नयी दिल्ली : टू जी स्पेक्ट्रम मामले में आज पटियाला हाउस कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया. इस केस से जुड़े सभी आरोपियों को निर्दोंष बताते हुए बरी कर दिया. इस मामले में पूर्व संचार मंत्री ए राजा, डीएमके नेता कनिमोझी सहित कई अन्य आरोपी थे. इस फैसले के साथ ही कई सवाल खड़े हो गये. कांग्रेस की ओर से उठाया गया एक बड़ा सवाल यह है कि यह घोटाला हुआ ही नहींथा.
पूर्व पीएम मनमोहनसिंह ने इसेयूपीएके खिलाफ प्रोपेगंडा की संज्ञा दी है. इसमामलेमें कोर्ट के फैसले से अब सीएजी की रिपोर्ट पर सवाल खड़ा हो गया है. 2 जी ने देश की राजनीति में बड़े बदलाव लाये हैं. एक तो तकनीकी रूप से इसने देश को आगे बढ़ाया तो घोटाले की चर्चा ने कई पार्टियों का जनाधार खींच लिया. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने आज कहा कि टू जी के झूठे आरोप के कारण उनकी पार्टी सरकार से विपक्ष में चली गयी और भाजपा सरकार में आ गयी.
इस मामलेने देश की राजनीति बदल दी. यूपीए सरकार में
भ्रष्टाचारएक अहम मुद्दा बना. 2 जी, कोल-गेट जैसे मामलों ने कांग्रेस को राजनीतिक रूप से कमजोर कर दिया और भाजपा को अवसर प्रदान किया. डॉ मनमोहन सिंह की चुप्पी और टीवी पर दिये गठबंधन धर्म वाले बयान ने भी उनकी छवि पर असर डाला. 6 साल हर दिन हुई सुनवाई के बाद अब भी कई सवाल वहीं खड़े हैं. इस मामले ने उन सवालों को छोड़कर कई चीजें बदल दी है. पढ़िये इस कथित घोटाले का राजनीतिक, पार्टी और सरकारों पर क्या असर पड़ा :
भ्रष्टाचारके आरोपों से चौतरफा घिरी कांग्रेस
अबतक घोटालों के इतिहास में इसे सबसे बड़ा घोटाला बताया गया. इसे एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया गया. बवाल तब और बढ़ा जब ए राजा ने बयान दिया कि इस मामले की सारी जानकारी मनमोहन सिंह को थी. इस बयान ने प्रधानमंत्री की छवि को और कमजोर कर दिया. विपक्ष इसे मुद्दा बनाकर आगे बढ़ता रहा कई मौैकों पर मनमोहन सिंह की चुप्पी विपक्ष को मजबूत बनाती रही. विपक्ष ने 2 जी मामले का इस्तेमाल राजनीतिक माहौल बनाने के लिए हुआ. चुनावी रैली और जनसभा में इस मामले को खूब प्रचारित किया गया. इस मामले में देश की राजनीति की दिशा बदलने में अहम भूमिका निभायी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने फैसला आने के बाद राज्यसभा में कहा, आज अगर आप सरकार में बैठे हैं तो इसका एकमात्र कारण यही है कि आपने इस मामले का दुष्प्रचार किया.
कमजोर प्रधामंत्री की छवि
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले ने यूपीए 2 के कार्यकाल पर कई सवाल खड़े कर दिये. उस दौरान मनमोहन सिंह की छवि प्रधानमंत्री के रूप में ऐसी हो गयी थी जैसे उन पर कोई दबाव है. फरवरी 2011 में उन्होंने बयान दिया कि गठबंधन की मजबूरी उन्हें समझौता करने पर मजबूर करती है. ए. राजा डीएमके की तरफ से मंत्री पद के लिए आया नाम था और उस वक्त मेरे पास ऐसा कोई कारण नहीं था जिससे मैं इस नाम पर ऐतराज करता. मुझ तक कंपनियों की शिकायत आ रही थी लेकिन मुझे उस वक्त लगा नहीं कि मेरे अधिकार क्षेत्र में यह है कि मैं उस पर कोई एक्शन ले सकूं.
इस मामले ने सीधे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इसलिए भी कमजोर किया क्योंकि ए राजा ने बयान दिया कि पीएम को सारी जानकारी थी. इस मामले के छह साल बाद सीबीआई ने मनमोहन का बचाव यह करते हुए कहा, ए राजा ने मनमोहन सिंह को गलत जानकारी दी है.
डीएमके की राजनीति और गठबंधन धर्म
एक न्यूज चैनल को दिये इंटरव्यू में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गठबंधन की मजबूरी का बयान दे दिया. उन्होंने सीधे तौर पर डीएमके का नाम लेते हुए कहा, ए राजा का नाम उन्हीं की तरफ से आया था. इस मामले में डीएमके के मुखिया करुणानिधि की बेटी कनिमोझी का भी नाम था. इतना ही नहीं इन दोनों को इस मामले में जेल की हवा भी खानी पड़ी. इस मामले में डीएमके के दो अहम नेताओं का नाम था पार्टी को इसका नुकसान हुआ. राजनीतिक तौर पर डीएमके को नुकसान उठाना पड़ा.
ऐसे सामने आया मामला
साल 2010 में आयी कैग की रिपोर्ट में 2008 में बांटे गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए थे. स्पेक्ट्रम की नीलामी के बजाए ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर इसे बांटा गया था. इससे सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ. कैग की रिपोर्ट पर सदन में हंगामा हुआ. इसके बाद एक जांच कमेटी गठित हुई और आज छह साल के बाद फैसला आया जिसमें कोर्ट ने इसके घोटाले होने पर सवालिया निशान लगा दिया.
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