नयी दिल्ली : कई महिला संगठनों ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने के लिए गर्भ में लिंग निर्धारण जांच को अनिवार्य बनाने के केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के सुझाव का विरोध किया है और साथ ही केंद्र से पीसीपीएनडीटी अधिनियम को ‘कमजोर’ नहीं करने को कहा है.
आल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस ऐसोसिएशन की कीर्ति सिंह ने कहा, ‘‘ यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मंत्री जिन्हें महिलाओं और विशेषकर लड़कियों के हितों को आगे बढ़ाने और उनका संरक्षण करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है वह पूरी तरह संदर्भ को समझने में विफल रही हैं कि लिंग निर्धारण देशभर में धड़ल्ले से जारी है.”
महिला कार्यकर्ताओं ने इस बात को रेखांकित किया है कि जन्म पूर्व लिंग निर्धारण पहचान तकनीक ( पीसीपीएनडीटी ) अधिनियम 1994 को उन तौर तरीकों पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था जिसमें कुछ अनैतिक स्वास्थ्य पेशेवर और कारपोरेट मुनाफा कमाने वाले लोग तकनीक का दुरुपयोग कर रहे थे और जिन्होंने लिंग चयन को एक फलते फूलते कारोबार में बदल दिया था.
सामाजिक कार्यकर्ता साबू जार्ज ने कहा, ‘‘ हम मंत्रियों और प्रशासन से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करते हैं कि किसी भी सूरत में पीसीपीएनडीटी अधिनियम कमजोर नहीं होने पाये. मोदी सरकार को बालिकाओं की कीमत पर वाणिज्यिक उद्यमों के हितों का संरक्षण नहीं करना चाहिए.”
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री ने पिछले दिनों राजस्थान में एक समारोह में यह सुझाव देकर विवाद पैदा कर दिया था कि कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने के लिए गर्भवती महिलाओं की लिंग निर्धारण जांच अनिवार्य बनानी चाहिए. मेनका गांधी ने कहा था, ‘‘ मेरी निजी राय है कि अनिवार्य रुप से गर्भवती महिला को यह बताया जाना चाहिए कि जिस बच्चे को वह जन्म देने जा रही है वह लड़का है या लड़की.
मैं केवल एक सुझाव दे रही हूं. इस पर व्यापक विचार विमर्श किया जा सकता है और अभी कोई अंतिम फैसला नहीं है.” कार्यकर्ताओं ने कहा था कि मंत्री का प्रस्ताव महिलाओं के निजता के अधिकार पर हमला है और यह ऐसे समय में उनके गर्भपात के अधिकार को भी बाधित करेगा जब सुरक्षित और कानूनी गर्भपात तक महिलाओं की पहुंंच को बाधित किया जा रहा है और असुरक्षित गर्भपात के कारण बहुत सी महिलाएं अपनी जान से हाथ धो रही हैं.”
राष्ट्रीय भारतीय महिला संघ की उषा श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘ यह अनुमान लगाना हास्यास्पद होगा कि जो सरकार उचित तरीके से पीसीपीएनडीटी कानून को लागू नहीं करवा सकी है वह करीब 2 5 करोड गर्भवती महिलाओं की निगरानी कर पाएगी.”
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