Non-communicable Diseases: नॉन-कम्यूनिकेबल बीमारियों से कम्युनिटी हेल्थ पर खतरा, रीच ने आयोजित की गोलमेज डिस्कशन

प्रसिद्ध कथक विशेषज्ञ और कैंसर सर्वाइवर अलकनंदा दास ने एनसीडी के साथ जीने का अपना एक दिलचस्प व्यक्तिगत अनुभव साझा किया, जिसमें उन्होंने हैल्थकेयर सिस्टम को नेविगेट करने और आवश्यक उपचार तक पहुंचने के अपने संघर्षों के बारे में बताया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2025 5:39 PM
an image

गैर-संचारी रोगों (non-communicable diseases-NCDs) के बढ़ते बोझ और जन स्वास्थ्य की समझ को बेहतर बनाने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए रिसोर्स ग्रुप फॉर एजुकेशन एंड एडवोकेसी फॉर कम्युनिटी हेल्थ (REACH) यानी रीच ने एक गोलमेज़ चर्चा का आयोजन किया जिसमें अग्रणी स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञों, पत्रकारों और मरीजों के हित के लिए काम करने वाले व्यक्तियों ने हिस्सा लिया. 4 अप्रैल 2025 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम ने इस विषय पर सार्थक संवाद के लिए एक मंच प्रदान किया कि मीडिया किस तरह से जागरुकता बढ़ा सकता है और गैर-संचारी रोगों या एनसीडी के बारे में बड़े पैमाने पर किस तरह आम लोगों को साथ में जोड़ा जा सकता है.

रीच के काम पर प्रकाश डाला

इस गोलमेज चर्चा की शुरुआत रीच की उप निदेशक अनुपमा श्रीनिवासन के स्वागत भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने एनसीडी और तपेदिक (टीबी) पर रिपोर्टिंग की क्वालिटी और फ्रीक्वेंसी में सुधार के लिए मीडिया के साथ रीच के काम पर प्रकाश डाला तथा जनता के साथ संवाद को आकार देने और समुदायों को सूचित कर जानकार बनाने के काम को बढ़ावा देने में मीडिया की जिम्मेदारी पर जोर दिया. भारत पर गैर-संचारी रोगों का बोझ कितना ज्यादा इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, एनसीडी के मुद्दे पर प्रतिक्रिया अभी नई है, इसलिए इस विषय पर सूचना संबंधी कमियों को दूर करना होगा. रीच इस के लिए प्रतिबद्ध है कि एनसीडी के बारे में डेटा-संचालित, साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित किया जाए.

गैर संचारी रोगों के बढ़ते हालात के बारे में दी जानकारी

पहले सत्र का शीर्षक था ’द एनसीडी लैंडस्केप- अ प्रैक्टिशनर्स पर्सपेक्टिव’; इसमें डोर टू केयर की निदेशक-संस्थापक वरिष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. बीना बंसल ने भारत में गैर संचारी रोगों के बढ़ते हालात के बारे में विस्तार से जानकारी दी, जिसमें यह भी बताया गया की इसका असर वंचित आबादी पर ज्यादा है. उन्होंने गैर संचारी रोगों के जल्द डायग्नोसिस, निवारक स्वास्थ्य सेवा और मजबूती से नीतिगत हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला. एक महत्वपूर्ण पुल के रूप में मीडिया की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ’’आज के डिजिटल युग में, मीडिया किसी मुद्दे को केंद्र में लाने और आम लोगों तक पहुंचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माध्यमों में से एक है. इसलिए, गैर-संचारी रोगों को मीडिया की प्राथमिकता बनानी चाहिए ताकि वे नीति निर्माताओं तक पहुंच सकें.’’

