समीक्षक-टिप्पणीकार
संतोष उत्सुक
हरियाली की गोद में बसा पिंजौर गार्डन चंडीगढ़ से शिमला जानेवाले सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. अनेक फिल्मों एवं वीडियो शूटिंग के लिए प्रसिद्ध इस जगह की नींव सम्राट औरंगजेब के माध्यम से पड़ी. यूं तो यहां रोज ही पर्यटक आते हैं, मगर रविवार व अवकाश के दिन मेले-सा माहौल रहता है.
बरसात के मौसम में चंडीगढ़ गये हों और शिमला न जा पाएं, तो शिवालिक पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसे खूबसूरत विश्वप्रसिद्ध पिंजौर गार्डन में टहलकर आपकी शाम बाग बाग हो सकती है. बाग की बाहरी दीवारें पुराने किले सी लगती हैं, लेकिन बाग में पहुंचते ही हरियाली की गोद में बसा हसीन ख्वाब सामने होता है. फव्वारों में नाचता और ठुमक कर बहता पानी, मखमली घास पर बिछी ढलती धूप. रंगमहल के सामने दूर तक लुभाता बाग. राजस्थानी मुगल वास्तुशैली का नायाब नमूना शीश महल. तन मन सौम्य बनाते बॉटल पाम व अन्य वृक्ष, पौधे, खुशबू बिखेरते दर्जनों किस्म के रंग-बिरंगे फूल और फुदकती, नाचती तितलियां. बहते पानी के साथ, सुकून देता संगीत. सात तलों में बिछाये खूबसूरत बाग के जल महल कैफे के बाहर सफेद रंग में पुते क्लासिक आयरन फर्नीचर पर बैठ कर लुत्फ आ जाता है.
आपने अपनी शाम यहां खुशनुमा बना ली, अब रात जवां होने लगी है, रोशनियों में नहा उठा बाग अलग ही छटा बिखेर रहा है. आंखों को सुख पहुंचाते, बहते पानी में खिल उठा बहुरंगी प्रकाश उत्सवी माहौल रच रहा है. बाग के अंतिम भाग में ओपन एअर थिएटर है, जहां प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम वक्त को और मनोरंजक व यादगार बना रहे हैं. प्रिय साथी की सोहबत में खिंच रही फोटो जिंदगी में रोमांस ला रही हैं, निर्मल आनंद उगने लगा है.
अनेक फिल्मों एवं वीडियो शूटिंग के लिए प्रसिद्ध इस जगह की नींव, संगीत से नफरत करने वाले सम्राट औरंगजेब के माध्यम से पड़ी. सत्रहवीं शताब्दी में औरंगजेब के नाम पर लाहौर जीत कर, सेनापति फिदाई खां दिल्ली वापस लौटे, तब औरंगजेब ने शिवालिक पहाड़ियों में बसा जंगलनुमा गांव पंचपुरा उन्हें उपहारस्वरूप दिया. फिदाई खां वास्तुकार व दार्शनिक भी थे, सो उन्होंने जंगल को मनमोहक मनोरम स्थल में बदल दिया. वे कुछ बरस वहां रहे. बादशाह औरंगजेब की बेगमें यहां आकर रहा करतीं. तत्कालीन रियासत सिरमौर के महाराज से फिदाई के टकराव के चलते 1675 ई. में यह क्षेत्र सिरमौर में पहुंच गया.
बरसों यह जगह उजड़ी रही और यूं वास्तुकार प्रकृति प्रेमी फिदाई का ख्वाब पतझड़ हो गया. हां, नाम पंचपुरा से पिंजौर जरूर हो गया. महाराजा पटियाला ने मौका मिलते ही यह क्षेत्र सिरमौर से झटक लिया. उनकी शौकीनमिजाजी के कारण जगह फिर हरी-भरी, सजने संवरने लगी. हरियाणा को 1966 में स्वायत्तता मिली, तो पर्यटन विभाग ने इसे पर्यटकीय नजरिये से तैयार किया और आम जनता बाग की लाजवाब खूबसूरती की जानिब मुखातिब होने लगी. यह क्षेत्र ईसा पूर्व 9वीं से 12वीं शताब्दी के पनपने का साक्षी भी रहा. पुरातत्व प्रेमी पर्यटकों के लिए यहां भीमा देवी मंदिर व धारा मंडल के अवशेष जिज्ञासा जगाते हैं. जनश्रुति अनुसार पांडव अज्ञातवास में यहां रहे व दुश्मनों द्वारा पानी में जहर मिलाने की आशंका से रोजाना नयी बावड़ी खोद कर जलप्रबंध किया. तभी पिंजौर क्षेत्र को 360 बावड़ियों वाला भी कहते हैं, जिनमें से अधिकांश विकास की भेंट चढ़ गयी हैं.
बाग के टैरेस के दोनों तरफ आम के बगीचे हैं, जहां हर बरस मशहूर ‘मैंगो फैस्टिवल’ का जायकेदार आयोजन होता है जिसमें किस्म-किस्म के खास आम पेश किये जाते हैं. दिलचस्प है कि इस बाग में ‘गदा’ नामक आम होता है, जिसके एक फल का वजन दो किलो भी हो सकता है. आम की अन्य किस्मों के इलावा यहां अनेक फलों के काफी पेड़ हैं. किसी भी मौसम में जायें, कोई न कोई फल उपलब्ध रहता है. बैसाखी के दिन यहां महामेला लगता रहा है. यहां रोज ही पर्यटक आते हैं, मगर रविवार व अवकाश के दिन मेले-सा माहौल रहता है. चंडीगढ़वासियों व अन्य पड़ोसियों के लिए यह पिकनिक डे ही होता है. हर किसी की थकान यहां छूट जाती है. कभी तशरीफ लाइयेगा, आपकी यात्रा स्वादिष्ट रहेगी.
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