नयी दिल्ली: अवैध रोहिंग्या मुसलमानों पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के जरिये अपना पक्ष रखा है. केंद्र ने कहा कि करीब 40 हजार रोहिंग्याओं ने भारत में घुसपैठ की है, जिन्हें संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा सकता. केंद्र ने यह भी कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों का भारत में रहना गैर कानूनी है.
केंद्र सरकार ने सोमवार को अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर उन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया. कोर्ट को यह भी बताया कि इनमें से कई पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और आतंकी संगठनों से जुड़े हुए हैं. ऐसे में इन अवैध शरणार्थियों को देश में रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती. भारत से उन्हें जाना ही होगा.
मामले की अगली सुनवाई तीन अक्तूबर को होगी. मालूम हो कि रोहिंग्या शरणार्थी याचिकाकर्ताओं ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का हवाला देते हुए भारत पहुंचे इस समुदाय के लोगों को शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की है. अवैध रोहिंग्या शरणार्थी 2012-13 से भारत में रह रहे हैं. ये बिना किसी दस्तावेज के एजेंटों की मदद से पोरस बॉर्डर को पार कर यहां आ गये हैं.
सरकार की चार बड़ी चिंता
1 अवैध रोहिंग्या शरणार्थी नॉर्थ इस्ट कॉरिडोर की स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं.
2 देश में रहनेवाले बौद्ध नागरिकों के खिलाफ हिंसक कदम उठा सकते हैं.
3 आतंकी गतिविधि बढ़ेगी. जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद में इनके आतंकी कनेक्शन की सूचना है.
4 मानव तस्करी व हवाला कारोबार में लिप्त होने से देश विरोधी गतिविधियां बढ़ेंगी
रोहिंग्या : नहीं रहे किसी देश के नागरिक
रोहिंग्या मुस्लिम सुन्नी इस्लाम को मानते हैं और म्यांमार के रखाइन राज्य में रहते हैं, जो सबसे गरीब राज्य है. म्यांमार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. वह इन्हें बांग्लादेश से आये शरणार्थियों के तौर पर देखता है. 30 साल बाद 2014 में म्यांमार में पहली जनगणना हुई. इसमें रोहिंग्याओं को नहीं गिना गया. इस तरह वे किसी देश के नागरिक नहीं रहे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का करें इंतजार
गैरकानूनी तरीके से आये म्यांमार के रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वापस भेजने के मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख दिया है. अब इस केस में कोर्ट के फैसले का इंतजार है.
राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री
रोहिंग्या मुसलमानों की हालत दयनीय है. वोट बैंक की राजनीति ने हालात और बिगाड़े हैं. लगता है इंसानियत के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन वोटों के लिए है.
तसलीमा नसरीन, वरिष्ठ लेखिका
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