमेक है, लेकिन यह फ़िल्म लार्जर देन लाइफ सिनेमाई अनुभव औऱ हीरोगिरी की कहानी नहीं है. यह आम इंसान की कहानी है. कहते हैं कि सौ लोगों मे किसी एक को सफलता मिलती है लेकिन जर्सी की कहानी उस खास एक की नहीं बल्कि उन 99 लोगों की हैं. जो नाकामयाब होकर भी कामयाबी की उम्मीद नहीं छोड़ते हैं. कुलमिलाकर यह हारे हुए इंसान की हार ना मानने और लड़ने के जज्बे की दिल को छू जाने वाली कहानी है.

    फ़िल्म अपने शीर्षक और ट्रेलर से स्पोर्ट्स ड्रामा फ़िल्म की फील देती है.जर्सी में स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्मों के सभी फार्मूले का इस्तेमाल भी किया गया है जैसे परिवार और लोगों के खिलाफ जाकर खेल को चुनना, असफल हो जाने के बाद फिर से खुद को सफल बनाने की जद्दोजहद, दस साल बाद भी मैदान पर लौटने पर सिक्सर पहले ही बॉल पर,आखिरी गेंद पर मैच का फैसला होना. इन सबके बावजूद यह क्रिकेट के खेल की नहीं इंसानी रिश्तों की इमोशनल कर देने वाली कहानी है. एक पिता और बेटे की कहानी है.

    एक पति और पत्नी के उतार चढ़ाव से भरे रिश्ते की स्टोरी है तो एक कोच और एक खिलाड़ी के बीच के भरोसे की दास्तान को समेटे है. अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) एक समय एक शानदार क्रिकेटर था लेकिन उसने अचानक एक दिन क्रिकेट छोड़ दिया. क्रिकेट की वजह से उसे जो सरकारी नौकरी मिली थी.उसमें भी वह सस्पेंड हो गया है.उसकी पत्नी( मृणाल शर्मा) घर की जिम्मेदारी संभाल रही है. दस साल इन सब में बीत चुके हैं.एक दिन अर्जुन का बेटा किट्टू (रोनित) उससे इंडियन क्रिकेट टीम वाली जर्सी की मांग करता है. अपनी पत्नी की नज़र में वह सम्मान खो चुका है, लेकिन अपने बेटे के नजर में वह सम्मान खोना नहीं चाहता है. बेटे के लिए जर्सी लाने के लिए वह पत्नी के पर्स में से पैसे चुराने से भी गुरेज नहीं करता है. उसके बाद हालात कुछ इस कदर बदलते हैं कि वह 36 की उम्र में दोबारा खिलाड़ी के तौर पर लौटने का फैसला करता है.जब लोग खेल से रिटायरमेंट का लेने की सोचते हैं.

    क्या वह अपने फैसले को सही साबित कर पाएगा. फ़िल्म की कहानी इमोशनल है लेकिन साथ में इसमें सस्पेंस को भी शामिल किया गया है और बीच बीच में हंसी के हल्के फुल्के सीन्स भी हैं. जो फ़िल्म को एंगेजिंग बनाते हैं. फ़िल्म का सेकेंड हाफ ज़बरदस्त है.यह फ़िल्म साउथ का रिमेक है लेकिन इसे पूरी तरह से हिंदी भाषी दर्शकों के मद्देनज़र कहा गया है. फ़िल्म का बैकड्रॉप पंजाब है. जो किरदारों की बोलचाल से लेकर माहौल सभी में दिखता है. यह फ़िल्म 90 के दशक पर आधारित है.तकनीकी टीम ने पूरी बारीकी के साथ उस दौर को लाने की कोशिश की है फिर चाहे वह टीवी सेट्स हो या रेनॉल्ड का पेन .

    खामियों की बात तो इस फ़िल्म की लंबाई थोड़ी ज़्यादा है. फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो रह गया है.जिसे एडिटिंग टेबल पर थोड़ी कसने की ज़रूरत थी. खेल के सीक्वेंस खूबसूरती के साथ फिल्माए गए हैं लेकिन उनमें थोड़े रोमांच की कमी रह गयी हैं.

    अभिनय की बात करें शाहिद कपूर शानदार और जबरदस्त रहे हैं. अपने किरदार के परेशानी,निराशा, खुशी,जुनून,गुस्से हर इमोशन को बखूबी जिया है. रेलवे प्लेटफार्म पर गुजरती ट्रेन के बीच उन्होंने जानदार तरीके अपने किरदार के इमोशन को जाहिर किया है, जो फ़िल्म खत्म हो जाने के बाद भी याद रह जाता है. मृणाल ठाकुर भी उम्दा रही हैं.प्रेमिका से पत्नी के अपने किरदार की जर्नी में उन्होंने साबित कर दिया है कि वह अब स्थापित अदाकारा बन चुकी हैं. पंकज कपूर अभिनय का विश्वसनीय नाम क्यों कहें जाते हैं.वह इस फ़िल्म में उन्होंने एक बार फिर साबित किया है. अपने किरदार की बढ़ती उम्र को उन्होंने अपनी संवाद अदायगी से बखूबी बयां किया है.बाल कलाकार रोनित कामरा ने अच्छी एक्टिंग की है.उनके और शाहिद के बीच की केमिस्ट्री पर्दे पर निखरकर सामने आयी है. बाकी के कलाकारों ने भी कहानी में अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.

    आमतौर पर कहा जाता है कि गीत संगीत फ़िल्म की कहानी को बाधित करते हैं लेकिन इस फ़िल्म में गीत संगीत कहानी को आगे बढ़ाते हैं. हर इमोशन को बखूबी परिभाषित करते हैं. फ़िल्म के चारो साउंडट्रैक अच्छे बन पड़े हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक भी फ़िल्म को कॉम्प्लिमेंट करता है.फ़िल्म के संवाद बहुत अच्छे बन पड़े हैं. आखिर में रिश्तों की यह इमोशनल कहानी पूरी परिवार के साथ देखी जानी चाहिए.

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