इससे ऐसे संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर काम कर रहे लोगों के बच्चों को इस लाभ से रोक लग सकेगी जिन्हें ओबीसी के लिए आरक्षित सरकारी पदों को दरकिनार कर आय मापदंडों की गलत व्याख्या के चलते तथा पदों की समतुल्यता के अभाव में गैर-क्रीमीलेयर मान लिया जाता था और वास्तविक गैर-क्रीमीलेयर उम्मीदवार इस आरक्षण सुविधा से वंचित रह जाते थे.
केंद्रीयमंत्रिमंडल ने देश भर में सामाजिक दृष्टि से अगड़े व्यक्तियों/वर्गों (क्रीमीलेयर) को ओबीसी आरक्षण की परिधि से बाहर करने के लिए क्रीमीलेयर प्रतिबंधित व्यवस्था के लिए वर्तमानछह लाख रुपए वार्षिक आय के मापदंड को बढ़ाने की भी मंजूरी प्रदान करती है.नयी आय का मापदंडआठ लाख रुपए वार्षिक होगा. क्रीमीलेयर से बाहर किए जाने के लिए आय की सीमा में वृद्धि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में बढ़ोतरी को देखते हुए की गयी है और इससे ओबीसी को सरकारी सेवाओं में प्रदान किए गए लाभों तथा केन्द्रीय शैक्षिक संस्थाओं में दाखिले के लिए ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिल सकेगा.
सरकार का यह फैसला क्यों?
सरकार ने अपनी आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा है कि सरकार के प्रयासों में इन उपायों से ओबीसी के सदस्यों को बृहदत्तर सामाजिक न्याय और समावेशन सुनिश्चित हो सकेगा. सरकार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए संसद में पहले ही एक विधेयक पेश कर चुकी है. सरकार ने, संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत ओबीसी की उप-श्रेणियों के निर्माण के लिए एक आयेाग की स्थापना की है जिससे ओबीसी समुदायों के बीच और अधिक पिछड़े लोगों की शिक्षण संस्थाओं एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लाभों तक पहुंच बन सके. एक साथ लिए गए इन सभी निर्णयों से यह उम्मीद है कि शिक्षण संस्थाओं और नौकरियों में ओबीसी का बृहत्तर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सकेगा वहीं इस श्रेणी के भीतर ज्यादा वंचित लोगों को समाज की मुख्य धारा में उनके अवसर से वंचित नहीं होना पड़ेगा.
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