न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप का सरकार का कोई इरादा नहीं:रविशंकर प्रसाद

नयी दिल्ली: लोकसभा में न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कोलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने संबंधी संविधान (121वां संशोधन) विधेयक पर जोरदार चर्चा की गयी. इस मामले में विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद में जवाब दिया.... रविशंकर प्रसाद ने जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव लाने की पुरजोर वकालत करते हुए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2014 7:40 AM
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नयी दिल्ली: लोकसभा में न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कोलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने संबंधी संविधान (121वां संशोधन) विधेयक पर जोरदार चर्चा की गयी. इस मामले में विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद में जवाब दिया.

रविशंकर प्रसाद ने जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव लाने की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि ऐसा करते हुए उसका न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र, उसकी शक्तियों और उसके प्राधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार न्यायपालिका के प्राधिकार, उसकी शक्तियों , उसके कार्यक्षेत्र का पूरी तरह सम्मान करती है.

प्रसाद ने कहा कि सदन जिस ऐतिहासिक बदलाव का साक्षी बनने जा रहा है , उसके बारे में सदन में इस बात पर सर्वसम्मति बनकर उभरी है कि बदलाव होना चाहिए. उन्होंने कहा कि विधेयक लाने से पूर्व भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को पत्र लिखकर उनकी राय सरकार ने मांगी थी.

उन्होंने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए छह सदस्यीय ईकाई में दो प्रख्यात हस्तियों की नियुक्ति के संबंध में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली द्वारा जाहिर की गयी शंका के संबंध में कहा, इस समिति में प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता शामिल रहेंगे. ऐसे में आपको उनकी बुद्धिमत्ता, विवेक पर भरोसा रखना चाहिए. प्रसाद ने कहा, सामूहिक विवेक से गुणवत्तापूर्ण नियुक्ति सुनिश्चित होगी. सदन स्थगित होने के कारण विधि मंत्री अपना जवाब पूरा नहीं कर सके और अब आज वह विस्तार से जवाब देंगे.

संविधान संशोधन विधेयक के अलावा विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज एक और संबंधित विधेयक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 भी पेश किया था. संविधान (121वां संशोधन) विधेयक 2014 जहां प्रस्तावित आयोग और इसकी पूरी संरचना को संविधान में निहित करता है वहीं दूसरा विधेयक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित ईकाई द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया तय करता है. इसमें जजों के तबादले तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में भी प्रावधान किए गए हैं.

प्रस्ताव के अनुसार, भारत के प्रधान न्यायाधीश एनजेएसी के प्रमुख होंगे. प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा किया जाएगा. दो जानी मानी हस्तियां तथा विधि मंत्री प्रस्तावित ईकाई के अन्य सदस्य होंगे. न्यायपालिका की आशंकाओं को दूर करने के लिए आयोग की संरचना को संवैधानिक दर्जा दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में कोई भी सरकार किसी साधारण विधेयक के द्वारा इसकी संरचना को कमजोर नहीं कर सके.

ईकाई में शामिल की जाने वाली दो जानी मानी हस्तियों का चुनाव भारत के प्रधान न्यायाधीश , प्रधानमंत्री , लोकसभा में विपक्ष के नेता या निचले सदन में सबसे बडे विपक्षी दल के नेता के कोलेजियम द्वारा किया जाएगा. इससे पूर्व विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस के वीरप्पा मोइली ने कहा कि यह दुर्भाज्ञपूर्ण है कि ऐसे महत्वपूर्ण विषय को रखे जाने के संबंध में विवाद उत्पन्न हो रहा है. इससे ऐसी स्थिति बनती दिख रही है जैसे कार्यपालिका और न्यायपालिका आमने सामने हो.

उन्होंने कहा कि हमें ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं करनी चाहिए बल्कि आमसहमति बनानी चाहिए. न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए ऐसी प्रणाली होनी चाहिए जो देश के लिए अच्छा हो. तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा कि न्यायपालिका में अच्छे बदलाव के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है. उन्होंने कहा कि पिछले दिनों न्यायपालिका द्वारा निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और उनकी संस्थाओं की आलोचना करना फैशन बन गया था. उन्होंने कहा कि संसद सर्वोच्च है और किसी को संवैधानिक सीमाओं से बाहर नहीं जाना चाहिए.

बीजद के भृतुहरि महताब ने कहा कि पिछले काफी समय से लोकसभा में खंडित जनादेश के कारण कार्यपालिका की शक्तियों का ह्रास हुआ है और जजों की नियुक्ति में उसकी भूमिका मात्र सहमति देने तक सीमित रह गई थी. बदलाव के लिए लाए गए विधेयक का समर्थन करने के साथ उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या इससे अदालतों में बडे पैमाने पर लंबित मामलों में कमी आएगी और यह भी कि क्या नई व्यवस्था न्यायपालिका में सर्वश्रेष्ठ और ईमानदार लोगों की नियुक्ति सुनिश्ति कर सकेगी.

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