आजकल पश्चिम में नकली मांस की बहुत धूम है. इसके लिए एक नया शब्द भी गढ़ लिया गया है- मॉक मीट, ऐसा पदार्थ, जो शाकाहारियों को शक्ल और स्वाद में मांस का आनंद लेने दे. यहां एक पेचीदा सवाल उठ खड़ा होता है कि शाकाहारियों को मांस का स्वाद प्रकारांतर से ही चखने की व्याकुलता आखिर क्यों होनी चाहिये? यह एक अलग बहस है, जिसमें हमें यहां उलझने की जरूरत नहीं.
बहुत सारी सब्जियां ऐसी हैं, जो शाकाहारियों के लिए सामिष भोजन की भ्रांति कहिये या मरीचिका देती हैं. इनमें कटहल और जिमीकंद प्रमुख हैं. कटहल से पुलाव, बिरयानी और कबाब के अलावा कोरमा और दो प्याजा भी बनाया जाता है. कुछ कुशल कारीगर कटहल के कोफ्ते भी ईजाद कर चुके हैं. जिमीकंद (सुरण) को भी सामिष व्यंजनों के प्रयोग भी अनेक शेफ कर चुके हैं. झारखंड में जन्मे सेलिब्रिटी शेफ निशांत चौबे ने तरह-तरह के मशरूमों का प्रयोग ऐसे व्यंजनों को परोसने के लिये किया है, जिनको चखने के बाद शौकीन मांसाहारी भी धोखा खा जाते हैं. अवध के बावर्ची फूलगोभी से गुन्चे का कीमा बनाते रहे हैं, तो कश्मीर की रसोई में नदरू यानी कमल ककड़ी की यखनी और कद्दू का रोगन जोश नायाब समझे जाते हैं. हाल के दिनों में सोया चाप ने इस सूची में अपनी जगह बना ली है, वास्तव में यह चाप सोयाबीन की संतान नहीं, बल्कि आटे में छिपे ग्लूटेन से ही बनाया जाता है.
बंगाल में राजसी तेवर वाले बड़े-बड़े धोखा नामक व्यंजन ईजाद किया गया था, जो आज भी लोकप्रिय है. इसे चने की दाल को पीस कर फिर भाप से पका बर्फी जैसे टुकड़ों में काट, तलकर उन्हीं मसालों में पकाया जाता है, जिनका प्रयोग मांस-मछली या मुर्गी के लिये होता है. तमिलनाडु में कुछ गरीब ग्रामीण परिवार खोपरा ( सूखे नारियल) टुकड़ों को काटकर निर्धन की चिकन करी बनाकर मासूम बच्चों को बहलाते-फुसलाते थे. दबी अरबी और कच्चे केले से बिल्कुल मछली जैसे जायके वाली तरी भी अवध तथा अन्यत्र बनायी जाती रही है. बंगाल में बर्तानवी राज के दौर में रसोई के प्रभाव में मोचा कटलेट का आविष्कार हुआ, जिसमें मुख्य वस्तु केले के फूल का अंदरूनी हिस्सा होता है.
ऐसा नहीं कि नकली मांस भारत में ही अपने पैर पसारता रहा है. चीन और जापान में भी कई ऐसे भोजनालय हैं, जो शाकाहारियों के लिए नकली मुर्गा-मछली, बीफ या पोर्क के व्यंजन बनाते हैं. फिलहाल, आजकल जो चर्चा गर्म है, उसका मुख्य कारण यह है कि लोगों को लगने लगा है कि ‘असली’ मांस खासकर लाल मांस और चर्बी वाला मांस स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह हैं. हृदय रोग, रक्तचाप, कैंसर, मोटापा और डायबिटीज सभी रोगों की जड़ बड़ी मात्रा में मांसाहार से जुड़ी है, यह बात प्रयोगशाला में प्रमाणित हो चुकी है. मगर मांस का जायका यूरोप और खासकर अमेरिका वासियों की जुबान पर इस कदर चढ़ चुका है कि उन्हें शाकाहार की ओर आकर्षित करने के लिए साग-सब्जी, दूध जनित पदार्थों या अनाज से निर्मित मांस का प्रचार-प्रसार, खाद्य उद्योग के साथ जुड़ी बड़ी कंपनियों ने आरंभ कर लिया है.
नकली मांस के जायकों की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि मांस के उत्पादन में जितनी बड़ी मात्रा में कार्बन प्रसरण होता है या पर्यावरण को दूसरी तरह नुकसान पहुंचता है, वह अब असह्य हो चुका है. मुर्गी-मछली, मांस यदि ठीक से ना पकाये जाएं, तो इनमें विद्यमान विषाणु- जीवाणु जानलेवा बीमारियों को न्योता दे सकते हैं.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.
Liver Health: क्या आपको पता है खानपान के अलावा ये चीजें भी करती हैं लिवर को खराब?
Benefits Of Eating Kundru: कुंदरू को भूलकर भी न करें नजरअंदाज, जानिए इसके 7 जबरदस्त फायदे
Health Tips: बरसात के मौसम में दाल के सेवन में सावधानी बरतें, नहीं हो हो जायेंगे गैस, अपच से परेशान
Mushroom During Monsoon: मानसून में खाते हैं मशरूम, तो इन बातों का जरूर रखें ध्यान