HCAH के डॉक्टर गौरव ठुकराल कहते हैं, “अक्सर लोग सोचते हैं कि रिहैब का मतलब सिर्फ फिजियोथेरेपी है, लेकिन यह एक साइंस है. हर ट्रीटमेंट, टाइमिंग और टेक्नोलॉजी का मेल होता है. सही समय पर शुरू हुआ इलाज दिमाग और शरीर दोनों को दोबारा सक्रिय कर सकता है.
BLK मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. वरुण रेहानी बताते हैं, स्ट्रोक के बाद के शुरुआती 90 दिन रिकवरी के लिए निर्णायक होते हैं. इस दौरान शुरू हुआ इलाज शरीर की खोई हुई क्षमताओं को काफी हद तक वापस ला सकता है. सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अरुणव शर्मा ने कहा, “जिन मरीजों को होश नहीं होता, उनके परिवार अक्सर हार मान लेते हैं. लेकिन अगर सही इंद्रियों को जगाने वाला इलाज शुरू हो, तो दिमाग में बंद सिस्टम फिर से एक्टिव हो सकते हैं.
भारत में हर साल 18 लाख स्ट्रोक के मामले, लेकिन रिहैब की कमी
भारत में हर साल 18 लाख से अधिक लोगों को स्ट्रोक आता है, जिनमें से कई लोग समय पर और सही रिहैबिलिटेशन न मिलने के कारण स्थायी रूप से अपंग हो जाते हैं. इस कहानी के माध्यम से जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है कि रिहैब सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि इंसान को दोबारा सम्मानजनक जीवन देने का जरिया है.
धीरे-धीरे सुधार के संकेत मिलने लगे– उन्होंने आंख झपकाई, आवाज पर प्रतिक्रिया दी और एक दिन बेटे का हाथ पकड़ लिया. वह पल सिर्फ परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे मेडिकल स्टाफ के लिए एक भावनात्मक जीत थी.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.