नयी दिल्ली : स्विस बैंकों में जमा कालाधन का मामला अब गरमाता नजर आ रहा है. कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोरदार तरीके उठाया है. कांग्रेस ने कहा कि कालाधन मामले में केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट नहीं है.
कांग्रेस नेता अजय माकन ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि केंद्र सरकार कालाधन मामले में लोगों को गुमराह कर रही है. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से चुनाव पूर्व रैलियों में लोगों से वादा किया था कि 100 दिनों में कालाधान देश में लाकर रहेंगे. तो अब मोदी सरकार के सौ दिन से अधिक समय हो गये हैं, कालाधन अभी तक क्यों नहीं लाया गया.
अजय माकन ने कहा कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में भाजपा के नेता जो आज केंद्र में मंत्री हैं, संप्रग सरकार पर हमला किया करते थे और नामों का उजागर करने को लेकर दबाव बनाते थे. अब तो वे मंत्री बन गये हैं, तो नामों को उजागर क्यों नहीं कर रहे हैं. माकन ने कहा, केवल कुर्सी इधर से उधर हुई है.
माकन ने कहा, मोदी सरकार अब उन लोगों का नाम बताये जो स्विस बैंक में अपना खाता खोल रखे हैं. उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भी आडे हाथ लिया और उनसे पूछा कि जब आप सरकार में नहीं थे तो बड़ी-बड़ी बातें करते थे अब तो आप सरकार का हिस्सा हैं, कालाधन मामले में चुप्पी क्यों बनाये हुए हैं.
* केंद्र सरकार ने नाम बताने से किया इंकार
केंद्र सरकार स्विस बैंक में जिन लोगों का खाता है उनका नाम बताने साफ इंकार कर दिया है. इधर सरकार के इस रवैये को पूर्व सरकार का ही अनुसरण करने का आरोप लगाया जा रहा है. इधर इस आरोप को भाजपा ने खंडन किया है. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि हम नामों का खुलासा करने को तैयार हैं, लेकिन विदेशों में जमा कालेधन के ब्यौरे का खुलासा करने में 1995 में तत्कालीन सरकार द्वारा जर्मनी के साथ किया गया समझौता बाधक है.
जेटली ने कहा, यदि सवाल यह है कि क्या मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार किसी कारण से कुछ नामों को सार्वजनिक करने की इच्छुक नहीं है तो जवाब है कि कतई नहीं…. हमें नामों को सार्वजनिक करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्हें विधिवत कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सार्वजनिक किया जा सकता है.
उन्होंने संवाददाताओं को बताया, और कानून की इस विधिवत प्रक्रिया में डीटीएए (दोहरे कराधान से बचाव की संधि) बाधा बन रही है जिस पर जर्मनी और तत्कालीन कांग्रेस पार्टी की सरकार के बीच 19 जून, 1995 को हस्ताक्षर किया गया था.
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