नयी दिल्ली : तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को कई मौकों पर अहम फैसले बड़े सहज भाव से लेने वाले चतुर नेता के तौर पर देखा जाता है. उनका राजनीतिक जीवन कई अहम पड़ावों से गुजरा और सही समय पर सही रास्ता चुन लेने का उनका हुनर उन्हें नवगठित राज्य की सत्ता के शीर्ष तक ले गया. तेलंगाना के मेडक जिले के चिंतमडका में 17 फरवरी 1954 को जन्मे चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से तेलुगु साहित्य में स्नातकोतर की डिग्री ली है.
केसीआर ने 1970 में युवक कांग्रेस के सदस्य के तौर पर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की. 13 बरस तक कांग्रेस में रहने के बाद वह 1983 में तेलुगुदेसम में शामिल हुए और 1985 से 1999 के बीच सिद्धिपेट से लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीते. वह आंध्र प्रदेश की एन टी रामाराव सरकार में मंत्री बनाये गये. वर्ष 2000 में उन्हें आंध्र प्रदेश विधानसभा का उप सभापति बनाया गया. वर्ष 2001 में उनके राजनीतिक जीवन में एक और मोड़ आया, जब उन्होंने आंध्र प्रदेश विधानसभा के उपसभापति का पद ही नहीं छोड़ा तेलुगुदेसम पार्टी को भी अलविदा कह दिया.
यहां से वह तेलंगाना संघर्ष समिति का गठन करके तेलंगाना क्षेत्र को एक अलग राज्य बनाने के रास्ते पर निकल पड़े. तेलंगाना संघर्ष समिति ने धीरे धीरे अपनी जड़ें जमाना शुरू किया और साल 2004 में चंद्रशेखर करीमनगर लोकसभा क्षेत्र से न सिर्फ चुनाव जीते, बल्कि यूपीए-1 में केन्द्रीय मंत्री भी बनाये गये. हालांकि अपनी धुन के पक्के केसीआर ने 2006 में यह कहकर मंत्री पद छोड़ दिया कि केन्द्र सरकार उनकी मांग को गंभीरता से नहीं ले रही है. उनके इन तमाम कदमों से वह तेलंगाना क्षेत्र में राजनीति की धुरी बन गए। अपनी मांग को लेकर केन्द्र सरकार पर लगातार दबाव बनाते हुए केसीआर ने नवंबर 2009 में एक बड़ा दांव खेला और तेलंगाना राज्य के गठन की मांग करते हुए आमरण अनशन शुरू कर दिया. उनका यह पैंतरा काम कर गया और केन्द्रीय गृह मंत्री को कहना पड़ा कि तेलंगाना के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.
केसीआर के नेतृत्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति के लंबे संघर्ष के बाद 2014 में आखिरकार तेलंगाना का गठन हुआ और राज्य की 119 विधानसभा सीटों में से 63 पर विजय हासिल करके केसीआर सत्ता के गलियारों तक जा पहुंचे. केसीआर को राज्य पर शासन करते सवा चार बरस बीत चुके हैं और हाल ही में उन्होंने राज्य विधानसभा को भंग करने का ऐलान करके एक और बड़ा जोखिम लिया है; राजनीतिक पंडितों की मानें तो इस फैसले की कई वजह हो सकती हैं. तेलंगाना में 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे. चंद्रशेखर राव को शायद लगता हो कि लोकसभा के साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय मुद्दे राज्य के मुद्दों पर हावी हो जाएंगे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान और राष्ट्रीय मुद्दों की आड़ में भाजपा को फायदा मिल सकता था. इस घोषणा की एक अन्य वजह कांग्रेस और टीडीपी के बीच कथित तौर पर कम हो रही दूरियां भी माना जा रहा है.
आज फिर बढ़ी पेट्रोल-डीजल की कीमत, शिवसेना ने कहा- ‘यही हैं अच्छे दिन ‘
हाल ही में मॉनसून सत्र में दोनों दलों ने जिस तरह से एक दूसरे का साथ दिया, उससे संकेत मिले हैं कि दोनों अगले चुनाव में साथ आ सकते हैं. इस साल के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव होने वाले हैं और अगर इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा तो तेलंगाना में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ता. वजह कोई भी हो, लेकिन केसीआर ने समय से पहले राज्य विधानसभा को भंग करके जो दांव खेला है वह उनके बाकी फैसलों की तरह सही साबित होगा या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
Agni Prime Missile : पहली बार रेल लॉन्चर से परीक्षण, मिसाइल भेद सकती है 2,000 किलोमीटर तक के टारगेट को
Watch Video: पानी में डूबे घर, टूटी सड़कें, उत्तरकाशी में बादल फटने से मची तबाही का नया वीडियो आया सामने
Uttarkashi Cloudburst: उत्तराखंड में कुदरत का कहर, अब तक 4 की मौत, सीएम धामी ने नुकसान का लिया जायजा
Heavy Rain Warning: अगले 3 से 4 घंटों के दौरान हिमाचल में भयंकर बारिश की संभावना, IMD अलर्ट जारी