Hydronephrosis: हरियाणा के फऱीदाबाद की रहने वाली पूनम यादव 28 सप्ताह की गर्भवती हैं. प्री-नैटल अल्ट्रा-साउंड से पता चला की उनके गर्भस्थ शिशु को फीटल हाइड्रोनफ्रोसिस यानी एंटी नैटल रीनल स्वेलिंग. पूनम का इलाज कर रही स्त्री रोग विशेषज्ञ ने उन्हें समझाया कि घबराने की जरूरत नहीं है, गर्भ में पल रहे कई बच्चों के साथ ऐसा होता है. दरअसल यह गर्भस्थ शिशु की किडनी की सूजन होती है, जो यूरीन के जमा होने से होती है. लेकिन यह सुनकर महिला का पूरा परिवार परेशान हो गया क्योंकि काफी उपचार कराने पर वह शादी के 10 साल बाद गर्भवती हुई थी.
कई मामले आते हैं सामने
पूनम यादव के किसी परिचित ने उन्हें गुरूग्राम स्थित मेदांता हॉस्पिटल के पीडिएट्रिक सर्जरी एंड पीडिएट्रिक यूरोलॉजी के निदेशक डॉ. संदीप कुमार सिंहा के बारे में बताया. काउंसलिंग के दौरान डॉ. सिंहा ने उन्हें समझाया, “घबराने की जरूरत नहीं है. इस तरह के कई मामले सामने आते हैं. अत्याधुनिक अल्ट्रासाउंड मशीनों के आने से गर्भस्थ शिशु की किडनियों को ज्यादा स्पष्ट रूप से देखना संभव हो पाया है. अगर कोई गर्भस्थ शिशु इससे पीड़ित है तो इसपर नजर रखी जाती है और बच्चे के जन्म के बाद कुछ जरूरी जांचे की जाती हैं. जांचों के परिणाम पर ही निर्भर करता है कि उपचार की जरूरत है या नहीं. अगर उपचार जरूरी है तो समस्या की गंभीरता के आधार पर उपचार के विकल्प चुने जाते हैं.”
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पीडिएट्रिक यूरोलॉजिस्ट से उपचार की जरूरत
डॉ. संदीप कुमार सिंहा ने बताया, गर्भस्थ शिशु को फीटल हाइड्रोनफ्रोसिस (Hydronephrosis) था, लेकिन बहुत ही दुर्लभ मामलों में, उसके यूरीन सैंपल की जरूरत पड़ती है. सामान्यता, गर्भावस्था के दौरान किसी विशेष उपचार की जरूरत नहीं होती है. लेकिन बच्चे के जन्म के बाद पीडिएट्रिक यूरोलॉजिस्ट या पीडिएट्रिक सर्जन से उपचार कराने की जरूरत होती है ताकि वो समस्या का मुल्यांकन कर सकें और निर्णय ले सकें कि उपचार की जरूरत है या नहीं. कम ही मामलों में, गर्भावस्था के दौरान, ब्लॉकेज को बायपास करने के लिए गर्भस्थ शिशु के ब्लैडर में एक ट्यूब लगाई जाती है. एक विकल्प यह भी हो सकता है कि प्रसव को थोड़ा पहले प्लान कर लिया जाए. लेकिन, अधिकतर मामलों में, गर्भावस्था के दौरान किसी उपचार की जरूरत नहीं होती. डॉ. सिंहा ने उन्हें उनके संपर्क में रहने और बच्चे के जन्म के बाद जरूरी जांचे कराने का सुझाव भी दिया. महिला की डॉक्टर ने भी उनकी गर्भावस्था पर ज्यादा गहरी नजर रखी और अल्ट्रा साउंड भी सामान्य से अधिक बार किया. डॉ. सिंहा ने आगे बताते हुए कहा, “बच्चे के जन्म के बाद, हमने पहले ही सप्ताह में किडनी और ब्लैडर का अल्ट्रा साउंड करा लिया. बच्चे में यूरिनरी इंफेक्शन को रोकने के लिए एंटी-बायोटिक्स के लो-डोज़ दिए गए. इसके अलावा ब्लैडर का एक्स-रे और रीनल स्कैन जैसे जांच भी कराए गए.”
जांचों के आधार पर ही लिया जाता है निर्णय
इन जांचों के आधार पर ही निर्णय लिया जाता है कि समस्या कितनी गंभीर है जिसके उपचार के लिए ऑपरेशन की जरूरत पड़ेगी या समय के साथ अपने आप ठीक हो जाएगी. अक्सर समस्या ठीक हो रही हो तो वर्तमान स्थिति को देखने के लिए अल्ट्रा साउंड किया जाता है. ये बीमारियां पहले भी होती थीं, लेकिन डायग्नोसिस में देरी हो जाती थी और पीड़ित के व्यस्क होने पर किडनी फेल्योर का खतरा होता था. लेकिन अब एंटी-नैटल स्कैन्स के द्वारा किडनी फैल्योर की स्थिति में पहुंचने से पहले ही उपचार किया जाना संभव है. ताकि, किडनी को सुरक्षित रखा जा सके. लेकिन उस बच्चे की समस्या अपने आप ठीक होने की स्थिति नहीं थी. क्योंकि यूरीन एक किडनी में ट्रैप हो रही थी और ब्लॉकेज के कारण यूरीन सामान्य से धीमी गति से बाहर निकल रही थी. इसलिए ब्लॉकेज को दूर करने के लिए एक सर्जरी की जरूरत थी. अब इस सर्जरी को मिनिमली इनवेसिव पद्धति (की-होल) के द्वारा करना संभव है. यहां तक की छोटे बच्चों और नवजात शिशुओं में लैप्रोस्कोपिक पायलोप्लास्टी भी की जा रही है. अब नवजात शिशु पूरी तरह स्वस्थ है और उसकी किडनियां भी ठीक तरह काम कर रही हैं.
परेशान होने की जरूरत नहीं
फीटल हाइड्रोनफ्रोसिस एक सामान्य स्थिति है इसलिए जब भी किसी गर्भवती महिला को इस बारे में पता चले तो उसे परेशान नहीं होना चाहिए. इसमें बच्चे की किडनी में अत्यधिक फ्ल्यूड होने का पता चलता है, क्योंकि यूरीन वहां जमा हो रही होती है. अक्सर फीटल हाइड्रोनफ्रोसिस का पता तब चलता है जब फीटल अल्ट्रा साउंड में किडनी सूजी हुई महसूस होती है. आप अपने डॉक्टर के अलावा पिडिएट्रिक यूरोलॉजिस्ट्स या पिडिएट्रिक सर्जन से भी राय ले सकती हैं. बच्चे के जन्म के बाद पहले सप्ताह में ही उसकी जरूरी जांचे करा लें. उससे सही स्थिति का पता चल जाएगा और जरूरी उपचार संभव हो पाएगा.
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