Panchayat review: शाहरुख खान के ‘स्‍वदेस’ की याद दिलायेगी ये फिल्‍म, लेकिन इसमें ट्विस्‍ट है?

Jitendra Kumar film Panchayat review : आपने शाहरुख खान की फिल्‍म 'स्‍वदेस' तो देखी ही होगी जिसमें उनका किरदार मोहन भार्गव नासा की सम्‍मानजनक नौकरी छोड़कर अपनी मातृभूमि अपने लोगों की सेवा करने के लिए लौट आता है. अब 16 साल बाद जितेंद्र कुमार 'पंचायत' की कहानी के साथ लौटे हैं.

By Budhmani Minj | April 3, 2020 3:55 PM
an image

फिल्‍म: पंचायत

कलाकार: जितेंद्र कुमार, नीना गुप्‍ता, रघुबीर यादव

निर्देशक: दीपक कुमार मिश्रा

आपने शाहरुख खान की फिल्‍म ‘स्‍वदेस’ तो देखी ही होगी जिसमें उनका किरदार मोहन भार्गव नासा की सम्‍मानजनक नौकरी छोड़कर अपनी मातृभूमि अपने लोगों की सेवा करने के लिए लौट आता है. अब 16 साल बाद जितेंद्र कुमार ‘पंचायत’ की कहानी के साथ लौटे हैं. लेकिन न तो वह मोहन भार्गव की तरह बुद्धिमान है और न ही अपने करियर को अलविदा कह रहे हैं. हालांकि यह नाटक काफी हद तक आशुतोष गोवारिकर की फिल्‍म के समान है लेकिन हास्य पुट के साथ.

कहानी की शुरुआत होती है फुलेरी पंचायत से. पंचायत का नाम जेहन में आते ही एक हरा-भरा गांव और एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठे ग्रामीण का चित्र उभरकर सामने आता है लेकिन यहां समस्याएं सिर्फ भूमि विवाद और बाल विवाह नहीं है, और भी कई समस्‍याएं है. इस पंचायत में सचिव बनकर आते है जितेंद्र कुमार.

टीवीएफ द्वारा बनाई गई इस अमेज़न प्राइम वीडियो सीरीज शहरी दर्शकों के लिए एक अनौपचारिक प्रधान पति द्वारा संचालित एक ग्राम पंचायत की कहानी लेकर आई है जो शायद ही उन्‍होंने कभी देखी है. एक प्रधान का पति कानून द्वारा नहीं बल्कि तर्क के साथ खुद न्‍याय करता है.

Also Read: शाहरुख की ऑनस्‍क्रीन बेटी के पिता का निधन, लॉस एंजिलिस में फंसी अभिनेत्री नहीं कर पाई अंतिम दर्शन

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक गाँव की निर्वाचित प्रधान नीना गुप्ता भी खास किरदार हैं जो प्रधान हैं, क्योंकि यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित थी, इस वजह से उनके पति यहां के प्रधान नहीं बन पाये. नीना गुप्‍ता का नाम प्रधान के तौर पर दर्ज है लेकिन पूरे गाँव ने खुशी-खुशी उनके पति (रघुबीर यादव) की सत्‍ता को स्‍वीकार कर लिया है. अशिक्षित गृहिणी खुश हैं, वह केवल अपनी बेटी की शादी को लेकर परेशान हैं और पति को पंचायत कार्यालय की बागडोर सौंपती हैं.

जितेंद्र कुमार उदाहरण दे रहे हैं कि अगर आप ऐसी नौकरी नहीं चाहते हैं तो आपको हाईस्‍कूल में जमकर मेहनत करनी होगी. उनके दोस्‍त जो कॉरपोरेट कंपनियों में जॉब कर रहे हैं वह हर शुक्रवार रात को पार्टी करते हैं और वह यहां रात भर इमरजेंसी लाइट चार्ज कर रहा है और मच्‍छर मार रहा है.

यह सोचने वाली बात है कि हम जितेंद्र की नज़र से गाँव को देख रहे हैं और उन स्थितियों को हास्‍य बनाया गया है लेकिन शायद आम ग्रामीण को यह खटक रही होगी. पंचायत सचिव के कर्तव्यों – जन्म प्रमाण पत्र बनाने से लेकर मनरेगा और परिवार नियोजन जैसी सरकारी नीतियों के कार्यान्वयन तक – सबसे हास्‍य तरीके से दिखाया गया है. जमीनी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, दहेजप्रथा, अंधविश्वास और पंचायत के पहलुओं को हल्के-फुल्के अंदाज में इससे पहले किसी फिल्‍म में चित्र‍ित नहीं किया गया होगा.

8 एपिसोड की यह सीरीज धीमी गति से चल रही है. आधुनिक समय के स्नातक (जितेंद्र) में एक नायक की आकृति को उकेरने का कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं है, जो जरूरतमंदों की मदद के लिए एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाता है. कैमरा वर्क कमाल का है. हवाई शॉट शानदार लिया गया है. अन्यथा खाली खेतों और अनियमित क्षितिज केके बीच ऐसा शॉट फीका लग सकता है.

मूल सामाजिक रूप से प्रासंगिक कॉमेडी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. जिस क्षण रघुबीर यादव का रिंगटोन रिंकिया के पापा बजता है जो आपके चेहरे पर हंसी ले आयेगा. नीना गुप्ता की मंजू देवी का चरित्र देखने लायक है. जितेंद्र पहली बार ग्रामीण परिप्रेक्ष्‍य में नजर आये हैं जिसपर वह खरे उतरे हैं.

लॉकडाउन के दिनों में यह फिल्‍म आपके लिए अच्‍छा टाइमपास हो सकती है. यदि आप इस समय रामायण और महाभारत से परे किसी चीज़ की तलाश कर रहे हैं, तो पंचायत निश्चित रूप से अच्‍छा विकल्‍प है.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version