न्यायमूर्ति बी पी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की पीठ ने बुधवार को कहा कि याचिकाएं 2014 से लंबित हैं और अदालत ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार का और समय देने का अनुरोध ठुकरा दिया. पीठ ने कहा, ‘‘ये याचिकाएं 2014 से लंबित हैं. इसलिए, आपको (केंद्र और राज्य) तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिला है.’ अदालत ने कहा कि मौत की सजा की पुष्टि के लिए सुनवाई उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ के सामने स्थगित है क्योंकि यह इन याचिकाओं के फैसले पर निर्भर करती है.
पीठ ने कहा कि इसलिए अदालत बिना देर किये, तीन रिट याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करेगी. सत्र अदालत द्वारा 2014 में दोषी ठहराए गए पांच में से तीन आरोपी जाधव, बंगाली और अंसारी ने दोषसिद्धि के तुरंत बाद उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी. दोषियों ने उस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी जिसके तहत उन्हें दोबारा अपराध के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी. याचिकाकर्ताओं ने अभियोजन को भादंसं की धारा 376 (ई) लगाने की अनुमति देने के सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी थी.
धारा के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति भादंसं की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा चुका है और उसे बाद में फिर से बलात्कार का अपराध करने के लिए दोषी ठहराया जाता है तो अदालत उसे जीवनपर्यंत कैद या मौत की सजा सुना सकती है. चूंकि तीन याचिकाकर्ताओं को एक अन्य महिला के बलात्कार के लिए पहले ही दोषी ठहराया जा चुका था, अत: अभियोजन ने भादंसं की धारा 376 (ई) लगाई और मौत की सजा की मांग की. चौथे दोषी सिराज खान को उम्रकैद की सजा दी गई थी क्योंकि वह बलात्कार के पिछले मामले में शामिल नहीं था और पांचवां आरोपी नाबालिग था जिसे सुधार गृह भेजा गया है.