नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 1975 में आज के दिन लागू किए गए आपातकाल को याद करते हुए कहा कि ‘ऐसी काली रात ‘ को भुलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने लोकतंत्र के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करने की जरुरत पर बल दिया.
उन्होंने याद किया कि लोकतंत्र से प्यार करने वाले लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लोकतंत्र का भाव हमारी अमर ‘विरासत ‘ है और ‘इस विरासत को हमें सशक्त बनाने की जरुरत है. ‘अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात ‘ में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लोकतंत्र के प्रति निरंतर जागरुकता जरुरी होती है और इसलिए लोकतंत्र को आघात करने वाली बातों को भी स्मरण करना होता है और लोकतंत्र की अच्छी बातों की दिशा में आगे बढ़ना होता है.
उन्होंने कहा, ”लोकतंत्र एक व्यवस्था ही है, ऐसा नहीं है, वो एक संस्कार भी है. सतत जागरुकता ही स्वतंत्रता का मूल्य है. ” वर्ष 1975 में 25 जून को आपातकाल लागू किए जाने को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘ ‘वो ऐसी काली रात थी, जो कोई भी लोकतंत्र प्रेमी भुला नहीं सकता है. कोई भारतवासी भुला नहीं सकता है. ” उन्होंने कहा कि पूरे देश को जेलखाने में बदल दिया गया था और विरोध के स्वर को दबोच दिया गया था.
‘मन की बात’ : प्रधानमंत्री मोदी ने रथ यात्रा और रमजान की शुभकामनाएं दीं
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘ ‘जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था. न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रुप की छाया से बच नहीं पाई थी. अखबारों को तो पूरी तरह बेकार कर दिया गया था. ‘ ‘ अपने रेडियो कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘ ‘आज के पत्रकारिता जगत के विद्यार्थी, लोकतंत्र में काम करने वाले लोग, उस काले कालखंड को बार-बार स्मरण करते हुए लोकतंत्र के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं और करते भी रहने चाहिए. ‘ ‘
उन्होंने कहा, ‘ ‘उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी भी जेल में थे. जब आपातकाल को एक वर्ष हो गया, तो अटल जी ने एक कविता लिखी थी और उन्होंने उस समय की मन:स्थिति का वर्णन अपनी कविता में किया है. ” प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की कविता की कुछ पंक्तियों को भी उद्धत किया. गौरतलब है कि देशभर में आक्रोश और सामूहिक आंदोलन के दबाव में इंदिरा गांधी को दो वर्ष से भी कम समय के भीतर आपातकाल हटा लेना पड़ा था.
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
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