आरती श्रीवास्तव
डायबिटीज यानी कि मधुमेह ऐसी बीमारी है, जो हमें तब अपनी चपेट में लेती है जब हमारा पैंक्रियाज यानी अग्नाशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है, या जब हमारा शरीर अपने द्वारा उत्पादित इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है. इंसुलिन एक हार्मोन है जो रक्त शर्करा, यानी ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है. मधुमेह के अनियंत्रित होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, और इससे समय के साथ शरीर की कई प्रणालियों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है.
ऐसे पहचानें डायबिटीज को
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बहुत प्यास लगना, सामान्य से अधिक बार पेशाब जाने की आवश्यकता.
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धुंधली दृष्टि, थकान महसूस करना.
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अनायास वजन कम होना.
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समय के साथ, मधुमेह हृदय, आंखों, गुर्दे और तंत्रिकाओं में मौजूद रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है.
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मधुमेह रोगियों को दिल का दौरा, स्ट्रोक और किडनी फेल होने जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का अत्यधिक खतरा रहता है.
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यह आंखों की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर रोगी को हमेशा के लिए अंधा बना
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सकता है.
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मधुमेह होने के बाद कई रोगियों को पैर की समस्या से जूझना पड़ता है, जिसमें तंत्रिकाओं को होने वाली क्षति से लेकर रक्त प्रवाह में कमी आना तक शामिल है. इस कारण रोगी में पैर का अल्सर बन सकता है, जिस कारण पैर तक काटे जा सकते हैं.
ऐसे बच सकते हैं डायबिटीक होने से
ब्रिटेन सरकार की स्वास्थ्य सेवा पर उपलब्ध जानकारी की मानें, तो जो लोग प्रीडायबिटीज स्टेज में हैं, यानी जिनका ब्लड शुगर लेवल नॉर्मल रेंज से अधिक है, परंतु वे डायबिटीक नहीं हैं, ऐसे लोगों के टाइप-2 डायबिटीज की चपेट में आने का अत्यधिक जोखिम है. परंतु जीवनशैली में बदलाव लाकर इस संकट से बचा जा सकता है. ऐसे लोगों को प्रतिवर्ष अपना ब्लड टेस्ट कराना चाहिए, ताकि ब्लड शुगर लेवल की निगरानी होती रहे. डायबिटीज की जल्द से जल्द पहचान और निदान अति आवश्यक है. यदि डायबिटीज की पहचान और उपचार समय पर नहीं होता है, तो यह और बिगड़ सकता है. ऐसी स्थिति में यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है.
गैर-संचारी रोगों के अध्ययन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
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देश के अन्य भागों की तुलना में केरल, पुडुचेरी, गोवा, सिक्किम और पंजाब जैसे राज्यों में एनसीडी के मामले अधिक सामने आये हैं.
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मोटापा, उच्च रक्तचाप, यानी हाइपरटेंशन और डिसलिपिडेमिया जैसे कार्डियो मेटाबोलिक रिस्क फैक्टर की समस्या देशभर में एक समान है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में.
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मध्य क्षेत्र को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में हाइपरटेंशन से सबसे अधिक लोग ग्रस्त हैं.
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सामान्य और तोंद के मोटापे (जनरलाइज्ड व एब्डॉमिनल ओबेसिटी) से ग्रस्त लोगों की संख्या ग्रामीण की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक है.
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हाइपरट्राइग्लिसराइडेमिया और लो एचडीएल कोलेस्ट्रॉल से जूझते लोगों की संख्या देशभर में उच्च स्तर पर है और इस मामले में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम अंतर दिखाई देता है.
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इसके विपरीत, हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया और हाई एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के मामलों में राज्यों और क्षेत्रों के बीच काफी अंतर है. यह समस्या उत्तरी क्षेत्र, केरल और गोवा में उच्च स्तर पर है.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें, तो 2000 से 2019 के बीच एनसीडी से होने वाली मौतों में वैश्विक स्तर पर एक तिहाई से अधिक की बढ़त दर्ज हुई.
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वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर हृदय संबंधी रोगों (17.9 मिलियन मौतें), कैंसर (9.3 मिलियन मौतें), पुरानी व जटिल सांस संबंधी बीमारी (4.1 मिलियन मौतें) और डायबिटीज (2.0 मिलियन मौतें) जैसे एनसीडी रोगों से सामूहिक रूप से 33.3 मिलियन लोग मौत की मुंह में समा गये. यह संख्या 2000 की तुलना में 28 प्रतिशत अधिक है.
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