SC-ST Act मामले में यूएनआई संपादक के खिलाफ अपील हाईकोर्ट में खारिज

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) कानून के तहत देश की प्रमुख समाचार एजेंसी यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) के तत्कालीन संपादक एवं मौजूदा संपादक के खिलाफ दायर अपील को झूठ का पुलिंदा करार देते हुए खारिज कर दिया है. न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ ने इस मामले में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2018 9:02 PM
feature

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) कानून के तहत देश की प्रमुख समाचार एजेंसी यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) के तत्कालीन संपादक एवं मौजूदा संपादक के खिलाफ दायर अपील को झूठ का पुलिंदा करार देते हुए खारिज कर दिया है. न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ ने इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ एससी समुदाय के एक कर्मचारी वीरेंद्र वर्मा की अपील हाल ही में खारिज कर दी. उन्होंने कहा है कि इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश का फैसला सही है और वह इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगी.

वीरेंद्र वर्मा ने यूएनआई के तत्कालीन संपादक नीरज वाजपेयी, मौजूदा संपादक अशोक उपाध्याय एवं तत्कालीन यूनियन के एक पदाधिकारी के खिलाफ जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार निवारण कानून 1989 की धारा- 3(1) (10) के तहत उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया था. वीरेंद्र का आरोप था कि उसे श्री वाजपेयी के कमरे में फोन करके बुलाया गया था और वहां जाति-सूचक शब्दों के साथ गाली-गलौज की गयी थी.

निचली अदालत ने मामले की वृहद सुनवाई के बाद याचिका खारिज कर दी थी और सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. निचली अदालत ने याचिकाकर्ता के दर्ज बयान एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्यों में एकरूपता न होने के कारण याचिका खारिज कर दी थी.

मसलन, निचली अदालत ने शिकायत में वर्णित फोन कॉल और याचिकाकर्ता के कॉल डाटा रिकॉर्ड्स (सीडीआर) के मिलान के बाद पाया था कि श्री वाजपेयी द्वारा कॉल करके याचिकाकर्ता को कमरे में बुलाये जाने और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल एवं गाली-गलौज करने की बात झूठी थी, क्योंकि जिस फोन कॉल से कमरे में बुलाये जाने का दावा याचिकाकर्ता ने किया था, उसकी सीडीआर में मोबाइल का लोकेशन गुड़गांव के मेहरासंस ज्वैलर्स और डीएलएफ सिटी था, ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता का तुरंत श्री वाजपेयी के कमरे में पहुंच पाना कतई संभव नहीं था.

याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. न्यायमूर्ति गुप्ता ने इस मामले में साक्ष्यों के आधार पर निचली अदालत के निर्णय की प्रशंसा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की अपील नामंजूर की जाती है. उन्होंने कहा, ‘प्रतिवादियों को बरी किये जाने संबंधी निचली अदालत के फैसले को दुराग्रही कतई नहीं कहा जा सकता और इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है.’

न्यायमूर्ति गुप्ता ने इस मामले के एक गवाह समरेंद्र कांत पाठक की गवाही को नजरंदाज करने के निचली अदालत के निर्णय की भी सराहना की और कहा कि निचली अदालत ने मौजूदा मुकदमे में ‘दया भटनागर मामले’ में निर्धारित दिशानिर्देशों का उचित तरीके से पालन किया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि एससी/एसटी कानून की इस धारा के तहत आसपास के लोगों का बयान महत्वपूर्ण होगा, बशर्ते ये लोग निष्पक्ष एवं तटस्थ हों. ऐसे गवाहों का पीड़ित व्यक्ति से किसी तरह की कोई निकटता अथवा जुड़ाव न हो.

उच्च न्यायालय ने भी वीरेंद्र वर्मा एवं समरेंद्र कांत पाठक के बीच मेलजोल एवं निकटता के पहलुओं को स्वीकार किया है, क्योंकि इन दोनों ने अपने बयान में स्वीकार किया था कि ये दोनों इस घटना से पहले संस्था की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर रहे थे. दोनों ने यह भी स्वीकार किया था कि वे संगठन के पदाधिकारियों के खिलाफ चलाये जा रहे ‘यूएनआई बचाओ आंदोलन’ का हिस्सा रहे हैं. इन स्वीकारोक्तियों के मद्देनजर समरेंद्र कांत की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version