बेंगलुरु : कर्नाटक की राजनीति में आखिरकार कांग्रेस-जनता दल सेकुलर ने बाजी अपने पक्ष में कर ली. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को अपराजेय राजनीतिक प्रबंधक मानने का मिथक गुजरात के राज्यसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में टूटा. कांग्रेस के कद्दावर व कुशल रणनीतिकार गुलाम नबी आजाद फिर एक बार पार्टी के संकट मोचक बने और यह वजह भी जाहिर हुई कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी उन पर इतना भरोसा क्यों करती हैं.राष्ट्रीय राजनीतिकेइन बड़े खिलाड़ियों से इतर कर्नाटक कीक्षेत्रीय राजनीति मेंखेल को इस मुकामतकपहुंचाने में कांग्रेस के ही एक और नेताकाबड़ा योगदान है.येहैं डीके शिवकुमार. कुमारास्वामी सरकार में अब शिवकुमार बड़ी भूमिका निभायेंगे.
गुजराज राज्यसभा चुनाव व आइटी के छापे
डीके शिवकुमार वहीनेताहैं, जिनके होटलमेंपिछले साल राज्यसभा चुनाव के दौरानगुजरातके कांग्रेस विधायक ठहराये गये थे. तब भारतीय जनता पार्टी ने अहमद पटेल के लिए गुजरात से राज्यसभा पहुंचने की राह बेहद मुश्किल कर दी थी. यह संभावना बेहद मजबूत नजर आ रही थी कि शंकर सिंह बाघेला व उनके समधी के प्रभाव में कांग्रेस के विधायक पार्टी को धोखा देंगे और पटेल राज्यसभा पहुंचने से वंचित रह जायेंगे. कांग्रेस ने अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए कर्नाटक भेजा और उनकी सुरक्षा का पूरा दारोमदार डीके शिवकुमार को सौंपा.
यही वह समय था जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंटनेउनके 30 ठिकानों पर छापेमारी की थी. उस दौरान शिवकुमार ने मीडिया से कहा था कि उन्हें नेतृत्व के द्वारा यह कहा गया है कि वे अपनी पार्टी को बचाने के लिए आवश्यक कदम उठायें. उन्होंने कहा था कि हमारी पार्टी की गुजरात इकाई के विधायकों को टूर पर लाने का कोई योजना नहीं है, बस हम यह पक्का करना चाहते हैं कि वे सुरक्षित रहें और हमारी पार्टी राज्यसभा का चुनाव जीत जाये.
डीके शिवकुमार ने अपनी पार्टी के लिए यही दृढ़ता इस बार भी दिखाई और परिणाम आने के बाद पहले ही दिन से वे उन्हें सुरक्षित रखने व टूट से बचाने के लिए सक्रिय हो गये और उसका असर भी दिखा.
सबसे धनी राजनेताओं में एक हैं डीके शिवकुमार
डीके शिवकुमार कर्नाटक के सबसे धनी राजनेताओं में शुमार हैं औरउनकाव्यापक कारोबार है. वे सिद्धरमैया की सरकार में ऊर्जा मंत्री थे और टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, वे देश के दूसरे सबसे धनी मंत्री थे. उनकी अपनी निजी संपत्ति 251 करोड़ रुपये थी.
भ्रष्टाचार के भी आरोप
राजनेता शिवकुमार सफल कारोबारी हैं और उन पर भ्रष्टाचार के कई मामले भी हैं. उन पर अवैध माइनिंग का केस रहा है. साथ ही जमीन में हेरफेर के भी मामले हैं. उन पर व उनके भाई डीके सुरेश पर गरीबों व दलितों का 66 एकड़ जमीन शांतिनगर हाउसिंग सोसाइटी स्कैम में हड़पने का आरोप लगा है. हालांकि बाद में उन्हें इस मामले में क्लीन चिट भी मिल गया. पीआइएल पर अवैध खनन मामले में उनके खिलाफ कोर्ट नोटिस भी आया है.
देवेगौड़ा के खिलाफ चुनावी राजनीतिक की शुरुआत
डीके शिवकुमार ने अपने चुनावी राजनीति की शुरुआत भी एचडी देवेगौड़ा के खिलाफ 1985 में सथानुरु से विधानसभा लड़ कर किया. यह सीट बेंगलुरु का ग्रामीण इलाका है. हालांकि इस चुनाव में देवेगौड़ा एक और सीट होनेनारसीपुर से लड़े थे और वहां से भी जीते थे. ऐसे में उन्होंने सथानुरु सीट छोड़ दी, जिससे शिवकुमार उपचुनाव में लड़कर विजयी हुए. 1989 के लोकसभा चुनाव में शिवकुमार एक बार फिर कनकपुरा सीट से लड़े और हार गये. 1994 में शिवकुमार देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारास्वामी के खिलाफ सथानुरु से लड़े और फिर हार गये.
यह वह दौर था जब समाजवादी राजनीति उभार पर थी. देश केज्यादातर हिस्सों की तरह कर्नाटक की राजनीति में कांग्रेस और जनता दल परिवार का ही वर्चस्व था. देवेगौड़ा जैसे बड़े नेता के खिलाफ चुनाव लड़ कर हारने के बावजूद शिवकुमार का कद बढ़ता गया, उन्होंने बेंगलुरु के ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ बढ़ायी और बाद में चुनावी सफलता हासिल करते गये और बाद में कनकपुरा विधानसभा से जीत हासिल करने लगे. इस बार चुनाव में भी वे वहीं से चुने गये हैं.
राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से बने पैरोकार
जिस पिता-पुत्र के खिलाफ उन्होंने चुनाव मैदान में खूब जोर-अजमाइश की, आज वे उसके सबसे बड़े शुभचिंतक नजर आ रहे हैं. पहले ही दिन से वे कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाने के अभियान में लग गये अौर न सिर्फ कांग्रेस बल्कि जेडीएस के विधायकों को भी टूट से बचाने हर जुगत की. कल विधानसभा में जब बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का एलान किया था तो शिवकुमार ही पहले कांग्रेसीथे जिन्होंने संभावित मुख्यमंत्री कुमारास्वामी का हाथ थामा और विजय का भाव प्रकट करने के लिए उसे ऊपर उठाया.
अब देखनायह है कि कांग्रेस इतनी मजबूती से कबतक कुमारास्वामी का हाथ थामे रहती है.
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