अस्पताल और खानपान : इंसान अस्पताल पहुंचते हैं इलाज के लिए, खाने-पीने का आनंद लेने के लिए नहीं. अत: यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अस्पतालों का जायके से क्या रिश्ता. इसका सीधा जवाब यह है कि जैसे भूखे भजन नहीं हो सकते, वैसे ही भूखे पेट इलाज भी नहीं हो सकता. यह सच है कि रोग निदान के लिये जो परीक्षण होते हैं, उनमें से कुछ के लिए खाली पेट ही रहना पड़ता है, पर जब उपचार आरंभ होता है, तो अनेक दवाओं के पहले कुछ खाना जरूरी होता है. अस्पतालों में जो बीमार भर्ती होते हैं, वे अलग-अलग मर्ज के शिकार होते हैं. किसी के लिए शक्कर वर्जित होती है, तो किसी के लिए नमक जहर के समान समझा जाता है. इसीलिए अस्पतालों की रसोई में खाना बनाने वाले को कई ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो आम होटलों या रेस्तरां में शेफ के हाथ नहीं बांधते. एक समस्या यह भी है कि यदि नीरस खाना रोगी की थाली में होगा, तो वह उसे बिना खाये ही छोड़ देगा. ऐसे में उसके शरीर में पोषण पहुंचेगा कैसे? अस्पताल निजी हो या सरकारी, वहां की रसोई में खाना पोषण विशेषज्ञ के निर्देशन में ही बनता है और उसे यथा संभव स्वादिष्ट बनाने की कोशिश भी होती है.
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