गौरतलब हो की शीर्ष अदालत ने बलात्कार और यौन हिंसा का शिकार हुई इन पीड़िताओं के चेहरे ढंकने के बाद भी उन्हें दिखाने से इलेक्ट्रानिक मीडिया को रोक दिया था. पीठ ने साफ शब्दों में कहा था कि उसने पुलिस को जांच करने से नहीं रोका है और यदि वह कथित पीड़ितों से सवाल-जवाब करना चाहें, तो उन्हें इसके लिए बाल मनोविशेषज्ञों की सहायता से ऐसा करना होगा.
दिल्ली महिला आयोग को फटकारा
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली महिला आयोग को भी फटकारा. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली महिला आयोग द्वारा मामले में पक्षकार बनने की अर्जी खारिज करते हुए उन्हें सुनने से इंकार कर दिया. जस्टिर लोकुर ने कहा कि ‘नन ऑफ इट्स बिजनस’. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली महिला आयोग को फटकार लगाते हुए कहा कि आप राजनीति कोर्ट से बाहर रखें. दिल्ली महिला आयोग को लताड़ लगाते हए सुप्रीम कोर्ट ने कहा आप होते कौन है? हम मामले में राजनीति नहीं चाहते हैं. इस दौरान दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल खुद भी कोर्ट में मौजूद थी.
वहीं आज की हुई सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने देश में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर मंगलवार को गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि जिधर देखो, उधर ही, महिलाओं का बलात्कार हो रहा है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह का संचालन करनेवाले गैर सरकारी संगठन को वित्तीय सहायता देने पर बिहार सरकार को आड़े हाथ लिया. इस आश्रय गृह की लड़कियों से कथित रूप से बलात्कार और उनके यौन शोषण की घटनाएं हुई हैं.
पीठ ने राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि देश में हर छह घंटे में एक महिला बलात्कार की शिकार हो रही है. ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में भारत में 38,947 महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ. इस स्थिति पर नाराजगी और चिंता वयक्त करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘इसमें क्या करना होगा? लड़कियां और महिलाएं हर तरफ बलात्कार की शिकार हो रही हैं.’ इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त वकील अपर्णा भट ने पीठ को सूचित किया कि मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में यौन उत्पीड़न की कथित पीड़ितों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस आश्रय गृह में बलात्कार का शिकार हुई लड़कियों में से एक अब भी लापता है.
मुजफ्फरपुर आश्रय गृह का निरीक्षण करनेवाले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने न्यायालय को बताया कि बिहार में इस तरह की 110 संस्थाओं में से 15 संस्थाओं के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त की गयी हैं. इस पर बिहार सरकार ने न्यायालय से कहा कि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित इन 15 संस्थानों से संबंधित यौन उत्पीड़न के नौ मामले दर्ज किये गये हैं.