-जोधपुर से अंजनी कुमार सिंह-
मारवाड़ यानी सूर्य नगरी जोधपुर से स्वर्ण नगरी जैसलमेर तक के 7 जिलों का वह क्षेत्र जो राजे-रजवाड़ों से लेकर रणबांकुरे की धरती रही है. हालांकि चुनावी मौसम में इन क्षेत्रों में राजे-रजवाड़े या रणबांकुरों की कहानियों से ज्यादा विभिन्न दलों के प्रत्याशियों के किस्से सुनाई दे रहे हैं. चुनावी सरगर्मी और प्रचार का शोर इतना ज्यादा है कि किसी से राजनीति से इतर भी कुछ पूछने पर उन्हें लगता है कि प्रत्याशी के विषय में ही पूछा जा रहा है. पार्टियों के झंडे, बैनर और पोस्टर से पटे पूरे क्षेत्र में भाजपा जहां अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश में लगी है, वहीं कांग्रेस भाजपा के किले में सेंध लगाने की जुगत में.
राजनीतिक रूप से मारवाड़ ने उपराष्ट्रपति रहे भैरोंसिंह शेखावत से लेकर जसवंत सिंह और अशोक गहलोत सहित देश को राजनीति के एक से बढ़कर एक क्षत्रप दिये हैं.जोधपुर,जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर और सिरोही इन 6 जिलों में अलग-अलग रंग, वेशभूषा, स्थापत्य और जातियों के समीकरण दिखते हैं. जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर में राजपूतों का बाहुल्य है तो पाली, जालोर और सिरोही में जातीय समीकरण धर्म और धर्मावलंबियों के इिर्द-गिर्द घूम रहे हैं.
अलग-अलग क्षेत्र के मतदाताओं के रूख भी अलग है. गैंगस्टर आनंद पाल सिंह एनकांउटर, चतुर सिंह और सामराउ प्रकरण के कारण राजपूत मतदाता मौजूदा सरकार से खफा है, लेकिन वह कांग्रेस को ही वोट देंगे यह मान लेना जल्दबाजी होगी. अनुभंति सिंह भाउ कहते हैं, भाजपा ने राजपूतों के साथ अन्याय किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा राजपूत समाज कांग्रेस के साथ खड़ा है.
जोधपुर संभाग की सबसे हॉट सीट सरदारपुरा है, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुनाव लड़ रहे हैं. अपने गृह जिला के इस सीट का प्रतिनिधित्व गहलोत पिछले चार चुनावों से कर रहे हैं. पिछले चुनाव में भी जोधपुर की सभी सीटें जीतने के बाद भी भाजपा सरदारपुरा को नहीं जीत पायी, जिसका मलाल उसे आज भी है. शहर के मरानगढ़ फोटे और घंटा घर के बाहर बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं, नेताओं की सभा होने वाली है. वहां पूछने पर स्थानीय लोग बताते हैं कि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते जोधपुर का विकास होता है, लेकिन उनके हटते ही विकास की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है.
इसीलिए मारवाड़ के विकास के लिए अशोक गहलोत का जीतना जरूरी है. वहीं भाजपा प्रत्याशी शंभु सिंह खेतसार के समर्थक इसे कांग्रेस की अफवाह बताते हैं. पिछला चुनाव हारने के बाद भी भाजपा ने उन्हें बीज निगम का अध्यक्ष बनाया जिससे यहां के किसानों को फायदा पहुंचा. गहलोत जहां दिल्ली में डेरा डाले रहे, वहीं खेतसार क्षेत्र में लोगों के संपर्क में रहें. दोनों दलों के समर्थकों जोधपुर में एम्स लाने का श्रेय लेने को लेकर भी बंटे दिखे. जोधपुर संभाग का सबसे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा अपने पुराने प्रदर्शन को दोहरा पायेगी या कांग्रेस इसमें सेंध लगाने में कामयाब होगी. जोधपुर में लोग बंटे हैं. जातीय समीकरण के साथ ही स्थानीय समीकरण भी हावी है.
नागोरी गेट रोड, उदय मंदिर आसन, नया तालाब आदि क्षेत्रों में कांग्रेस को लेकर जोश है. लोग जोधपुर संभाग के विकास के साथ ही राष्ट्रीय मुद्दों की भी बात करते हैं और राज्य तथा केंद्र की सरकार को असफल करार देते हैं. वहीं मानक चौक, उमेद चौक, सूरसागर, अजय चौक बंबा मोइना आदि स्थानों पर लोग भाजपा को राज्य और देश हित में बताते हैं.
जोधपुर संभाग की 33 और नागौर की 10 सीटों को मिलाकर मारवाड़ में कुल 43 विधानसभा क्षेत्र है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मारवाड़ में गत चुनाव में भाजपा ने 39 सीट जीत इस गढ़ को ढहा दिया था. कांग्रेस के खाते में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सरदारपुरा सीट समेत महज तीन सीट आयी थी, जबकि एक सीट पर निर्दलीय ने कब्जा जमाया था. लेकिन इस बार भाजपा सरदारपुरा सीट को जीतने के लिए जी-तोड़ प्रयास में जुटी है. वहीं सरदारपुरा सीट को बरकरार रखने के लिए गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत और बेटी भी कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में जोधपुर में सरदारपुरा को छोड़कर भाजपा सभी सीटों पर जीतने में कामयाब रही थी. इस जिले में लोहावट, शेरगढ़, भोपालगढ़, जोधपुर शहर, सूरसागर, बिलाड़ा, सरदारपुरा, ओसियां, जैतारण और बाली विधानसभा सीटें हैं. लेकिन भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस ने इस बार नये चेहरे पर दांव लगाया है.
कांग्रेस के दस उम्मीदवारों में से सात उम्मीदवार ऐसे हैं जो पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. चर्चित भंवरी देवी कांड में फंसे परसराम मदेरणा की बेटी दिव्या को ओसियां से कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. वहीं इसी कांड में फंसे कांग्रेसी मलखान सिंह बिश्नोई के बेटे महेंद्र लूणी से प्रत्याशी हैं. कांग्रेस नेता खेत सिंह राठौड़ की बहू मीना कंवर शेरगढ़ से चुनाव लड़ रही हैं. यहां स्थानीय उद्योगों में पत्थर की खदान, हस्तशिल्प, इस्पात प्रमुख हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में इसका समुचित विकास नहीं हो पा रहा है. वहीं किसानों ने अच्छे न्यूनतम समर्थन मूल्यों, फसलों की सरकारी खरीद और सिंचाई के पानी की मांग को लेकर कई बार आंदोलन भी किया है. यहां पीने के पानी की समस्या काफी गंभीर है. अब देखना है कि मतदाता विकास को तरजीह देते हैं या जातीय समीकरण हावी होता है. इसका फैसला 11 दिसंबर को हो जायेगा.
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