नयी दिल्ली : देश भर में इस साल अच्छी बारिश होने का अनुमान लगाया गया है. भारतीय मौसम विभाग के डीजी केजी रमेश ने आज प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि देश में 97 प्रतिशत बारिश होने का संभावना है. बता दें कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मानसून बेहद अहम कारक माना जाता है. वर्ष 1951 – 2000 तक देश में 89 सेमी बारिश हुई थी.
बताया जा रहा है कि मानसून के शुरुआत की तिथि की घोषणा मई के मध्य में की जाएगी. मौसम विभाग के मुताबिक देश में उस मानसून को सामान्य माना जाता है जब औसत बारिश, लंबी अवधि के औसत का 96 से 104 फीसदी रहती है. सुरेश ने बताया कि पहले चरण के पूर्वानुमान के मुताबिक इस साल सामान्य बारिश होने की संभावना 97 प्रतिशत है. वहीं औसत बारिश का स्तर सामान्य से कम रहने की संभावना बहुत कम है. उन्होंने बताया कि मानसून मिशन युग्मित जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली के आधार पर व्यक्त किये गये पूर्वानुमान के मुताबिक समूचे देश में मानसून ऋतु के दौरान जून से सितंबर के बीच होने वाली वर्षा का औसत स्तर 99 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है.
विभिन्न श्रेणियों में पूर्वानुमान के मुताबिक जून से सितंबर के बीच बारिश का स्तर सामान्य (औसत वर्षा का स्तर 96 से 104 प्रतिशत) रहने की संभाव्यता 42 प्रतिशत और सामान्य से अधिक (104 से 110 प्रतिशत) रहने की संभाव्यता 12 प्रतिशत रहने का पूर्वानुमान है. जबकि सामान्य से कम श्रेणी (90 से 96 प्रतिशत) की संभाव्यता 30 प्रतिशत और न्यून श्रेणी (90 प्रतिशत से कम) की संभाव्यता मात्र 14 प्रतिशत रहने का अनुमान है. सुरेश ने स्पष्ट किया कि पांचों श्रेणियों के पूर्वानुमान की संभाव्यता के मद्देनजर इस साल भी लगातार तीसरे साल बारिश का स्तर सामान्य रहने की उम्मीद है जबकि न्यून वर्षा की कम संभावना है.
औसत बारिश सामान्य के स्तर पर ही बरकरार रहने के कारण संबंधी सवाल पर सुरेश ने कहा कि प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में समुद्र सतह का तापमान अधिक होने, खासकर प्रशांत महासागर में अल नीनो या ला निना की स्थितियां भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रबल रूप से प्रभावित करने के कारण बारिश का स्तर पिछले सालों की तरह यथावत बना हुआ है. उल्लेखनीय है पिछले सालों में देश में औसत वर्षा का स्तर 89 सेंमी था. सुरेश ने बताया कि अत्याधुनिक पद्धतियों से मौसम के पूर्वानुमान के आंकलन को त्रुटिरहित बनाने में प्रभावी मदद मिली है. इसके परिणामस्वरूप साल 2007 से 2017 की अवधि में पूर्वानुमान में त्रुटि का स्तर घटकर 5.95 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले के सालों में यह नौ प्रतिशत तक रहता था.
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