कैंसर सर्वाइवर अलकनंदा दास ने साझा किया अनुभव

प्रसिद्ध कथक विशेषज्ञ और कैंसर सर्वाइवर अलकनंदा दास ने एनसीडी के साथ जीने का अपना एक दिलचस्प व्यक्तिगत अनुभव साझा किया, जिसमें उन्होंने हैल्थकेयर सिस्टम को नेविगेट करने और आवश्यक उपचार तक पहुंचने के अपने संघर्षों के बारे में बताया. उनका कहना था कि बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति को केन्द्र में रखकर रिपोर्टिंग करना महत्वपूर्ण है जिससे उस व्यक्ति के अनुभवों के बारे में लोगों को पता लगता है और इस तरह ऐडवोकेसी की कोशिशें मजबूत होती हैं. उन्होंने कहा, ’’मैं बहुत भाग्यशाली थी कि कैंसर की शुरुआती स्टेज पर ही उसे डायग्नोस कर लिया गया था, इससे मुझे बीमारी के बारे में जानकारी हुई तो मैंने ने मैंने निदान के लिए तुरंत एक चिकित्सा विशेषज्ञ से संपर्क किया. हालांकि, अधिकांश लोगों में जागरुकता की कमी है और ऐसे हालात में, विभिन्न मीडिया चैनल, विशेष रूप से सोशल मीडिया, सूचना के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

नैतिकता के साथ सबकी कहानी कहने की आवश्यकता

कम्यूनिटी मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. अक्सा शेख ने ’’वॉइसिस फ्रॉम द मार्जिन्स – हैल्थ, आईडेंटिटी एंड इनक्लूसिव रिपोर्टिंग’’ शीर्षक वाले सत्र में स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और हाशिये पर रहने वाले लोगों के बीच के संबंध पर बात की. नैतिकता के साथ सबकी कहानी कहने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा, मीडिया रिपोर्टिंग साहस और जिज्ञासा से प्रेरित होनी चाहिए. मीडिया द्वारा साझा की गई सभी जानकारियां प्रामाणिक होनी चाहिए, जिनका कई स्तरों पर सत्यापन किया गया हो. जीवित लोगों के अनुभवों को करुणा और गहन संवेदनशीलता के साथ प्रकाशित किया जाना चाहिए.

गलत व भ्रामक सूचनाओं को सम्बोधित करना बेहद अहम

नवभारत टाइम्स के पूर्व वरिष्ठ संपादक और HEAL (हैल्थ ऐजुकेशन एंड अवेयरनेस लीग) फाउंडेशन के सदस्य धनंजय कुमार ने ’’मीडिया इन ऐक्शन – लैसन्स फ्रॉम द फ्रंटलाइन’’ शीर्षक वाले सत्र में गलत सूचनाओं से निपटने, स्वास्थ्य पत्रकारिता में सटीकता में सुधार करने और प्रभावशाली कहानियों को आकार देने के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी. पत्रकारों को डेटा-संचालित कहानियां कहने और अपनी रिपोर्टिंग के लिए लोगों पर केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा, ’’स्वास्थ्य रिपोर्टिंग में, खास तौर पर गैर-संचारी रोगों के बारे में, गलत व भ्रामक सूचनाओं को सम्बोधित करना बेहद अहम है. सटीक व सत्यापित जानकारी से बेहतर इलाज के लिए मार्गदर्शन मिलता है, शर्मिंदगी/बदनामी की धारणा में कमी आती है और इससे जानकारी के साथ विकल्प चुनने में मदद मिलती है.’’

मीडियाकर्मियों ने एक व्यावहारिक कार्यशाला में लिया भाग

उपस्थित मीडियाकर्मियों ने एक व्यावहारिक कार्यशाला में भाग लिया, जहां उन्होंने मधुमेह, हृदय रोग, फेफड़े की बीमारी और कैंसर पर केंद्रित मीडिया कैम्पेन विकसित किए. इस सत्र में पत्रकारों को असरदार, समाधान की ओर ले जाने वाली रिपोर्टिंग के लिए मानवीय कहानियों के साथ डेटा को मिलाने के लिए प्रोत्साहित किया गया. इस गोलमेज चर्चा में तीस से अधिक मीडिया और चिकित्सा विशेषज्ञों ने उत्साह से भाग लिया. पीटीआई, अमर उजाला और द प्रिंट जैसे प्रमुख प्रकाशनों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए और उन्होंने गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को उजागर करने और जनता को सूचित करते हुए सार्वजनिक चर्चा को आगे बढ़ाने के काम में मीडिया की प्रतिबद्धता की पुष्टि की.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version