सीताराम येचुरी चुने गए माकपा के महासचिव, कहा मानव सभ्यता का भविष्य समाजवाद में

विशाखापत्तनम: माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी को आज पार्टी के नये महासचिव के तौर पर सर्वसम्मति से चुन लिया गया. पार्टी ने अपने 21 वें सम्मेलन के समापन के मौके पर आज अपनी केंद्रीय कमेटी के 91 सदस्यों और 16 सदस्यीय पोलित ब्यूरो को भी चुना.... महासचिव चुने जाने के बाद माकपा बैठक को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 19, 2015 1:22 PM
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विशाखापत्तनम: माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी को आज पार्टी के नये महासचिव के तौर पर सर्वसम्मति से चुन लिया गया. पार्टी ने अपने 21 वें सम्मेलन के समापन के मौके पर आज अपनी केंद्रीय कमेटी के 91 सदस्यों और 16 सदस्यीय पोलित ब्यूरो को भी चुना.

महासचिव चुने जाने के बाद माकपा बैठक को संबोधित करते हुए येचुरी ने कहा कि यह भविष्य का सम्मेलन है, हमारी पार्टी के भविष्य का और देश के भविष्य का.62 वर्षीय माकपा नेता ने कहा, ‘‘हमारा काम वाम और लोकतांत्रिक ताकतों को मजबूत करना है.

इस सम्मेलन का सुस्पष्ट निष्कर्ष है कि दुनिया में पूंजीवाद संकट गहराता जा रहा है. समाजवाद के लिए संघर्ष बढाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. मानव सभ्यता का कोई भविष्य है तो वह भविष्य समाजवाद में है.’’ निवर्तमान महासचिव प्रकाश करात ने पद के लिए येचुरी के नाम का प्रस्ताव दिया और एस रामचंद्रण पिल्लई ने इसका अनुमोदन किया.

अपने चुनाव के पहले, येचुरी महासचिव पद की दौड में सबसे आगे माने जा रहे थे.पिल्लई ने कल उन खबरों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि माकपा के शीर्ष पद की दौड में वह भी हैं. उन्होंने कहा था कि पार्टी पद के लिए उम्मीदवार का फैसला करेगी.येचुरी ने भारत अमेरिका परमाणु करार पर सरकार से बातचीत में अहम भूमिका निभाई. करात के अडियल रुख के कारण इस करार को लेकर वामदलों ने संप्रग-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया.

कई विश्लेषकों का मानना है कि माकपा समेत वामदलों ने खुद को हाशिये पर डाल लिया जहां से वे एक के बाद एक हुए चुनावों में उबर नहीं पाए. वर्ष 1974 में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल होने और उसके अगले ही साल पार्टी का सदस्य बन जाने वाले येचुरी को आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था.

बारह अगस्त, 1952 को जन्मे येचुरी ने हैदराबाद में स्कूली शिक्षा पायी. बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया और उसमें टॉप किया. उन्होंने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) से फिर प्रथम श्रेणी में स्नातोकोत्तर किया लेकिन आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी के कारण अपना पीएचडी पूरा नहीं कर पाए. आपातकाल के दौरान वह कुछ समय तक भूमिगत रहकर प्रतिरोध आयोजित किया. बाद में, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

रिहाई के पश्चात वह जेएनयू छात्र संघ के तीन बार अध्यक्ष चुने गए. एसएफआई में वह 1978 में अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने और उसके शीघ्र बाद उसके अध्यक्ष बने.

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