UNESCO World Heritage Site: क्या है रहस्य दुनिया के सबसे बड़े विष्णु मंदिर का

कंबोडिया में स्थित अंगकोर वाट एक प्राचीन विष्णु मंदिर है जो कई रहस्यों से घिरा हुआ है आइए जानते है इस मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

By Pratishtha Pawar | July 11, 2024 4:53 PM
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UNESCO World Heritage Site: कंबोडिया (Cambodia) जो प्राचीन समय में कंबुज प्रदेश के नाम से विख्यात था. यहां पर मेकांग नदी के किनारे स्थित भव्य और रहस्यमय मंदिर परिसर अंगकोर वाट(Angkor Wat), खमेर साम्राज्य की वास्तुकला की चमक और आध्यात्मिक उत्साह का प्रमाण है. सिएम रीप(Siem Reap) शहर के पास स्थित, यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल(UNESCO World Heritage Site) न केवल शानदार संरचना के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपने गहरे ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है.

अंगकोर वाट (Angkor Wat, जिसे दुनिया का ससे बड़ा धार्मिक स्थल कहा जाता है, कंबोडिया के मध्य में स्थित है, जो आधुनिक शहर सिएमरीप(Siem Reap) से लगभग 5.5 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी की शुरुआत में खमेर राजवंश के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था, जिन्होंने इसे हिंदू भगवान विष्णु को समर्पित किया था. मूल रूप से एक हिंदू मंदिर के रूप में कल्पना की गई थी, अंगकोर वाट बाद में एक बौद्ध स्थल में बदल गया, जो सदियों से क्षेत्र के बदलते धार्मिक परिदृश्य को दर्शाता है.

अंगकोर वाट: कंबोडिया का भव्य विष्णु मंदिर

अंगकोर वाट के इर्द-गिर्द के मिथक इसकी भौतिक संरचना की तरह ही भव्य हैं.स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर का निर्माण भगवान देवराज इंद्र के कहने पर दिव्य वास्तुकार विश्वकर्मा ने करवाया था. एक अन्य मिथक से पता चलता है कि मंदिर को एक ही रात में एक दिव्य शक्ति द्वारा बनाया गया था, जो इसकी विस्मयकारी भव्यता और रहस्यमय आभा का स्पष्टीकरण है.

अंगकोर वाट की वास्तुकला समरूपता, जटिलता और प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व का एक अद्भुत मिश्रण है.  मंदिर पश्चिम की ओर उन्मुख है, जो हिंदू मंदिरों के लिए असामान्य है जो आमतौर पर पूर्व की ओर उन्मुख होते हैं. इस अभिविन्यास ने विद्वानों को यह विश्वास दिलाया है कि अंगकोर वाट का उद्देश्य राजा सूर्यवर्मन द्वितीय के अंतिम संस्कार मंदिर के रूप में भी था.

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मुख्य विशेषताएं: जीत,जन्म द्वार और मृत्यु द्वार

अंगकोर वाट महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प तत्वों से भरा हुआ है, जिनमें से जन्म द्वार (जन्म का द्वार) और मृत्यु द्वार (मृत्यु का द्वार) गहरा प्रतीकात्मक अर्थ रखते हैं. जन्म द्वार, या पूर्वी प्रवेश द्वार, आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत माना जाता है, जो जन्म और सांसारिक क्षेत्र में प्रवेश का प्रतीक है. इसके विपरीत, मृत्यु द्वार, या पश्चिमी प्रवेश द्वार, इस यात्रा के अंत का प्रतिनिधित्व करता है, जो मृत्यु और परलोक के मार्ग का प्रतीक है.

अंगकोर वाट का केंद्रीय शिखर की ऊंचाई लगभग 65 मीटर है जो कि मेरु पर्वत को दर्शाता है. मंदिर की दीवारों पर रामायण व महाभारत काल के कई चित्र उकेरे गए है. साथ ही कुछ आकृतियां राजा सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल की ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाती हैं.

यह मंदिर 402 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है. आक्रमण कारियों से बचाने के लिए मंदिर के चारों ओर खाई बनाई गई थी जिसमें पानी भरा होता था. मंदिर के पश्चिम की ओर खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है. पुल के पार मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक दरवाजा बनाया गया था जो लगभग 1000 फुट चौड़ा है इस मंदिर की बनावट इस प्रकार की है कि यह मेरु पर्वत को प्रदर्शित करता है वह मेरु पर्वत जिसके माध्यम से समुद्र मंथन हुआ था.मंदिर की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर और दक्षिण दिशाओं के बीच लगभग 1.7 किलोमीटर का फैसला है जो वाकई के बहुत बड़ा है मंदिर में लिखो मिले एक अभिलेख से पता चलता है कि अंगकोर वाट नाम पहले यशोधरपुर हुआ करता था.

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

अंगकोर वाट न केवल वास्तुशिल्प उपलब्धियों का स्मारक है, बल्कि एक पवित्र स्थल भी है, जो सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं, जिनमें वे तीर्थयात्री भी शामिल हैं, जो अपनी आध्यात्मिक विरासत को श्रद्धांजलि देने आते हैं. कंबोडियाई नव वर्ष और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहारों के दौरान मंदिर परिसर एक केंद्र बिंदु होता है, जो कंबोडिया के सांस्कृतिक जीवन में इसके स्थायी महत्व को रेखांकित करता है.

हाल के वर्षों में, अंगकोर वाट की संरचनात्मक अखंडता और कलात्मक विरासत को संरक्षित करने के लिए व्यापक संरक्षण प्रयास किए गए हैं. ये प्रयास मंदिर को समय और पर्यावरणीय कारकों के कहर से बचाने में महत्वपूर्ण हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आने वाली पीढ़ियां मानव इतिहास के इस असाधारण कृति से अछूते नहीं रहें.

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